नई दिल्ली (New Delhi) । किडनी ट्रांसप्लांट गिरोह (Kidney transplant gang) की जड़ें दिल्ली (Delhi) से बांग्लादेश (Bangladesh) तक फैली हैं। जांच में सामने आया कि किडनी ट्रांसप्लांट रैकेट वर्ष 2019 से चल रहा था। बांग्लादेश निवासी रसेल ने खुलासा किया है कि उसने वर्ष 2019 में पहले खुद एक मरीज को किडनी दान की थी। इसके बाद उसने अपना गिरोह बना लिया था। आरोपी रसेल ने बताया कि 2019 में वह भारत आया था। उसने एक बांग्लादेशी मरीज को किडनी दान की थी। सर्जरी के बाद बांग्लादेश निवासी इफ्ती के साथ मिलकर गिरोह बनाया।
गिरोह के सदस्य बांग्लादेश के संभावित किडनी डोनर और रोगियों से संपर्क स्थापित करते थे। इसके बाद उन्हें भारत लाकर सर्जरी कराते थे। मुख्य आरोपी रसेल अपने साथी इफ्ती को डोनर लाने पर कुल लागत का करीब 20-25 फीसदी हिस्सा देता था। बांग्लादेश निवासी गिरोह के सदस्य मोहम्मद रोकोन उर्फ राहुल सरकार ने भी 2019 में एक बांग्लादेशी नागरिक को अपनी किडनी दी थी। इसके बाद से ही वह रसेल के साथ मिलकर काम करने लगा। वह रसेल के निर्देश पर किडनी डोनर और मरीजों के जाली दस्तावेज तैयार करता था।
बिचौलिया निभाते थे अहम भूमिका
आरोपियों ने बताया कि डोनर और रिसीवर को दिल्ली के जसोला इलाके में स्थित फ्लैट में रखा जाता था। यहीं से सब कुछ तय करने के बाद किडनी ट्रांसप्लांट का काम होता था। आरोपियों के पास से बांग्लादेश हाई कमीशन के कई फर्जी दस्तावेज बरामद हुए हैं। बांग्लादेश के मरीजों को कुछ बिचौलिये दिल्ली और नोएडा के दो नामी प्राइवेट अस्पताल से जुड़ी डॉ, विजया कुमारी और उनके साथियों के नेटवर्क द्वारा एनसीआर के प्रमुख अस्पतालों में किडनी प्रत्यारोपण के लिए बुलाते थे।
रुपये नहीं होने पर 20 लाख में भी मान जाते थे
किडनी रैकेट से जुड़े इस अंतरराष्ट्रीय गिरोह को लेकर चल रही जांच में यह खुलासा हुआ है कि आरोपी डोनर को पांच लाख रुपये देते थे, जबकि रिसीवर को 30 लाख रुपये में बेचते थे। अगर कोई रिसीवर इतनी रकम नहीं दे पाता था तो सौदा 20 लाख रुपये तक भी पहुंच जाता था। गिरोह के सदस्य को इस बात का अंदाजा रहता था कि सामने वाला कितने पैसे दे सकता है।
जाली दस्तावेज बनाए
आरोपी रसेल और इफ्ति अपने गिरोह के सहयोगी मोहम्मद, सुमन मियां, मोहम्मद रोकोन उर्फ राहुल सरकार और रतेश पाल के माध्यम से मरीजों और डोनर के बीच संबंध दिखाने के लिए उनके जाली दस्तावेज तैयार करते थे। इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर अस्पतालों से प्रारंभिक चिकित्सीय जांच कराकर किडनी ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन करवाते थे।
ये सामान बरामद
आरोपियों के कब्जे से डॉक्टर, नोटरी पब्लिक, वकील समेत कई प्रमुख लोगों की मुहर, किडनी रोगियों और डोनर से जुड़ी छह फर्जी फाइल, अस्पतालों के जाली दस्तावेज, फर्जी आधार कार्ड, स्टिकर, स्टांप पेपर, पेन ड्राइव, हार्ड डिस्क और दो लैपटॉप बरामद किए हैं। आरोपियों के कब्जे से आठ मोबाइल फोन और 1800 यूएस डॉलर भी बरामद किए हैं।
पीड़ित लोगों को ऐसे फंसाते थे आरोपी
जांच में पता चला है कि बांग्लादेश में डायलिसिस केंद्रों पर जाकर आरोपी किडनी रोग से पीड़ित मरीजों को झांसे में लेते थे। इसके बाद बांग्लादेश से ही गरीब लोगों से किडनी डोनेट कराने की व्यवस्था करते थे। पैसे और नौकरी का झांसा देकर भारत लाते थे। यहां आने के बाद उनके पासपोर्ट जब्त कर लिए जाते थे।
कौन क्या काम करता था
रसेल- बांग्लादेश निवासी गिरोह का सरगना रसेल 12वीं कक्षा तक पढ़ा है। वह 2019 में भारत आया था।
मोहम्मद रोकोन- बांग्लादेश निवासी मोहम्मद रोकोन सरगना रसेल के निर्देश पर जाली दस्तावेज तैयार करता था।
मोहम्मद सुमोन- बांग्लादेश निवासी मोहम्मद सुमोन मियां 12वीं तक पढ़ा है। वह गिरोह के सरगना रसेल का बहनोई है।
रतेश पाल- त्रिपुरा निवासी रतेश पाल रसेल से हर केस के 20 हजार रुपये लेता था।
विक्रम- उत्तराखंड निवासी विक्रम 12वीं पास है। वह फरीदाबाद में रह रहा है।
शारिक- यूपी निवासी शारिक डॉ. और उसके निजी सहायक से बात करता था।
डॉ. विजया- डॉक्टर विजया राजकुमारी दो नामी प्राइवेट अस्पतालों में किडनी सर्जन है।
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