• img-fluid

    लोकसभा चुनावः चुनावी सरगर्मी के साथ ही मौसमी गर्मी भी बढ़ी, हीटवेव के बीच हो रहा मतदान

  • May 07, 2024

    नई दिल्ली (New Delhi)। भारत (India) में इस समय ढाई महीने लंबा लोकतंत्र का उत्सव यानी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) चल रहा है. पूरी दुनिया की निगाहें इस पर टिकी हैं. अप्रैल में गर्मी के मौसम की शुरुआत (beginning of summer season) से ही इस बार भारत में हीटवेव यानी लू (heatwave) चलने लगी है. सात चरणों के चुनाव में अब अहम चरण आरंभ हो रहे हैं. चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ मौसमी गर्मी भी बढ़ रही है. इस चुनावी प्रक्रिया पर भीषण गर्मी और लू का प्रभाव साफ दिख रहा है. पहले दो चरण में कम मतदान ने आयोग के साथ पार्टियों को भी चिंतित कर दिया है. मौसम और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था क्लाईमेट ट्रेंड्स के एक अध्ययन में बढ़ती गर्मी व हीटवेव के कारणों पर विस्तार से बात की गई है।


    आखिर क्यों बढ़ रही है गर्मी और लू?
    भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने पहले ही इस वर्ष अप्रैल से जून तक औसत रूप से लू वाले दिनों की संख्या दोगुनी होने की बात कही है, जिसका मतलब है कि पहले के 4 से 8 लू चलने वाले दिनों की तुलना में इस बार 10 से 20 दिन लू का प्रभाव तेज रह सकता है. साल 2023 की तुलना में यह वर्ष अधिक गर्म रहने की संभावना है. 2023 अभी तक के इतिहास में सबसे गर्म साल के रूप में दर्ज हो चुका है यानी समझा जा सकता है कि गर्मी का मिजाज इस बार क्या रहने वाला है।

    देश के कुछ स्थानों पर तो अभी ही तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है जबकि अधिकांश स्थानों पर यह 42-45 डिग्री के बीच रह रहा है. अप्रैल में लू वाले दिनों की संख्या 15 तक पहुंची जो कि सबसे लंबी अवधि है. आर्द्रता से जूझते पूर्वी और जल से घिरे प्रायद्वीपीय भारतीय क्षेत्रों में तो इसका सर्वाधिक प्रभाव रहा है. केरल में रिकार्ड हीटवेव का असर है और गर्मी के कारण 10 लोगों की मौत की बात सामने आई है. केरल स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के अनुसार 22 अप्रैल तक गर्मी से संबंधी परेशानियों जैसे तेज धूप, शरीर पर चकत्ते और हीट स्ट्रोक के 413 मामले सामने आ चुके हैं. ओडिशा में भी करीब 16 जिलों में गर्मी के कारण 124 लोगों को हास्पिटल में भर्ती कराने की बात सामने आई है।

    अप्रैल में प्री मॉनसून बारिश और आंधी-बारिश की कमी को तापमान बढ़ने का कारण माना जा रहा है. इसी के साथ देशव्यापी रूप से बारिश में 20 प्रतिशत तक की कमी रही है. अप्रैल 2024 में देश के दक्षिणी प्रायद्वीपीय क्षेत्र में बारिश 12.6 मिमी हुई जोकि सन 1901 के बाद से पांचवीं सबसे कम बारिश है और 2001 के बाद से सबसे कम. इसके बाद पूर्व और उत्तर पूर्व भारत का नंबर है जहां बारिश में करीब 39 प्रतिशत की कमी रही है. आईएमडी के महानिदेशक संजय महापात्र के अनुसार ओमान, इससे सटे हुए क्षेत्रों और आंध्र प्रदेश में एंटीसाइक्लोन परिस्थितियों की निरंतर उपस्थिति के कारण मौसमी प्रक्रिया ठीक से बन ही नहीं पाई. इस कारण ओडिशा और पश्चिम बंगाल में अधिकांश दिन समुद्री हवा नहीं पहुंची, जिससे जमीन से चलने वाली गर्म हवा को खुला रास्ता मिला और तापमान बढ़ा हालांकि लगातार पश्चिमी विक्षोभ से पश्चिमोत्तर के मैदानी क्षेत्र में हीटवेव का असर नहीं रहा. इसके अलावा अल नीनो के बचे-खुचे प्रभाव ने भी हीटवेव में वृद्धि की है।

    ग्रैंथम इंस्टीट्यूट फार क्लाईमेट चेंज एंड द एनवायरमेंट के वैज्ञानिक और सीनियर लेक्चरर डा. फ्रेडरिक ओटो का कहना है, ‘कठिनतम मौसम परिस्थितियों की बात करें तो भारत में हीटवेव सबसे अधिक जानलेवा होती हैं. तेजी से गर्म होती दुनिया में उनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. जब तक दुनिया में फासिल फ्यूल का प्रयोग होगा, तब तक इस तरह की घटनाओं के सामान्य आपदा बनने की संख्या में बढ़ोतरी होगी।

