– हृदयनारायण दीक्षित
‘विकसित भारत’ का स्वप्न संकल्प पूरा होने की गारंटी है। यह संकल्प प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का है। प्रधानमंत्री मोदी तीसरी बार शपथ लेने जा रहे हैं। भारत के इतिहास में तीन बार का कार्यकाल केवल नेहरू को मिला था। मोदी जी ने अपने 10 वर्षीय कार्यकाल में तमाम चमत्कारिक काम किए हैं। भारतीय जन गण मन उन्हें प्यार और आदर देता है। उनके नेतृत्व में देश में राष्ट्रीय स्वाभिमान की नई इबारत लिखी गई है। भारतीय संस्कृति सारी दुनिया में लोकप्रिय हुई है। जम्मू-कश्मीर विषयक संविधान के अनुच्छेद 370 का निरसन सारी दुनिया के लिए आश्चर्य का विषय रहा है। अधिकांश सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्ता इसे असम्भव बता रहे थे। कुछ टिप्पणीकार अनुच्छेद 370 के समाप्त करने में सांप्रदायिक दंगों का खतरा देख रहे थे। लेकिन इस सबकी परवाह न करते हुए मोदी सरकार ने 370 को हटा दिया।
यह कार्य एनडीए की सरकार ही कर सकती थी। मोदी जी ने तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को शीर्ष सम्मान दिलाया। संस्कृति के क्षेत्र में इस सरकार के कार्यकाल में तमाम आश्चर्यजनक कार्य हुए हैं। कई मुस्लिम देशों ने भी भारतीय संस्कृति को सम्मान दिया है। संयुक्त अरब अमीरात में दुबई में राम कथा चली। दुबई के तमाम प्रतिष्ठित लोगों ने हिस्सा लिया। इसी तरह प्रधानमंत्री ने अबुधाबी में मंदिर का लोकार्पण किया। सेकुलरपंथी मंदिर के नाम पर बेजा टिप्पणियां करते हैं। लेकिन मोदी ने देश की सांस्कृतिक प्रतिबद्धता से समझौता नहीं किया। करतारपुर साहिब में श्रद्धालुओं के आवागमन की सुविधा बहाल कराई। कैलाश मानसरोवर के तीर्थ यात्री अव्यवस्था से पीड़ित थे। चीन में होने के कारण इसकी व्यवस्था कठिन थी। मोदी जी के नेतृत्व में कैलाश मानसरोवर की यात्रा आसान हो गई। भारतीय धर्म और संस्कृति की प्रतिबद्धता सांप्रदायिक नहीं है। मंदिर जाना, दर्शन करना भी सांप्रदायिकता नहीं है।
मोदी जी की सरकार के समय भारत के प्रत्येक जन के हृदय में उमंग और उल्लास रहा है। किसानों और गरीबों को हर तरह से समृद्ध बनाने के फैसले किए गए। मोदी ने राष्ट्रीय समृद्धि का संकल्प लिया। देश के प्रत्येक नागरिक को आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प लिए गए। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय ब्रिटिश राजनेता भारत की शासन करने की क्षमता का मजाक उड़ाते थे। ब्रिटिश विद्वान भारतीय दर्शन को भाववादी बताकर उपहास उड़ाते थे। इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री चर्चिल ने कहा था कि, ”भारत जाति पंथ में विभाजित समाज है। वे शासन नहीं चला पाएंगे।” बात-बात में यूरोप की प्रशंसा करने वाले टिप्पणीकार शर्मिंदा होंगे कि शासन न चला पाने की भारतवासियों की क्षमता वाली बात झूठ निकली। भारत में 78 वर्ष से स्वशासन और सुशासन की धारा का प्रवाह है। हम 18वीं लोकसभा चुन चुके हैं। इस बीच भारत ने राष्ट्रजीवन के सभी क्षेत्रों में आश्चर्यजनक उन्नति की है। कृषि वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन के नेतृत्व में हुई हरित क्रांति याद किए जाने योग्य है। राजग सरकार ने मोदी जी के नेतृत्व में स्वामीनाथन को भारत रत्न दिया है।
भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रति सारी दुनिया के विद्वान आकर्षित होते रहे हैं। इस ज्ञान परंपरा में प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता और योग्यता को प्रत्येक दृष्टि से संपन्न बनाने का ध्येय सर्वविदित है। दरअसल पश्चिम से आयातित सेकुलर विचार के विद्वानों ने भारतीय परंपरा को लगातार अपमानित किया है। मोदी जी ने भारत के स्वाभाविक विचार प्रवाह को प्रोत्साहन दिया। सांस्कृतिक प्रतीक स्वाभिमान के विषय थे और हमेशा रहेंगे। प्रधानमंत्री ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन कार्यक्रम में श्रेष्ठ भारत का स्वप्न रखा। इस कार्यक्रम से कथित प्रगतिशील सेकुलर मोदी पर योजना बनाकर हमलावर हुए। कथित ज्ञानी वर्ग ने प्रधानमंत्री के काशी कार्यक्रम को संविधान की भावना का अपमान बताया। आरोप लगाया गया कि प्रधानमंत्री ने धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लेकर अच्छा नहीं किया। लेकिन मोदी जी ने ऐसी टिप्पणियों की परवाह नहीं की।
