- पुलिस को अभी तक नहीं मिली हस्ताक्षर नमूनों की जांच रिपोर्ट
- पानी के टैंकरों का भी नया फर्जीवाड़ा सामने आया
- वेतन जमा कर सेवानिवृत्ति ले ली कार्यपालन यंत्री ने
इंदौर। नगर निगम (municipal corporation) के फर्जी बिल महाघोटाले (fake bill scam) की जहां पुलिसिया (Police) जांच (investigation) चल रही है, मगर अब नगर निगम ने पुलिस को अन्य फाइलों की जानकारी नहीं दी है। दरअसल निगम के ही कर्ताधर्ता इस घोटाले पर पर्दा डालना चाहते हैं, क्योंकि मास्टरमाइंड अभय राठौर को राजनीतिक संरक्षण सालों से मिलता रहा है। सूत्रों का कहा है कि इस महाघोटाले में लिप्त पाई गई दो प्रमुख फर्मों, जाह्नवी और नींव कंस्ट्रक्शन से जुड़ी 175 फाइलें और उजागर हुई है, जिनको जांच के लिए ड्रैनेज विभाग को सौंपा गया। मगर वहां पदस्थ कार्यपालन यंत्री सुनील गुप्ता ने अपना एक माह का वेतन जमा कराते हुए स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन लगा दिया है। वहीं पुलिस को अभी तक भोपाल मुख्यालय से हस्ताक्षर नमूनों की जांच रिपोर्ट भी नहीं मिल सकी है। अभी तक 150 करोड़ रुपए का यह घोटाला सामने आ चुका है और पानी के टैंकरों में भी बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े किए गए।
नगर निगम वैसे तो तमाम घोटालों की खान रही है। विगत वर्षों में उसके कई घोटाले सुर्खियों में रहे हैं। मगर यह पहला मौका है जब काम हुआ ही नहीं और फर्जी फाइलें लगाकर करोड़ों रुपए का भुगतान हासिल कर लिया गया। लगभग 400 से अधिक फाइलों में गड़बड़ी पाई गई। इस पूरे महाघोटाले के मास्टरमाइंड अभय राठौर को जेल भिजवा दिया है। साथ ही निगम के अन्य कर्मचारी, ऑडिटर और ठेकेदार फर्मों के कर्ताधर्ता भी जेल में हैं। वहीं ऐहतेशाम उर्फ एजाज नामक प्रमुख ठेकेादर अभी फरार है। निगम सूत्रों का कहना है कि जाह्नवी इंटरप्राइजेस, जिसका कर्ताधर्ता राहुल वडेरा है, जिसने अपनी पत्नी रेणु वडेरा के नाम से क्षीतिज इंटरप्राइजेस भी बनाई और वडेरा ने ही बड़े पैमाने पर फर्जी फाइलें तैयार करवाई, जिसमें नींव कंस्ट्रक्शन, ग्रीन कंस्ट्रक्शन और किंग कंस्ट्रक्शन सहित अन्य फर्मों के नाम भी सामने आए। अभी जाह्नवी और नींव कंस्ट्रक्शन की 175 फाइलें लेखा शाखा ने ड्रैनेज विभाग को जांच के लिए भिजवाई, जिसमें ड्रैनेज के अलावा जनकार्य,गार्डन,जल यंत्रालय, जिनमें पानी के टैंकरों से जुड़ी भी कई फाइलें शामिल हैं। मगर दूसरी तरफ पिछले दिनों एमआईसी की बैठक में कार्यपालन यंत्री सुनील गुप्ता को लेकर बखेड़ा हुआ था और उनका दरअसल मुरैना ट्रांसफर शासन ने कर दिया था। मगर चुनाव के चलते वे रिलीव नहीं हुए थे। महापौर सहित अन्य सदस्यों के दबाव के चलते आयुक्त शिवम वर्मा ने श्री गुप्ता को रिलीव कर दिया। मगर उन्होंने अपनी जान का खतरा बताते हुए मुरैना जाने से इनकार तो किया ही, साथ ही एक माह का वेतन जमा करवाकर नियमानुसार स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन लगा दिया। श्री गुप्ता के मुताबिक वर्तमान परिस्थिति में काम करना मुश्किल है और चूंकि उनके द्वारा ही फर्जी बिल घोटाले की एफआईआर दर्ज करवाई गई और अन्य फाइलों की जांच भी की। लिहाजा इनसे जुड़े रसूखदार लोगों से उन्हें जान का भी खतरा है। ऐसे में मुरैना जाकर नौकरी करना संभव नहीं है। दूसरी तरफ पुलिस ने फर्जी फाइलें में जिन अधिकारियों और अन्य के हस्ताक्षर हैं उनके नमूनों की जांच भोपाल मुख्यालय भेजी थी। तीन सेटों में ये नमूने भेजे गए। मगर उनकी रिपोर्ट अभी तक नहीं मिली है। वहीं दूसरी तरफ पानी के टैंकरों में भी बड़े पैमाने पर हुए फर्जीवाड़े का नया मामला सामने आया है।
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