नई दिल्ली: रूस-यूक्रेन जंग बार-बार भारत की परीक्षा लेती रही है. इस जंग में एक ओर इंडिया का जिगरी दोस्त रूस है तो दूसरी ओर यूक्रेन. यूक्रेन दुनिया से युद्ध खत्म कराने और शांति की गुहार लगा रहा है. भारत शुरू से विश्व शांति का पक्षधर रहा है. रूस-यूक्रेन जंग में भी भारत ने वार्ता के जरिए ही समाधान की वकालत की है. इटली में जी-7 समिट के दौरान जब पीएम मोदी ने यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की से हाथ मिलाया तो दुनिया हैरान रह गई. सबको लगा कि यूक्रेन से नजदीकी का मतलब रूस से दूरी तो नहीं. दरअसल, भारत और रूस की दोस्ती दशकों से पक्की रही है. मोदी और पुतिन में भी यही केमिस्ट्री दिखती है. रूस-यूक्रेन जंग के बीच पीएम मोदी ने ऐसा दांव चला है, जिससे जेलेंस्की तो खुश हैं ही, पुतिन भी नाराज नहीं होंगे. पीएम मोदी ने जंग खत्म करने की वकालत करते हुए दोनों को संतुष्ट करने का इंतजाम कर दिया है.
दरअसल, भारत हमेशा विश्व शांति का पक्षधर रहा है. सभी इंटरनेशनल मंचों पर भारत की विदेश नीति समान रही है. पीएम मोदी ने इस परंपरा को आगे बढ़ााया है. चाहे रूस-यूक्रेन जंग हो या हमास-इजरायल युद्ध, मोदी ने हमेशा कहा कि युद्ध किसी चीज का समाधान नहीं है. उन्होंने हमेशा शांति बहाली की वकालत की है. मोदी ने रूस-यूक्रेन जंग को भी वार्ता के जरिए सुलझाने की बारंबार बात दोहराई है. पीएम मोदी ने दुनिया के सामने अलग-अलग मंचों से साफ तौर पर कहा है कि भारत किसी भी युद्ध का समर्थन नहीं करता है. हम वार्ता के जरिए मामले को सुलझाने में यकीन रखते हैं. हालांकि, हकीकत यह भी है कि पीएम मोदी ने सीधे तौर पर यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की कभी आलोचना नहीं की है.
पीएम मोदी ने यह भी कहा है कि आत्मरक्षा का अधिकार सबको है. इंटरनेशनल कानून जो कहता है, उसके हिसाब से ही सभी समस्याओं का हल होना चाहिए. हालांकि, बीते कुछ समय में अब एक जो बदलाव हुआ है कि मोदी ने डंके की चोट कहा है कि राष्ट्रहित में बिना किसी दबाव के फैसला लेंगे. यही वजह है कि बीते कुछ समय से भारत पर काफी प्रेशर डाले गए, मगर रूस के साथ दोस्ती में अमेरिका की एक भी न चली. जेलेंस्की से भी हमारे रिश्ते अच्छे रहे हैं. यही वजह है कि मोदी ने स्विटजरलैंड में यूक्रेन पीस समिट में भारत की मौजूदगी को सुनिश्चित किया. स्विटजरलैंड में शनिवार से यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन हो रहा है. 100 से अधिक देश इसमें भाग ले रहे हैं. भारत भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवा रहा है.
भारत अगर इस समिट में शामिल नहीं होता तो रूस काफी खुश हो जाता, पर यूक्रेन और पश्चिम देश मायूस. वजह है कि रूस इसमें शामिल नहीं हो रहा है. मगर मोदी ने एक तीर से दो निशाने वाला दांव चला. यूक्रेन पीस समिट में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) पवन कपूर कर रहे हैं. मोदी का यह कदम कैसे मास्टरस्ट्रोक है, इसे समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि यूक्रेन पीस समिट में करीब 50 देशों के राष्ट्राध्यक्ष पहुंचे हैं. मगर मोदी या विदेश मंत्री जयशंकर खुद न जाकर पुतिन से अपनी दोस्ती को भी बरकरार रखने में कामयाब हुए हैं. एक तो यूक्रेन और पश्चिम देशों को दिखाने के लिए भारत की मौजदूगी भी हो गई. दूसरा कि रूस यह देखकर संतोष करेगा कि चलो इसमें मोदी या जयशंकर खुद नहीं गए हैं.
चीन और पाकिस्तान को भी स्विटजरलैंड में आयोजित इस समिट में शामिल होने का न्योता मिला था. मगर उन दोनों ने इस यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन में जाने से इनकार कर दिया. उन दोनों का कहना है कि अगर रूस समिट में शामिल नहीं होता है तो वे भी इसमें शामिल नहीं होंगे. ऐसे में भारत के लिए यह फैसला लेना काफी टफ था. मगर मोदी ने यूक्रेन में विदेश मंत्रालय के अधिकारी को भेजकर दुनिया को यह संदेश दे दिया कि जहां भी शांति की बात होगी, भारत वहां मौजूद रहेगा. दूसरी तरफ उन्होंने पुतिन को भी इशारा कर दिया कि इससे भारत और रूस की दोस्ती पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
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