2014 के पूर्व भारत का मन उदास था। अब मोदी जी के नेतृत्व में पूरे भारत में उल्लास है। पहले भारत का मन मजहबी राजनीति को लेकर आहत था। अब भारत का आत्मविश्वास यत्र तत्र सर्वत्र व्यापक हो गया है। सभी क्षेत्रों में उमंग और उल्लास का वातावरण है। धर्म संस्कृति के मामले में भी भारत का मन हीन भाव में था। आयातित सेकुलर पंथ का दुष्प्रभाव था। राजनैतिक वातावरण भी उत्साहवर्धक नहीं था। अब सब साथ-साथ हैं। परस्पर मैत्री और मिलजुल कर काम करने का वातावरण प्रत्यक्ष है। उन्होंने ‘सबका साथ और सबका विकास’ के नारे को सही सिद्ध कर दिया है। उनके संकल्प में देश का विश्वास है।
योग भारत का प्राचीन विज्ञान और दर्शन है। यह विश्व को भारतीय साधना का अद्वितीय उपहार है। मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में योग की मान्यता का प्रस्ताव किया। मोदी के प्रस्ताव को 170 से ज्यादा देशों का समर्थन मिला। 21 जून अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया। उन्होंने अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास में हिस्सा लिया। श्रीराम की मूर्ति के प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में भी वे उपस्थित रहे। यह मंदिर राष्ट्र का स्वप्न था। स्वप्न सच हो रहा है। उन्होंने केदारनाथ मंदिर में 15 घंटे साधना की। वे हाल ही में कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक पर 45 घंटे ध्यानरत रहे। वे भारत के सांस्कृतिक प्रतीकों की प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं। इस प्राचीन देश की मूल चेतना को प्रतिनिधित्व देते हैं। वे बांग्लादेश की यात्रा में ढाकेश्वरी मंदिर पहुंचे। देवी की उपासना की। नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर गए। पूजा और उपासना की। धर्म संस्कृति के प्रति सेकुलरों द्वारा बढ़ाया गया हीन भाव समाप्त हो रहा है। लोक में प्राचीन संस्कृति के प्रति आदर व आत्मविश्वास बढ़ा है।
10 साल के सांस्कृतिक पुनर्जागरण ने सिद्ध कर दिया है कि धर्म और संस्कृति की प्रतिबद्धता साम्प्रदायिकता नहीं है। मंदिर जाना रूढ़िवादिता नहीं है। गंगा जैसी पवित्र नदियों को प्रणाम करना पिछड़ापन नहीं है। श्रीराम, श्रीकृष्ण और शिव की प्रत्यक्ष उपासना रूढ़िवादिता नहीं है। वातावरण बदल चुका है। भारत की जीवन शैली और सांस्कृतिक प्रतीकों का सम्मान बढ़ा है। अब हिन्दू और हिन्दुत्व की उपेक्षा संभव नहीं है। सेकुलर राजनीति में सक्रिय वरिष्ठ महानुभाव भी हिन्दू प्रतीकों से जुड़ रहे हैं। हिन्दुत्व पर सबकी सर्वानुमति है।
मनभावन अमृत काल का अंतर्संगीत मोहक है। हिन्दू मान्यताएं सर्वमान्य हो रही हैं। भारतीय विचार के विरोधी सेकुलर पंथ की विदाई तय हो चुकी है। कला, काव्य शिल्प के क्षेत्र में भी सांस्कृतिक जागरण का जादू है। भारत का वातावरण प्रेममय हो गया है। संस्कृति तत्व लोकमान्य हो चुके हैं। नई तरह का नवजागरण है। इस राष्ट्र जागरण में भारत की रीति की प्रतिष्ठा है। भारत की प्रीति का अभिनन्दन है। यह सब काम आसान नहीं था। पहले हिन्दू होना पीड़ादायी था। अब हिन्दू होना सौभाग्यशाली होना है। यह नामुमकिन था लेकिन मोदी के कारण मुमकिन हो चुका है। समूचा विश्व भारत की लगातार बढ़ रही प्रतिष्ठा को ध्यान से देख रहा है। मोदी के पांच प्रण-‘2047 तक विकसित भारत’, ‘गुलामी के अहसास से आजादी’, ‘विरासत पर गर्व’, ‘एकता व एकजुटता पर जोर’ व ‘नागरिकों का कर्तव्य’-भारत के प्रण संकल्प हैं। राष्ट्र इनसे प्रतिबद्ध है। तीसरे कार्यकाल में ढेर सारी संभावनाएं हैं। प्रत्येक क्षेत्र में सामर्थ्य की बढ़ोतरी होगी। भारत की विश्व प्रतिष्ठा और बढ़ेगी।
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)
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