नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के चार चरण की वोटिंग के बाद अब बारी पांचवे चरण (fifth step) की है. पांचवें चरण में उत्तर प्रदेश की 14 लोकसभा सीटों पर 144 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला 20 मई को मतदाता करेंगे. इस चरण का लोकसभा चुनाव अवध और बुदेलखंड के इलाके वाली सीटों (Seats in Awadh and Budelkhand areas) पर होना है, जहां पिछले दो चुनाव से बीजेपी का दबदबा बना हुआ है. बीजेपी 2014 में 12 सीटें जीती थी तो 2019 में बढ़कर 13 हो गई हैं. विपक्ष के पास इकलौती सीट रायबरेली है. इस बार का मुकाबला पिछले दो चुनाव से काफी अलग माना जा रहा है. पांचवें चरण में 14 में से पांच सीटें कम मार्जिन वाली हैं, जहां पर सियासी गेम इस बार बदल सकता है?
लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में अवध क्षेत्र की 8 लोकसभा सीटें हैं तो बुलंदेलखंड की चार सीट हैं. इसके अलावा दो सीट दोआब की इलाके की हैं. अवध इलाके में आने वाली लखनऊ, मोहनलालगंज, रायबरेली, अमेठी, फैजाबाद, कैसरगंज, बाराबंकी, गोंडा सीट है. बुलंदेखंड में जालौन, झांसी, हमीरपुर और बांदा सीट है. इसके अलावा फतेहपुर और कौशांबी सीट है, जहां पर 20 मई को मतदान होगा.
बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार के गढ़ माने जाने वाले रायबरेली और अमेठी में जबरदस्त तरीके से कांग्रेस की घेराबंदी की थी, जिसका नतीजा था कि अमेठी सीट पर कमल खिलाने में कामयाब रहीऔर रायबरेली नहीं जीत सकी थी. हालांकि, पांचवें चरण में कम मार्जिन के साथ वाली लोकसभा सीटों में अमेठी भी शामिल है. इसके अलावा बांदा, फैजाबाद, मोहनलालगंज और कौशांबी सीट है, जहां पर बीजेपी की जीत का अंतर एक लाख से कम था.
2019 में बीजेपी ने अमेठी सीट को 55120 वोटों से जीता था जबकि फैजाबाद को 65477 वोटों से, बांदा को 58938 वोट, कौशांबी में 38722 और मोहनलालगंज को 90204 वोटों से जीता था. इस बार के सियासी समीकरण बदले हुए हैं. बसपा के बजाय सपा 2024 में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जिस तरह से ओबीसी और अतिपिछड़े वर्ग पर दांव खेला है, उसके चलते अगर वोटों का उलटफेर हुआ तो फिर इन पांच सीटों पर सियासी मिजाज बदल सकता है.
बुदंलेखंड की चार लोकसभा सीटों पर बीजेपी 2014 से अपना दबदबा बनाए हुए हैं, जो कभी बसपा का गढ़ हुआ करता था. पिछले दस सालों में बसपा और सपा ने तमाम कोशिशें करके देख चुकी है, लेकिन बुदंलखेड में बीजेपी के वोटबैंक में सेंधमारी नहीं कर सकी है. अवध क्षेत्र में बीजेपी ने अपने कोर वोटबैंक से साथ जिस तरह गैर-जाटव दलित वोटबैंक खासकर पासी और कोरी समुदाय के बीच अपनी पैठ जमाई है, उसके चलते ही अमेठी में राहुल गांधी को शिकस्त देने में सफल रही थी. इसके अलावा बीजेपी अतिपिछड़े वर्ग के वोटबैंक को भी अपने साथ साधने में कामयाब रही है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को वोट प्रतिशत बढ़ने का सियासी लाभ मिला था.
कांग्रेस ने 2009 में अपनी परंपरागत सीट रायबरेली और अमेठी पर कब्जा बरकार रखने के साथ कांग्रेस ने भी फैजाबाद, गोंडा, बाराबंकी और झांसी में जीत दर्ज कर ली थी जबकि बसपा के खाते में हमीरपुर लोकसभा सीट गई थी. लखनऊ सीट छोड़कर बाकी सीटें सपा जीतने में कामयाब रही थी. 2014 में रायबरेली और अमेठी सीट छोड़कर सभी सीटें बीजेपी मोदी लहर में जीतने में सफल रही और 2019 में अमेठी सीट भी अपने नाम कर लिया.
लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में बसपा प्रमुख मायावती को बड़ी उम्मीद है. मोहनलालगंज, हमीरपुर, बांदा, जालौन और बाराबंकी में त्रिकोणीय मुकाबला होने पर फायदा मिलने की उम्मीद है. इसी वजह से पार्टी ने इन सीटों पर प्रत्याशी चयन में अपने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले का बखूबी इस्तेमाल किया है। इसी के तहत पार्टी ने गोंडा, कैसरगंज, फैजाबाद, हमीरपुर में ब्राह्मण प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. मायावती ने लखनऊ में रैली करते हुए अवध प्रदेश बनाने की मांग को उठाया, लेकिन बसपा के लिए अपने कोर वोटबैंक दलित समुदाय को बचाए रखने की चुनौती इस बार है.
हालांकि, दलित वोटों पर सपा-कांग्रेस गठबंधन और बीजेपी दोनों की नजर है. बीजेपी अपने कमजोर माने जाने वाले दुर्ग को दुरुस्त करने में जुटी है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा को साधकर कौशांबी सीट पर अपना दबदबा बनाए रखने का प्लान है तो अमेठी में सपा के बागी विधायक राकेश प्रताप सिंह और रायबरेली में सपा के विधायक मनोज पांडेय को साधा है. सपा के बागी विधायक मनोज पांडेय को रायबरेली के साथ-साथ अमेठी में लगा रहा.
फैजाबाद सीट को फिलहाल में अपने पास रखने के लिए बीजेपी ने सपा विधायक अभय सिंह को भी अपने साथ मिला लिया है. अवध क्षेत्र में सियासी समीकरण देखें तो पासी वोटर सबसे अहम है तो बुंदेलखंड में कोरी और कुर्मी वोटर निर्णायक हैं. इसके अलावा कुशवाहा वोटर भी ठीक-ठाक संख्या में हैं. सवर्ण वोटों में ठाकुर और ब्राह्मण वोटर ही यहां की सियासी फिजा को मोड़ने के लिए माहिर हैं. ऐसे में देखना है कि राहुल गांधी रायबरेली से उतरकर गांधी परिवार के इकलौते दुर्ग को यूपी में बचाए रख पाते हैं या फिर बीजेपी के सियासी चक्रव्यूह में फंसते हैं?
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