इंदौर। शहर के सबसे बड़े सरकारी कालोनाइजर यानी इंदौर विकास प्राधिकरण ने गत वर्ष अपने इतिहास का सबसे बड़ा और कागजी बजट बोर्ड से मंजूर करवाया। अमूमन 1000-1200 करोड़ का प्राधिकरण का बजट रहता है, मगर नगर निगम से प्रतिस्पर्धा करने के चक्कर में पूर्व प्राधिकरण अध्यक्ष ने 6 गुना अधिक का बजट बनवाया, जो 15 फीसदी भी अमल में नहीं आ सका। वर्षभर में लगभग 800 करोड़ रुपए के ही प्रोजेक्ट प्राधिकरण ने किए, जिसमें ओवरब्रिजों के निर्माण, टीपीएस योजनाओं का विकास और आईएसबीटी सभागृह सहित अन्य कार्य शामिल रहे। अब प्राधिकरण इस वित्त वर्ष का बजट तैयार करने में जुटा है, जो कि 1100 करोड़ के आसपास ही रहेगा।
प्राधिकरण में चूंकि राजनीतिक नियुक्ति हुई थी और अध्यक्ष के रूप में जयपालसिंह चावड़ा ने कार्यभार संभाला और उन्होंने पिछले साल का 6 हजार करोड़ का बजट बनवाकर तमाम दावे भी किए, जिसमें 10 हजार की बैठक क्षमता वाले नए कन्वेंशन सेंटर, 450 करोड़ के स्टार्टअप पार्क, 448 करोड़ के 11 ओवरब्रिज, 80 करोड़ के चार सीएम राइज स्कूल, शहर के चारों तरफ ग्रीन रिंग रोड के निर्माण के अलावा सिटी फॉरेस्ट सहित तमाम सपने दिखाए गए। मगर पहले विधानसभा चुनाव की आचार संहिता और उसके बाद फिर लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के चलते अधिकांश प्रोजेक्ट फाइलों में ही रहे और वैसे भी यह संभव ही नहीं है कि प्राधिकरण सालभर में 6 हजार करोड़ रुपए की कमाई के साथ उतनी राशि सालभर में खर्च भी कर दे। दरअसल, भूखंडों और अन्य सम्पत्तियों को बेचकर ही प्राधिकरण की कमाई होती है, जो कि लगभग 800 करोड़ के आसपास रही और उतनी ही राशि प्राधिकरण ने निर्माणाधीन चारों ओवरब्रिज, दो आईएसबीटी, अंतरर्राष्ट्रीय स्विमिंग पुल, लता मंगेश्कर सभागृह के अलावा पांच और उन टीपीएस योजनाओं का विकास करने में खर्च की जिनको बोर्ड ने मंजूरी दी। इन टीपीएस योजनाओं में बगीचों, सडक़ों का, ड्रैनेज लाइन सहित अन्य कार्य चल रहे हैं। अब प्राधिकरण इस साल का बजट भी तैयार कर रहा है। आचार संहिता के चलते अप्रैल में बजट पेश नहीं हो पाया था। अब संभवत: अगले हफ्ते प्राधिकरण की बोर्ड बैठक में बजट प्रस्तुत किया जाएगा, जो वास्तविक धरातल पर रहेगा और 1000-1100 करोड़ रुपए तक का ही बजट बनेगा। यानी गत वर्ष की तुलना में 5 से 6 गुना कम का बजट रहेगा।
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