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    इंदौर में ऐसे कैसे मजबूत होगी कांग्रेस, हारने के बाद राऊ में झांका भी नहीं पटवारी ने

  • July 11, 2024

    • राष्ट्रीय सचिव सत्यनारायण पटेल को दिल्ली और उत्तरप्रदेश से फुर्सत नहीं हार के सदमे से ही नहीं उभर पा रहे हैं पिंटू जोशी ठ्ठ चिंटू चौकसे की सक्रियता सीमित दायरे में
    • शहर की 6 में से दो सीट के उम्मीदवार तो पार्टी छोडक़र ही चले गए

    इंदौर । सुनकर आश्चर्य लगेगा, लेकिन यह कटु सत्य है कि इंदौर में कांग्रेस को मजबूत करने में लगे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी ने विधानसभा चुनाव हारने के बाद अपने विधानसभा क्षेत्र राऊ की तरफ झांका भी नहीं है। करीब 35 हजार मतों की करारी हार के बाद पटवारी की राऊ से यह दूरी उनका इस क्षेत्र से मोहभंग होने का संकेत दे रही है। चूंकि खुद पटवारी का ही क्षेत्र पर ध्यान नहीं है, इसलिए निचले स्तर के कार्यकर्ता भी पूरी तरह निष्क्रिय हो गए हैं। इस विधानसभा संगठन की गतिविधियां भी ठप सी हंै। यहां के कार्यकर्ता तो अब यह भी कहने लगे हैं कि देखते हैं प्रदेश अध्यक्ष अपने विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को कितना मजबूत कर पाते हैं। यहां के कांग्रेसियों का तो यह भी दावा है कि पटवारी अब इस विधानसभा क्षेत्र से कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे। इंदौर में पार्टी के दूसरे बड़े नेता सत्यनारायण पटेल, जो कि राष्ट्रीय सचिव होने के साथ ही उत्तरप्रदेश के सहप्रभारी भी हैं, इंदौर पांच से लगातार दूसरी बार हारने के बाद पलट कर भी नहीं आए। वे बजाय अपने क्षेत्र के इन दिनों दिल्ली और उत्तरप्रदेश में ज्यादा सक्रिय हैं। पटेल समर्थक भी उनके इस रुख से चौंके हुए हैं। यहां पार्टी के लोगों के बीच ही इस बात की भी चर्चा है कि लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश के नतीजे के बाद दिल्ली दरबार से जो तवज्जो उन्हें मिल रही है, उसके चलते अब वे अगले विधानसभा चुनाव तक उत्तरप्रदेश में ही ज्यादा सक्रिय रहेंगे।

    शहरी क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र हैं। इंदौर एक से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े संजय शुक्ला और इंदौर चार से उम्मीदवार रहे राजा मांधवानी कांग्रेस छोडक़र चले गए। इन दोनों विधानसभा क्षेत्र में संगठन का नेटवर्क पूरी तरह ध्वस्त है। इंदौर एक में संगठन में जिम्मेदार पदों पर बैठे कई लोग शुक्ला के साथ ही कांग्रेस छोडक़र चले गए थे। अब वहां जो नेता है, वह संगठन के काम में विशेष सूची नहीं ले रहे हैं। इंदौर चार में विधानसभा चुनाव लडऩे के बावजूद मांधवानी का कोई खास वजूद नहीं था। अब तो भी पार्टी में ही नहीं हैं। शहर अध्यक्ष सुरजीत चड्ढा 2018 में यहां बुरी तरह हार चुके हैं। उनकी ज्यादा रुचि इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूत करने के बजाय जैसे-तैसे अध्यक्ष पद बरकरार रखने की है। कार्यवाहक अध्यक्ष गोलू अग्निहोत्री घर बैठे हुए हैं और सामाजिक व जातिगत समीकरणों के चलते यहां थोड़ा बहुत प्रभाव रखने वाले सुरेश मिंडा को कोई पूछ नहीं रहा।


    खुद को सबसे मजबूत मानते हुए जीत को लेकर प्रतिशत आश्वस्त रहे पिंटू जोशी अभी तक इंदौर तीन से हार के सदमे से उभर नहीं पाए हैं। उनकी थोड़ी बहुत सक्रियता अपने क्षेत्र में है, लेकिन इससे संगठन को कोई ज्यादा फायदा नहीं मिल रहा है। यहां अश्विन जोशी के भी सक्रिय होने की बात तो कही जाती है, लेकिन इससे पार्टी को बहुत ज्यादा मजबूती मिल रही हो, ऐसा दिख नहीं रहा। इंदौर दो में जरूर चुनाव हारने के बाद भी चिंटू चौकसे बेहद सक्रिय हैं। उनकी इसी सक्रियता से इंदौर में कांग्रेस के सक्रिय होने जैसी स्थिति दिखती है। चिंटू नगर निगम में नेता प्रतिपक्ष की जो भूमिका मिली है, उसका पूरा फायदा ले रहे हैं और पिछले तीन-चार माह में इंदौर में कांग्रेस के बैनर तले जितने भी प्रदर्शन या आंदोलन हुए हैं, उसमें उन्हीं की सबसे अहम भूमिका रही है। कांग्रेस के आयोजनों में भीड़ जुटाने के मामले में भी पार्टी की चिंटू पर ही निर्भरता नजर आती है।

    वार्ड प्रभारी बनेंगे समयदानी नेता
    बुधवार को शहर कांग्रेस मुख्यालय गांधी भवन पर जरूर लंबे समय बाद रौनक देखने को मिली। पिता के अस्वस्थता के चलते लोकसभा प्रभारी रवि जोशी तो आज बैठक में शामिल नहीं हो पाए लेकिन शहरी क्षेत्र के प्रभारी अवनीश भार्गव ने जरूर विधानसभा क्षेत्रवार नेताओं से चर्चा की और केंद्रीय नेतृत्व की सहमति के बाद प्रदेश कांग्रेस ने कामकाज का जो एजेंडा तय किया है, उसकी जानकारी दी। भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस ने भी अब समयदानी नेता चिन्हित कर उन्हें वार्ड वार जिम्मेदारी देना तय किया है। यह नेता अपने प्रभार के वार्ड में रोज दो से तीन घटे पार्टी के लिए काम करेंगे। हर वार्ड के लिए जो कार्यकारिणी बनेगी, उसमें आधी संख्या महिलाओं की रहेगी। बूथ स्तर पर भी प्रभारी बनाए जा रहे हैं।

    कमजोर चड्ढा को मजबूत करने की कवायद
    प्रभारी के बुलावे पर गांधी भवन पहुंचे कई नेताओं ने बाद में कहा कि संगठन के वजह है, नगर अध्यक्ष सुरजीत चडढा को मजबूत करने की कवायद है। दरअसल प्रदेश अध्यक्ष इंदौर शहर को लेकर अभी कोई निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। वे खुद ही इतने घिरे हुए हैं कि इंदौर के मामले में उलझकर नए विवाद में नहीं पडना चाहते हैं। इसी के चलते उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व के पायलट प्रोजेक्ट के लिए जानबूझकर इंदौर का चयन करवाया, ताकि दिल्ली और भोपाल के फरमान की आड़ में स्थानीय नेताओं को सक्रिय किया जाए और इसका सीधा फायदा चड्ढा को मिले। इन नेताओं का यह भी कहना था कि अब जो स्थिति पटवारी की अपने गृह विधानसभा क्षेत्र राऊ में है, लगभग वैसे ही स्थिति चड्ढा की इंदौर चार में।

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