नई दिल्ली (New Delhi)। प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) की वर्षों से सियासी लॉन्चिंग की जगह तय हो गई है. सोमवार को कांग्रेस (Congress) ने ऐलान कर दिया कि राहुल गांधी (Rahul Gandhi) रायबरेली सीट (Raebareli seat) अपने पास ही रखेंगे. राहुल वायनाड सीट (Wayanad seat) छोड़ेंगे और प्रियंका अपना पहला चुनाव (First election.) केरल की वायनाड सीट से लड़ेंगी. प्रेस कॉन्फ्रेंस करने आए राहुल और प्रियंका ने कहा कि रायबरेली और वायनाड को एक नहीं, दो-दो सांसद मिल रहे हैं. लेकिन क्या अब कांग्रेस की सियासत में ये जोड़ी एक से भले दो बन पाएगी?
सवाल उठता है कि क्या भाई-बहन की जोड़ी संसद में कांग्रेस का वो सियासी गठजोड़ बन सकता है, जिससे दस साल बाद चुनावी नतीजों में 100 के करीब तक पहुंची कांग्रेस के लिए हालात और बदलेंगे? क्योंकि आखिरकार कांग्रेस ने तय किया है कि राहुल गांधी उत्तर संभालेंगे. प्रियंका गांधी दक्षिण. वायनाड की सीट से कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रखेंगी. अगर वायनाड से प्रियंका भी जीतती हैं तो 2096 किमी की दूरी के बीच उत्तर और दक्षिण से पहली बार लोकसभा में भाई बहन होंगे।
दरअसल, वायनाड से प्रियंका जीत गईं तो मां सोनिया गांधी राज्यसभा में होंगी. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी लोकसभा में होंगे. राहुल उत्तर से, प्रियंका दक्षिण से और सोनिया गांधी पश्चिमी हिस्से से प्रतिनिधित्व करती नजर आएंगी. क्योंकि सोनिया गांधी राजस्थान से राज्यसभा के लिए चुनी गई हैं।
उधर, प्रियंका गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने की खबर आने के बाद दक्षिण की राजनीति में उनका स्वागत भी शुरू हो गया है. केरल में कांग्रेस की साथी IUML यानी Indian Union Muslim League के नेताओं ने कहा है कि प्रियंका के वायनाड से चुनाव लड़ने से गठबंधन कोताकत मिलेगी. वहीं रायबरेली सीट राहुल गांधी ने अपने पास रखी तो समाजवादी पार्टी के नेताओं ने इसकी तारीफ की है. वो कह रहे हैं कि रायबरेली ने बड़ी जीत राहुल को दी थी, उसे रखकर यूपी में कांग्रेस ने सही फैसला किया है. दरअसल, केरल के वायनाड को कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है. ये कांग्रेस की सेफ सीट है, इसलिए पार्टी ने यहां से प्रियंका को उतारने का फैसला किया है. वहीं यूपी से आने वाले चुनावों में पार्टी की उम्मीदें अब बढ़ गई हैं।
कांग्रेस के लिए यूपी महत्वपूर्ण
अब सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के कितने विधायक हैं? देश के सबसे बड़े राज्य में कांग्रेस के कितने विधान परिषद सदस्य हैं? देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को इस बार के चुनावी नतीजों के बाद आइडिया यही आया है कि अगर जमीन दिल्ली तक मजबूत करनी है तो यूपी में सीट और जमीन, दोनों बचाना होगा. इस बार पिछले 3 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सबसे बेहतर प्रदर्शन उत्तर प्रदेश में रहा है. सीट भी बढ़ी और वोट शेयर भी. और तब कांग्रेस की रणनीति है कि राहुल रायबरेली सीट रखकर फ्रंट से यूपी में पार्टी को आगे बढ़ाएं तो 2027 के विधानसभा चुनाव में अगर समाजवादी पार्टी से गठबंधन रहता है तो मौका बन सकता है।
यूपी विधानसभा में कांग्रेस का प्रदर्शन
यूपी में पांच विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन को देखें तो 2002 कांग्रेस की 25 सीट (8.96 वोट प्रतिशत), 2007 में 22 सीट (8.61 वोट प्रतिशत), 2012 28 सीट (11.65 वोट प्रतिशत), 2017 में 7 सीट (6.25 प्रतिशत), 2022 में 2 सीटें (2.33 वोट प्रतिशत). यानी कांग्रेस देश के सबसे बड़े चुनावी राज्य में दो विधआनसभा सीट तक सिमट चुकी है. वहां दस साल बाद लोकसभा चुनाव में दस फीसदी के करीब कांग्रेस का वोट शेयर पहुंचा है और सीट छह हुई हैं. ऐसे में रायबरेली की सीट के साथ अमेठी जीत चुकी कांग्रेस को लगता है कि अखिलेश यादव के साथ गठजोड़ का मिला फायदा और भी मजबूत करके उस जमीन को हासिल किया जा सकता है, जिसे धीरे धीरे पार्टी खोती चली गई।
15 साल बाद यूपी में कांग्रेस के बदल रहे हालात
अब इसी शक्ति का इस्तेमाल करके कांग्रेस अपनी दशा-दिशा बदलना चाहती है. वजह ये है कि यूपी में कांग्रेस हाशिए पर है. यूपी में कांग्रेस के 80 में से 6 लोकसभा सांसद, 2014 में 2 और 2019 में सिर्फ एक सांसद थे. देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में सिर्फ 2 विधायक यूपी के 33 राज्यसभा में कांग्रेस के 0 सांसद यूपी विधान परिषद की 100 सीट में में एक भी MLC नहीं है. रायबरेली हो या अमेठी, यहां अगर किसी ने प्रचार करके जमीन को मजबूत किया तो प्रियंका गांधी ही थीं, जिन्होंने रायबरेली में 9 दिन और अमेठी में सात दिन प्रचार किया. अब उसी उत्तर प्रदेश की सीट भाई के पास रहेगी और वायनाड से चुनावी आगाज अब प्रियंका करेंगी. क्योंकि कम से कम 15 साल बाद कांग्रेस को लगा है कि यूपी में हाथ के हालात बदल सकते हैं।
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