नई दिल्ली (New Delhi) । भाजपा (BJP) को छोड़कर लगभग सभी दलों के द्वारा चुनाव के दौरान मुस्लिमों (Muslims) को अपने पाले में करने की कोशिशें की जाती हैं। इसके बावजूद संसद से विधानसभा (Parliament to Assembly) तक उनका प्रतिनिधित्व लगातार घटता जा रहा है। 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के मुताबिक, 28 मुस्लिम सांसद बने हैं। ये आंकड़े देर रात तक के रुझानों पर आधारित हैं, ये सभी 28 उम्मीदवार या तो जीत चुके थे या अपनी-अपनी सीटों पर आगे चल रहे थे।
2019 की तुलना में मुसलमानों की सांसद बनने की संख्या में सिर्फ 2 का इजाफा हुआ है। 2014 के चुनाव में लोकसभा में सबसे कम 22 मुस्लिम पहुंचे थे। 1980 में लोकसभा में इनकी उपस्थिति सबसे ज्यादा 49 थी।
आपको बता दें कि देश में धर्म के आधार पर जनसंख्या के मामले में मुस्लिम दूसरे स्थान पर हैं। हर चुनावी मौसम में निर्णायक कारक के रूप में उन्हें देखा जाता है, लेकिन जब प्रतिनिधित्व की बात आती है तो उन्हें सभी दलों के द्वारा पर हाशिए पर रखा जाता है।
भारत में 15 मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र हैं। पश्चिम बंगाल के बहरामपुर में 2019 में कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी चुनाव जीते थे। इस बार तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के यूसुफ पठान सांसद बने हैं। असम के बारपेटा सीट से इस बार असम गण परिषद (एजीपी) के फणी भूषण चौधरी ने जीत हासिल की है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से अधिकांश विपक्षी दल ध्रुवीकरण की लड़ाई के डर से मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने से कतराते रहे हैं। इसके कारण प्रत्येक आम चुनाव में उनकी संख्या में गिरावट आती रही है।
इस चुनाव की ही बात करें तो इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस, सपा और टीएमसी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को कम सीटें दी हैं। सपा के पास इस चुनाव में केवल चार मुस्लिम उम्मीदवार थे। 2019 में उसने आठ को टिकट दिया था।
कांग्रेस, टीएमसी, एसपी, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सीपीआई-एम) शामिल ने मिलकर सिर्फ 78 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। 2019 में 115 कैंडिडेट मैदान में थे। भाजपा ने एक और उसके सहयोगी जनता दल-यूनाइटेड (जेडी-यू) ने बिहार में एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा है।
राजनीतिक विश्लेषक राशिद किदवई ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि इसमें जल्द ही कोई बदलाव आएगा। 2024 में मुस्लिम मतदाता ने बहुत सावधानी से मतदान किया है। मुसलमानों ने चुपचाप एक कदम पीछे हटकर मतदान किया है। वे निश्चित रूप से उच्च पद पर एक सीट चाहते हैं, लेकिन अभी वे खुद के लिए असुरक्षित महसूस करते हैं। मतदान करते समय उन्होंने निर्णायक विकल्प चुने हैं।”
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