नई दिल्ली (New Delhi)। पिछले कई दशकों से भारत-चीन (India-China)के बीच सीमा(Limit) को लेकर तनाव (Tension)की स्थिति बनी हुई है। दोनों देश मुकरता से अपने-अपने दावें करते है । इस बीच, विदेश मंत्री एस जयशंकर(Foreign Minister S Jaishankar) ने कहा है कि चीन ने भारतीय सीमा का अतिक्रमण किया है लेकिन यह सारा अतिक्रमण 1958-59 के दौरान हुआ था और अब भारत चीन के साथ सीमा को लेकर समझौता करने की कोशिश कर रहा है। विदेश मंत्री ने एक टेलीविजन नेटवर्क के साथ एक साक्षात्कार में ये बात कही। उन्होंने साफ किया कि भारत सरकार चीन के मामले में चुप नहीं बैठी है। लेकिन कांग्रेस लोगों को गुमराह करने में लगी है और उसके शासन के दौरान कब्ज़ाई गई हमारी ज़मीन को अब का अतिक्रमण बताने की कोशिश कर रही है।
यह पूछे जाने पर कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी का आरोप है कि चीन भारतीय सीमा में आ गया है और हमारी जमीन पर कब्जा करके बैठा है। विपक्ष यह भी कहता है कि पाकिस्तान पर तो सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक हो गई पर चीन पर खामोशी रहती है, डॉ. जयशंकर ने कहा, “चीन पर खामोशी नहीं है। चीन के बारे में लोगों को गुमराह किया जा रहा है। कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी कहते हैं कि चीन ने हमारी धरती पर लद्दाख में एक पुल बना लिया है। अगर आप बारीकी में जाएंगे तो देखेंगे कि ये पुल जरूर बनाया है। वहां एक झील है पैंगोंग। पैंगोंग पर चीन ने 1958 में कब्जा किया था।”
नेहरू के टाइम में ही चीन ने कब्जाई भारत की जमीन
उन्होंने आहे कहा, ”इसी तरह कांग्रेस कहती है कि चीन अरुणाचल प्रदेश में एक गांव बसा रहा है। अरुणाचल प्रदेश में एक जगह है लोंगजू। आप संसद के रिकॉर्ड में देखेंगे तो पाएंगे कि पंडित नेहरू ने 1959 में भारत की संसद में कहा था कि लोंगजू पर चीन ने आकर कब्जा कर लिया है। हमारे हाथ से निकल चुका है। कांग्रेस के एक प्रवक्ता ने कहा था कि शिन्जियांग घाटी में काराकोरम के पास चीन एक लिंक रोड बना चुका है। इस लिंक रोड के माध्यम से चीन सियाचीन के पास तक आ जाएगा। ये इलाका भारत के हाथ से 1963 में निकल गया था।”
विदेश मंत्री ने कहा, “वो जमीन जरूर चीन के पास गई है, लेकिन गई थी 1958 और 1962 के बीच में। और हमारी कोशिश है कि हम चीन के साथ सीमा पर समझौता करें। इसलिए कांग्रेस वाले जानबूझ कर झूठ बोलते हैं। ये दिखाना चाहते हैं कि जो कुछ भी हो रहा है, अब हो रहा है। सच यह है कि ये अब नहीं हो रहा, बल्कि पहले हो चुका है। 1962 में हम बिना तैयारी के चले गए। सड़कें नहीं थीं, आधारभूत ढांचा नहीं था। हमारे जवानों के पास तक खाना-पीना, बारूद, हथियार कैसे पहुंचाएं, कोई सिस्टम नहीं था।”
10 साल में सीमा पर काफी हुआ काम
उन्होंने कहा, “अब जो भी बुनियादी ढांचा बना है, पिछले 10 सालों में बना है। जब मोदी जी सरकार में आए थे, उस समय चीन सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास बजट 3500 करोड़ था। इस समय 15,000 करोड़ रुपये का बजट है।”
लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के चुनावी एजेंडे में विदेश नीति के शामिल होने के मायने पूछे जाने पर डॉ. जयशंकर ने कहा कि इसके अलग-अलग कारण हैं। एक तो ये सार्वभौमिक दुनिया है और दुनिया में कुछ भी हो रहा है, वह हर देश को प्रभावित करता है। हर नागरिक पर उसका असर होता है। पहले जो हम सोचते थे विदेश नीति के बारे में कि कहीं दूर किसी देश में कुछ हो रहा है तो हम क्यों परवाह करें, वो जमाना अब खत्म हो गया है। अब कहीं भी कुछ होता है, गाज़ा में कुछ होता है, यूक्रेन में कुछ होता है, तुरंत ही उसका असर पूरी दुनिया पर होता है। यूक्रेन में लड़ाई होती है तो उसका असर पट्रोल की कीमतों पर पड़ता है। काला सागर में कुछ होता है तो अनाज की कीमतें बढ़ जाती हैं। लाल सागर में हूतियों ने हमला किया तो पूरा व्यापार बिगड़ जाता है। इसलिए सभी की जिंदगी में इसका कहीं ना कहीं सीधा असर होता है।
जल्द ही तीसरे नंबर पर होगी भारत की अर्थव्यवस्था
उन्होंने कहा कि दूसरा विषय ये है कि आज की युवा पीढ़ी को लगता है कि भारत अब आबादी में नंबर एक है, अर्थव्यवस्था में नंबर पांच हैं, हम जल्द ही तीन पर आएंगे। हम एक तरह से सभ्यतागत शक्ति हैं। इसलिए हमें दुनिया के सामने हमारी विरासत, हमारी संस्कृति और हमारी पहचान को रखना चाहिए। ये देश के लिए गर्व का विषय है इसलिए दुनिया पर हमें असर डालना है और दुनिया का असर भी हम पर पड़ेगा।
विदेश मंत्री ने कहा, “तीसरी बात ये है कि आज कितने ही लोग पढ़ाई और रोजगारी के लिए बाहर जाते हैं। लगभग दो करोड़ भारतीय नागरिक अन्य देशों में रहते हैं। और कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ होता रहता है। इसलिए उनकी सुरक्षा भी एक बड़ा विषय है। हर 3-4 महीने में कहीं ना कहीं कोई ना कोई ऑपरेशन होता रहता है। किसी को लाना होता है, किसी को बचाना होता है। इसलिए मोदी की गारंटी भारत की सीमा तक सीमित नहीं है, मोदी की गारंटी बाहर भी चलती है।”
जब उनसे पूछा गया कि वर्तमान में दुनिया के कई देशों में चुनाव हो रहे हैं, क्या भारत भी वहां पर्यवेक्षक भेजेगा, डॉ. जयशंकर ने कहा कि भारत में यहां की चुनावी प्रक्रिया को देखने और समझने के लिए अलग-अलग राजनीतिक दलों के लोग आए हैं। उनका इरादा सकारात्मक है। हम भी उनका स्वागत करते हैं। हो सकता है कि अगले कुछ दिनों में उनसे मुलाकात होगी। हमारे चुनाव पर जो टिप्पणियां हो रही हैं, वे राजनीतिक दलों के नेताओं से नहीं बल्कि विदेशों में बैठे मीडिया के लोगों द्वारा हो रही हैं।
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