इंदौर, राजेश ज्वेल। अग्निबाण ने तथ्यात्मक जानकारी इंदौर के मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर लगातार प्रकाशित की है और इसी कड़ी में अंडरग्राउंड रूट को लेकर चल रही अड़ंगेबाजी को भी एक्सपोज किया है कि किस तरह इंदौर के जनप्रतिनिधियों ने पहले तो रूट को मंजूरी दी और 14 माह बाद अपने ही निर्णय से पलट गए। इस मामले में एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इंदौर हाईकोर्ट ने खुद अपने परिसर की 60 हजार स्क्वेयर फीट जमीन अस्थायी रूप से अंडरग्राउंड रूट के लिए काम करने को देने पर सहमति दी और बकायदा इस संबंध में मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन और हाईकोर्ट के बीच अनुबंध भी हुआ। जबलपुर में बैठकर मुख्य न्यायाधीश ने वीडियो कान्फ्रेंस के जरिए मेट्रो अफसरों से इस अंडरग्राउंड रूट का प्रजेंटेशन देखा और उससे पूर्ण सहमत होते हुए हाईकोर्ट के गार्डन, पोर्च सहित अन्य निर्माण को हटाकर काम शुरू करने की मंजूरी तो दी ही, वहीं पिछले दिनों इंदौर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने उस जनहित याचिका को भी आधारहीन मानकर खारिज कर दिया, जिसमें अंडरग्राउंड रूट के बदलाव की मांग की गई थी।
शहर के जिन कतिपय बुद्धिजीवियों और विशेषज्ञों द्वारा पिछले एक साल से मेट्रो प्रोजेक्ट में खामियां निकाली जा रही हैं और उसके अंडरग्राउंड रूट को लेकर बदलाव की मांग भी उठाते रहे हैं, जबकि इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट का पूरा काम विशेषज्ञों द्वारा किया गया, जिसमें दिल्ली मेट्रो की टीम भी शामिल रही है। अब जब काम शुरू हो गया और उसकी टेंडर प्रक्रिया भी लगभग पूरी की जा चुकी है, उस पूरे काम को बेपटरी करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। हालांकि इसमें मेट्रो कॉर्पोरेशन के उन जिम्मेदार अधिकारियों की भी गलती है जिन्होंने विभागीय मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को इन सब वास्तविकताओं से अवगत नहीं कराया और वे भी अंडरग्राउंड रूट को लेकर अंधेरे में रहे, क्योंकि जहां शहर के सभी जनप्रतिनिधियों को अंडरग्राउंड रूट की विस्तृत जानकारी देकर उनकी सहमति ली गई, वहीं इंदौर हाईकोर्ट तक ने उसे मान्य किया और पिछले दिनों रूट बदलने को लेकर लगाई याचिका को खारिज भी कर डाला।
इस याचिका में भी यही मांग की गई थी कि एमजी रोड पर जो अंडरग्राउंड प्रोजेक्ट तैयार किया है, उसकी बजाय मेट्रो का रूट योजना 140, वल्र्ड कप चौराहा, वहां से कृषि कॉलेज, एमवाय होते हुए गांधी प्रतिमा का रूट सुझाया गया था। मगर हाईकोर्ट ने इसे आधारहीन मानकर खारिज कर दिया, क्योंकि मेट्रो कॉर्पोरेशन द्वारा सौंपी गई विशेषज्ञों और तकनीकी जानकारी को ही हाईकोर्ट ने मान्य किया। यानी एक तरफ इंदौर हाईकोर्ट ने जिस अंडरग्राउंड रूट को लेकर अभी हल्ला मचाया जा रहा है, उसको न सिर्फ मान्य किया, बल्कि उसके लिए अपने परिसर की 60 हजार स्क्वेयर फीट जमीन अस्थायी रूप से देने पर भी सहमति दी। तत्कालीन मेट्रो कॉर्पोरेशन एमडी मनीष सिंह और विशेषज्ञों ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को इसका प्रजेंटेशन दिया, जिसमें इंदौर हाईकोर्ट के भी जस्टिस और प्रिंसिपल रजिस्ट्रार मौजूद रहे और हाईकोर्ट परिसर की जमीन काम करने के लिए देने की सहमति दी। कॉर्पोरेशन को बाउण्ड्रीवॉल तोडऩे के बाद उसका पुन: निर्माण करने के साथ गार्डन सहित अन्य निर्माणों को भी नए सिरे से बनाकर वापस हाईकोर्ट को सौंपना पड़ेगा, वहीं आज दोपहर बारह बजे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी मेट्रो प्रोजेक्ट की समीक्षा कर रहे हैं, जिसमें इंदौर प्रोजेक्ट में डाली जा रही बाधाओं की जानकारी भी अफसरों द्वारा संभवत: दी जाएगी।
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