नई दिल्ली (New Delhi)। भारत के प्रधान न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने गुरुवार को सोशल मीडिया (Social Media) को लेकर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि हां, सोशल मीडिया (Social Media) में एक समस्या है, क्योंकि यहां हर नागरिक एक पत्रकार (Every citizen journalist) है, जिसके पास एक नजरिया है। इसका अक्सर हम (जज) शिकार होते हैं और अक्सर हम देखते हैं कि हमने जो नहीं कहा है, उसके बारे में कमेंट किए जाते हैं, मैं कहता हूं कि हमने ऐसा कभी नहीं कहा या हमारी गलत व्याख्या की गई है।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ”क्या सोशल मीडिया हमारे नियंत्रण में है? हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां बहुत कुछ हमारे नियंत्रण से परे है। मेरा हमेशा से मानना है कि अच्छाई की शक्ति बुराई की शक्ति पर हावी होती है। इसलिए, तकनीक के विपरीत पक्षों और कभी-कभी न्यायाधीशों की अनुचित आलोचना के बावजूद, कुल मिलाकर, प्रौद्योगिकी हमें लोगों तक पहुंचने और उन्हें यह समझाने की अनुमति देती है कि हम आम लोगों की समस्याओं को कितनी गंभीरता से देखते हैं।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि हम कुछ मौकों पर आलोचना का शिकार होते हैं। कभी-कभी आलोचना उचित होती है, लेकिन कभी-कभी आलोचना गलत होती है, लेकिन मेरा मानना है कि न्यायाधीशों के रूप में हमारे कंधे इतने चौड़े हैं कि हम लोगों द्वारा हमारे काम की आलोचना को स्वीकार कर सकें।
‘राजनीतिक दबाव का सामना नहीं किया’
सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ ने विधायिका के किसी भी हस्तक्षेप की आशंका को खारिज करते हुए कहा कि न्यायाधीश के रूप में अपने 24 साल के कार्यकाल में उन्हें कभी भी किसी सरकार की ओर से किसी राजनीतिक दबाव का सामना नहीं करना पड़ा। ऑक्सफोर्ड यूनियन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि भारत में न्यायाधीशों को मुकदमों में भावनाओं के बजाय संवैधानिक व्यवस्था पर आधारित स्थापित परंपराओं के अनुसार निर्णय लेने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
उन्होंने कहा, “अगर आप मुझसे राजनीतिक दबाव, सरकार के दबाव के बारे में पूछें, तो मैं आपको बताना चाहता हूं कि 24 वर्षों से मैं न्यायाधीश हूं, और मुझे सत्ता पक्ष की ओर से कभी भी राजनीतिक दबाव का सामना नहीं करना पड़ा। भारत में हम जिन लोकतांत्रिक परंपराओं का पालन करते हैं, उनमें यह भी शामिल है कि हम सरकार के राजनीतिक अंग से अलग-थलग जीवन जीते हैं।” “सामाजिक दबाव” के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि न्यायाधीश अकसर अपने निर्णयों के सामाजिक प्रभाव के बारे में सोचते हैं। उन्होंने कहा, “हमारे कई निर्णयों का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। न्यायाधीशों के रूप में, मेरा मानना है कि यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपने निर्णयों के सामाजिक व्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में जागरूक रहें।”
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