    मई में क्या रहेगा सीन?
    गर्मी के मौसम के मुख्य महीने मई में प्रवेश के साथ ही दक्षिणी राजस्थान, पश्चिमी मध्य प्रदेश, विदर्भ, मराठवाड़ा और गुजरात में सामान्य से अधिक तापमान वाले दिनों की संख्या 5 से आठ तक बढ़ सकती है. मई में शेष राजस्थान, पूर्वी मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ के कुछ क्षेत्रों, अंदरूनी ओडिशा, गंगा किनारे वाला पश्चिम बंगाल का क्षेत्र, झारखंड, बिहार, उत्तरी अंदरूनी कर्नाटक और तेलंगाना के साथ तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में अधिक तापमान वाले दिनों की संख्या 2 से 4 तक बढ़ सकती है।

    अलनीनो और ग्लोबल वार्मिंगः दोहरी दिक्कत
    अलनीनो एक मौसमी प्रक्रिया है जिससे दुनिया भर में गर्म मौसम आता है और जो एक्सट्रीम वेदर कंडीशन की स्थिति का खतरा बढ़ा सकती है. वैश्विक तापमान का प्रभाव कई मौसमी प्रक्रियाओं की स्थिति को बदल रहा है. कई वैज्ञानिकों का कहना है कि अल नीनो के कारण क्लाईमेट चेंज का दुष्प्रभाव बढ़ेगा क्योंकि बढ़ता हुए वैश्विक तापमान स्वयं में कठिन मौसम परिस्थितियों का कारण बन रहा है. इस कारण अल नीनो और बढ़ते तापमान के प्रभाव को एक साथ रखा जाए तो इससे वैश्विक तापमान में रिकार्ड वृद्धि का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. इससे आपदा जैसी मौसमी परिस्थितियों की संभावना भी बनती है. वर्ष 2015-16 में अल नीनो भी था और यह वर्ष तब तक का सबसे गर्म वर्ष भी बना था. सुपर अलनीनो के कारण वर्ष 2023 इतिहास का सबसे गर्म साल बन गया. अल नीनो और ग्लोबल वार्मिंग के दोहरे प्रभाव के कारण बड़े क्षेत्र में सूखा और जंगलों की आग जैसी परिस्थितयों को खतरा दोगुना हो जाता है।

    दूसरी तरफ, अल नीनो की विपरीत ठंडक लाने वाली मौसमी परिस्थिति ला नीना वाले वर्षों में भी वैश्विक तापमान में रिकार्ड वृद्धि देखने को मिली है. जो क्लाईमेट चेंज के कारण दुनिया गर्म होने का स्पष्ट संदेश है. उदाहरण के लिए वर्ष 2022 ला नीना का वर्ष था जिसे इतिहास का पांचवां सबसे गर्म वर्ष भी दर्ज किया गया।

    बीते दस वर्ष सबसे गर्म
    मौसम को देखते हुए भारत के चुनाव आयोग ने मतदाताओं को हीटवेव व गर्मी से बचाने के लिए जरूरी कदम भी उठाए हैं. टास्क फोर्स बनी है जिसमें आयोग के साथ मौसम विभाग, एनडीएमए और स्वास्थ्य मंत्रालय के लोग हैं. बीते दस वर्ष सबसे गर्म रहे हैं. 2014 और 2019 में बीते दो लोकसभा चुनाव इसी गर्म दशक में हुए हैं. वैश्विक औसत तापमान वर्ष 2014 में एक डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था जबकि 2019 में यह बढ़कर 1.2 डिग्री सेल्सियस हो गया।

    क्या EC के पास है बेहतर मौसम में चुनाव कराने का प्रावधान?
    नेशनल ओसेनिक एंड एटमास्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) और नासा का डाटा बताता है कि वर्ष 2023 में 144 साल के इतिहास में वैश्विक तापमान सबसे अधिक (1.4 डिग्री सेल्सियस) रहा. एनओएए ने चेताया है कि वर्ष 2024 के सबसे गर्म वर्ष रहने की करीब 33 प्रतिशत आशंका है और 99 प्रतिशत आशंका है कि यह मानव इतिहास का पांचवां सबसे गर्म वर्ष रह सकता है. मौसम वैज्ञानिकों ने भारत को गंभीर हीटवेव क्षेत्र वाली श्रेणी में रखा है. यदि उत्सर्जन यूं ही होता रहा तो इस क्षेत्र में हीटवेव की संख्या में छह गुना तक वृद्धि हो सकती है. जिससे वर्ष 2050 तक दुनिया की एक अरब आबादी को खतरा बढ़ सकता है. वर्तमान मौसमी ट्रेंड के कारण लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या साल के किसी और बेहतर मौसम में चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग के पास कोई प्रावधान है? संविधान के अनुसार लोकसभा के पांच वर्ष के कार्यकाल की समाप्ति पर चुनाव आयोग के पास छह माह की अवधि चुनाव कराने के लिए होती है।

