नई दिल्ली (New Delhi) । दिल्ली (Delhi) के सियासी अखाड़े में भाजपा (BJP) को मात देने के लिए धुर विरोधी आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) और कांग्रेस (Congress) साथ आए, लेकिन फिर भी तीसरी बार अपना सूपड़ा साफ होने से नहीं रोक पाए। भाजपा ने सभी सात सीटों पर जीत हासिल करके लगातार तीसरी बार दिल्ली में अपना परचम लहराया। गठबंधन के बाद भी मिली इस करारी हार को लेकर राजनीतिक विश्लेषक कई कारण बता रहे हैं। इसमें गठबंधन का सही तरीके से जमीन पर नहीं उतरने के अलावा कांग्रेस व आम आदमी पार्टी के अंदरूनी विवाद भी बड़ा कारण बने।
समन्वय नहीं दिखा
आप व कांग्रेस भले ही मिलकर लड़ रहे थे, लेकिन चुनाव प्रचार से लेकर मतदान वाले दिन तक दोनों के कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय नहीं दिखाई दिया। मतदान वाले दिन अधिकतर केंद्र पर बूथ कमेटियों के लोग दिखाई नहीं दिए। जहां कांग्रेस के उम्मीदवार थे, वहां आप कार्यकर्ता नहीं दिखे। जहां आप के उम्मीदवार थे, वहां कांग्रेस वाले नदारद रहे।
शीर्ष नेतृत्व में भी तालमेल नहीं
राजनीतिक जानकारों की मानें तो कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि शीर्ष नेताओं में भी समवन्य नहीं दिखा। राहुल गांधी ने दिल्ली में दो रैली की, लेकिन एक में भी आम आदमी पार्टी के नेताओं को न्योता नहीं दिया। जबकि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उस समय चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत पर बाहर थे। यही नहीं, समन्वय के लिए जो समितियां बनीं, वे भी महज खानापूर्ति तक ही सीमित रहीं।
विवादों ने बिगाड़ा गणित
चुनाव के दौरान दोनों दलों को अपने-अपने विवादों के चलते भी नुकसान उठाना पड़ा। कांग्रेस में गठबंधन की घोषणा के बाद टिकट बंटवारे को लेकर झगड़ा हुआ। कांग्रेस के प्रदेशध्यक्ष समेत कई बड़े नेताओं ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीच में भाजपा का दामन थाम लिया। इससे लोगों में गलत संदेश गया कि कांग्रेस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यह मामला शांत होता कि उसके बाद स्वाति मालीवाल के साथ मारपीट का मामला सामने आ गया। इंडिया गठबंधन एक भी महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं देकर विपक्ष के निशाने पर था, वहीं एक महिला सांसद के मारपीट के मामले ने उन्हें नुकसान किया।
लोकसभा चुनाव में हार होने के पांच बड़े कारण
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