सोचा था सरकार बनने के बाद सुधरेगा ढर्रा, लेकिन
इंदौर के भाजपा पार्षदों से एक बात पूछो कि सबकुछ अच्छा चल रहा है तो कहेंगे कि अधिकारी सुनते नहीं और फिर विपक्ष से पूछो तो उसकी तो चल ही नहीं रही है। अब ऐसे में आम लोगों के काम का क्या होगा? कांग्रेस के पार्षदों ने सोचा था कि प्रदेश में फिर से सरकार बनने के बाद ढर्रा सुधरेगा, लेकिन अधिकारी तो कई पार्षदों को हाथ नहीं धरने देते। वर्तमान में सबसे ज्यादा परेशानी पानी को लेकर है। एक पार्षद को तो खुलेआम टंकी के बाहर कपड़े उतारकर बैठना पड़ा। दूसरा कोई काम हो तो अधिकारी बजट नहीं होने का बहाना बना देते हैं। बजट कब आएगा, कैसे आएगा इसको लेकर भी किसी के पास कोई जवाब नहीं है। वहीं दूसरी ओर जिस तरह से नगर निगम में घोटालों की परत-दर-परत खुलती जा रही है, उससे साबित हो रहा है कि शहर की गाढ़ी कमाई का पैसा अधिकारी किस तरह लुटा रहे थे।
मामा ने उतारी लू
सबको मालूम है कि पार्षदों में मनीष मामा बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं और फिर कोई काम नहीं हो तो वे अपनी स्टाइल में जवाब दे ही देते हैं। बात नगर निगम की है। देखने वालों ने देखा है कि एक-दो निचले स्तर के अधिकारियों को वार्ड का कुछ काम बताया गया था, लेकिन वे आनाकानी कर रहे थे। ये अधिकारी अपने आपको महापौर से भी आगे मान रहे थे। बस फिर क्या था, मामा ने उन्हें अपने कैबिन में बुलाया और अपनी स्टाइल में समझा दिया कि मुझसे पंगा मोल मत लेना, नहीं तो मेरा नाम शहर में पूछ लो कि मामा क्या चीज है?
कांग्रेस की राजनीति से दूर क्यों हो रहे चड्ढा
राजीव गांधी और जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि पर शहर कांग्रेस अध्यक्ष सुरजीतसिंह चड्ढा का गायब होना कुछ और ही इशारा कर रहा है। चड्ढा आखिर क्यों शहर की राजनीति में भाग नहीं ले रहे हैं? वहीं अधिकांश कार्यकारी अध्यक्ष भी नेमप्लेट की राजनीति कर रहे हैं। कुछ तो कहने लगे हैं कि चुनाव परिणाम के बाद जिले और शहर के अध्यक्षों की रवानगी हो सकती है और कोई युवा चेहरा इंदौर कांग्रेस की बागडोर संभाल सकता है।
डर के आगे जीतू पटवारी ही हैं
भोपाल में कांग्रेस के बड़े नेताओं की बैठक में 29 सीटों को लेकर समीक्षा होना थी, लेकिन उसके पहले ही कांग्रेस के एक बड़े नेता ने यह बोलकर हलचल मचा दी कि इस तरह डर के फैसले नहीं लिए जाते हैं। अगर पहले ही कुछ कड़े फैसले ले लिए जाते तो कांग्रेस की प्रदेश में यह हालत नहीं होती। एक-दो लोगों के जाने के बाद सख्ती करना थी, लेकिन नहीं की गईऔर वे आसानी से दूसरे दल में शामिल हो गए। अब इस राजनीतिक बयान के बाद कांग्रेस में हलचल होना थी और हलचल का इशारा भी सीधे-सीधे हो गया कि ये किसके लिए कहा है। डर वाले बयान के निशाने पर जीतू पटवारी थे।
शहर के कुछ ठेकेदारों ने अब उज्जैन का रुख करना शुरू कर दिया है। सिंहस्थ की तैयारियों के लिए धर्मस्व विभाग उज्जैन शिफ्ट करने के बाद अब बड़े ठेकेदार उज्जैन के छोटे-मोटे भाजपा नेताओं के संपर्क में लगे हैंं कि कहीं कोई काम मिल जाए। वैसे सिंहस्थ के लिए अभी बजट की घोषणा नहीं हुई है। जाहिर है करोड़ों से ज्यादा का बजट होना है और फिर इंदौर वाले कहां पीछे रह सकते हैं?
-संजीव मालवीय
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