    मौसम के चलते हिमाचल प्रदेश में पहले कराए गए थे चुनाव
    पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा 1951 की एक घटना का हवाला देते हुए बताते हैं कि तब हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फ गिरने की आशंका के कारण सितंबर में चुनाव कराए गए थे जबकि बाकी देश में अक्टूबर में मतदान हुआ. वह कहते हैं कि चुनाव की तारीखों में संशोधन की संभावना है, लेकिन इसके साथ अन्य कई कारणों पर भी गंभीरता से विचार करना होगा. लवासा के अनुसार ‘चुनाव के दौरान अधिक बाधाओं को दूर रखने के लिए मौसमी परिस्थितियों पर हमेशा ध्यान दिया जाता है. चुनाव आयोग के लिए 180 दिन की अवधि में चुनाव कराने का प्रविधान है, लेकिन उसे बहुत सतर्क रहना होगा कि इससे सरकार के कामकाज में एक भी दिन की कमी न हो. एक और समस्या यह है कि फरवरी-मार्च का समय परीक्षाओं का होता है सो उसे भी नहीं छेड़ा जा सकता है. अति वाली परिस्थितियों से बचने के लिए अत्यधिक सावधानी बरती जाती है।

    एक अन्य पूर्व चुनाव आयुक्त ओपी रावत भी इसी तरह के विचार रखते हुए कहते हैं, ‘सभी दलों के बीच सामंजस्य से इसका हल किया जा सकता है. लोकसभा चुनाव कराने के लिए 180 दिन का कालखंड होता है. मसलन इस लोकसभा चुनाव के लिए 17 दिसंबर 2023 से 16 जून 2024 तक की अवधि आयोग के पास थी. चूंकि नवंबर-दिसंबर में कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव थे, इस कारण लोकसभा चुनाव को 2-3 माह बाद रखा गया. इस प्रकार की स्थिति से बचने के लिए चुनाव आयोग को सभी दलों की बैठक बुलानी चाहिए जहां विधानसभा चुनाव विंलबित करके संसदीय चुनाव छह माह की अवधि में कराए जाने पर सहमति बने. 2029 में एक जनवरी से 30 जून तक चुनाव की अवधि होगी. फरवरी-मार्च का समय सबसे बेहतर रहेगा. अन्यथा कानून में संशोधन हो ताकि चुनाव आयोग राज्यों के चुनाव बाद में करा सके.’ बढ़ती गर्मी और कम होते मतदान प्रतिशत के बीच इस संबंध पर बहस हो रही है, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ती गर्मी के प्रभाव को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

    पॉलिसी बनाने में क्लाईमेट चेंज के प्रभाव का ध्यान
    भारत में किसी अन्य प्राकृतिक आपदा की तुलना में हीटवेव से अधिक मौतें हुई हैं. इंटरगवर्नमेंटल पैनल आन क्लाईमेट चेंज (आईपीसीसी) की छठी एसेसमेंट रिपोर्ट के अनुसार मनुष्यों द्वारा जलवायु में हो रहे बदलाव ने 1950 से अब तक हीटवेव की संख्या और तीव्रता में बढ़ोतरी की है. अधिक ग्लोबल वार्मिंग हीटवेव की संख्या व तीव्रता को और बढ़ाएगी. स्काईमेट वेदर के वाइस प्रेसीडेंट, मेटीरियोलाजी एंड क्लाईमेट चेंज महेश पलावत कहते हैं, ‘अति वाली मौसमी परिस्थितियों के लिए क्लाईमेट चेंज की भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता है. लंबी गर्मियां कठिन मौसमी परिस्थितियां ला सकती हैं जोकि अल नीनो जैसे प्राकृतिक कारणों से और गंभीर हो सकती हैं. वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी के कारण मौसमी परिस्थितियां उस तरह कार्य नहीं कर रही हैं जैसा उन्हें करना चाहिए. मानवजनित कारणों ने क्लाईमेट चेंज का दुष्प्रभाव दोगुना कर दिया है. खतरनाक हीटवेव इसी का एक उदाहरण है।

    इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रापिकल मेटीरियोलाजी के सीनियर साइंटिस्ट राक्सी मैथ्यू कोल कहते हैं, ‘डाटा से पता चलता है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हीटवेव की संख्या, अवधि, प्रभाव और क्षेत्र में वृद्धि हुई है. इसका मतलब है कि गर्मी से बचाव का कोई रास्ता नहीं है. सभी मॉडल कह रहे हैं कि भविष्य में हीटवेव बढ़ेगी. इससे अन्य मौसमी परिस्थितियां बदलेंगी और स्वास्थ्य को खतरे के साथ जंगल की आग और वायु प्रदूषण भी बढ़ेगा।

    Share:

    NDA के लिए 400 पार का नारा कैसे होगा सफल? पीएम मोदी ने बताय 2024 तक का एजेंडा

    Tue May 7 , 2024
    नई दिल्‍ली(New Delhi) । लोकसभा चुनाव 2024 (lok sabha election 2024)में दो चरणों का मतदान (vote)पूरा हो चुका है। मंगलवार को तीसरे चरण की वोटिंग(third phase voting) होना है। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party)एक बार फिर NDA के लिए 400 पार का नारा मजबूत करती नजर आ रही है। हाल ही में […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    रविवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved