उज्जैन (Ujjain)। पौराणिक कथाओं (mythology) के अनुसार, वेदों की माता गायत्री (mythology) की उत्पत्ति ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को हुई थी. इस दिन निर्जला एकादशी भी होती है. इस साल गायत्री जयंती (Gayatri Jayanti) की एकादशी तिथि 17 जून को 04:43 एएम से 18 जून को 06:24 एएम तक है. गायत्री जयंती के दिन रवि योग बन रहा है, जो 05:23 ए एम से दोपहर 01:50 पी एम तक है. इस बार रवि योग में गायत्री जयंती मनाई जाती है.
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि माता गायत्री की पूजा करने ध्यान और एकाग्रता बढ़ती है. जिन लोगों में एकाग्रता की कमी हो, वे सुबह में सूर्योदय के समय सूर्य को जल अर्पित करने के बाद गायात्री मंत्र ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् का जाप करें. माता गायत्री से ही वेदों की उत्पत्ति हुई है, इसलिए इस देवी को वेदों की माता भी कहा जाता है.
गायत्री जयंती पर पढ़ें चालीसा, करें आरती, पूरी होगी मनोकामना
गायत्री जयंती के अवसर पर आप मंत्र जाप आदि नहीं कर सकते हैं तो मां गायत्री की पूजा करें. उसके बाद गायत्री चालीसा का पाठ करें. इसमें मां गायत्री की महिमा का वर्णन किया गया है. चालीसा पढ़ने के बाद घी के दीप से मां गायत्री की आरती करें. आरती करने से पूजा की कमियां दूर होती हैं. इससे मां गायत्री प्रसन्न होंगी, उनकी कृपा से आपके जीवन में सुख समृद्धि आएगी. संकट दूर होंगे. आपके जप-तप आदि सफल सिद्ध होंगे।
दोहा
हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड।
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड।।
जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम।
प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम।।
चालीसा
भूर्भुवः स्वः ओम युत जननी। गायत्री नित कलिमल दहनी।।
अक्षर चौबिस परम पुनीता। इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता।।
शाश्वत सतोगुणी सतरुपा। सत्य सनातन सुधा अनूपा।।
हंसारुढ़ सितम्बर धारी। स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी।।
पुस्तक पुष्प कमंडलु माला। शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला।।
ध्यान धरत पुलकित हिय होई। सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई।।
कामधेनु तुम सुर तरु छाया। निराकार की अदभुत माया।।
तुम्हरी शरण गहै जो कोई। तरै सकल संकट सों सोई।।
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली। दिपै तुम्हारी ज्योति निराली।।
तुम्हरी महिमा पारन पावें। जो शारद शत मुख गुण गावें।।
चार वेद की मातु पुनीता। तुम ब्रह्माणी गौरी सीता।।
महामंत्र जितने जग माहीं। कोऊ गायत्री सम नाहीं।।
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै। आलस पाप अविघा नासै।।
सृष्टि बीज जग जननि भवानी। काल रात्रि वरदा कल्यानी।।
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते। तुम सों पावें सुरता तेते।।
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे। जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे।।
महिमा अपरम्पार तुम्हारी। जै जै जै त्रिपदा भय हारी।।
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना। तुम सम अधिक न जग में आना।।
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा। तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा।।
जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई। पारस परसि कुधातु सुहाई।।
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई। माता तुम सब ठौर समाई।।
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे। सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे।।
सकलसृष्टि की प्राण विधाता। पालक पोषक नाशक त्राता।।
मातेश्वरी दया व्रतधारी। तुम सन तरे पतकी भारी।।
जापर कृपा तुम्हारी होई। तापर कृपा करें सब कोई।।
मंद बुद्धि ते बुद्धि बल पावें। रोगी रोग रहित है जावें।।
दारिद मिटै कटै सब पीरा। नाशै दुःख हरै भव भीरा।।
गृह कलेश चित चिंता भारी। नासै गायत्री भय हारी।।
संतिति हीन सुसंतति पावें। सुख संपत्ति युत मोद मनावें।।
भूत पिशाच सबै भय खावें। यम के दूत निकट नहिं आवें।।
जो सधवा सुमिरें चित लाई। अछत सुहाग सदा सुखदाई।।
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी। विधवा रहें सत्य व्रतधारी॥
जयति जयति जगदम्बा भवानी। तुम सम और दयालु न दानी।।
जो सदगुरु सों दीक्षा पावें। सो साधन को सफल बनावें।।
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी। लहैं मनोरथ गृही विरागी।।
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता। सब समर्थ गायत्री माता।।
ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी। आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी।।
जो जो शरण तुम्हारी आवें। सो सो मन वांछित फल पावें।।
बल, बुद्धि, विद्या, शील स्वभाऊ। धन, वैभव, यश तेज उछाऊ।।
सकल बढ़ें उपजे सुख नाना। जो यह पाठ करै धरि ध्याना।।
दोहा
यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय।।
गायत्री माता की आरती
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥ जयति जय…
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जगपालक कर्त्री।
दु:ख शोक, भय, क्लेश कलश दारिद्र दैन्य हत्री॥ जयति जय…
ब्रह्म रूपिणी, प्रणात पालिन जगत धातृ अम्बे।
भव भयहारी, जन-हितकारी, सुखदा जगदम्बे॥ जयति जय…
भय हारिणी, भवतारिणी, अनघेअज आनन्द राशि।
अविकारी, अखहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥ जयति जय…
कामधेनु सतचित आनन्द जय गंगा गीता।
सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता॥ जयति जय…
ऋग, यजु, साम, अथर्व प्रणयनी, प्रणव महामहिमे।
कुण्डलिनी सहस्त्र सुषुमन शोभा गुण गरिमे॥ जयति जय…
स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी।
जय सतरूपा, वाणी, विद्या, कमला कल्याणी॥ जयति जय…
जननी हम हैं दीन-हीन, दु:ख-दरिद्र के घेरे।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत तउ बालक हैं तेरे॥ जयति जय…
स्नेहसनी करुणामय माता चरण शरण दीजै।
विलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै॥ जयति जय…
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये।
शुद्ध बुद्धि निष्पाप हृदय मन को पवित्र करिये॥ जयति जय…
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता।
सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥
गायत्री माता की जय, गायत्री माता की जय, गायत्री माता की जय!!!
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