भोपाल: मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी परीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाई कोर्ट के डबल बेंच के उस फैसले पर मुहर लगा दी है, जिसके तहत यह अभिनिर्धारित किया गया था कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की चयन प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को अनारक्षित वर्ग में शामिल करें.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाई कोर्ट के दो डिवीजन बेंच के परस्पर विरोधाभासी फैसले का पटाक्षेप कर दिया. प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को शामिल नहीं किए जाने से सम्बंधित डिवीजन बेंच क्रमांक-दो के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अगर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों ने कोई छूट प्राप्त नहीं की है, तो भर्ती के प्रत्येक चरण में अनारक्षित वर्ग में उन्हें शामिल किया जाएगा. शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4 (4) को परिभाषित करते हुए कहा कि आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को अंतिम स्टेज में शामिल किया जाना असंवैधानिक है.
सुप्रीम कोर्ट ने पीएससी परीक्षा 2019 और राज्य सेवा परीक्षा भर्ती नियम 2015 में शासन द्वारा 20 दिसंबर 2021 को नियम 4 में किए गए संशोधन को संवैधानिक बताया. इस नियम में प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा में अनारक्षित पदों के सभी वर्गों के मेरिटोरियस अभ्यर्थियों से भरे जाने का प्रावधान है.
दरअसल, इस मुद्दे को लेकर हाईकोर्ट की दो अलग- अलग डिवीजन बेंच ने अलग-अलग फैसले दिए थे.ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के विधिक सहयोग से उन फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.इसके साथ ही पीएससी 2019 के लगभग 200 से अधिक सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों ने भी एसएलपी दायर की थी.
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस सुजॉय पॉल और डीडी बंसल की खंडपीठ ने सरकार द्वारा 17 फरवरी 2020 को राज्य सेवा परीक्षा नियम 2015 में किए गए संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. पीएससी परीक्षा 2019 का रिजल्ट दोबारा पूर्व नियमों के अनुसार जारी किए जाने का आदेश दिया था.
इस पीठ ने आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4(4) के तहत परीक्षा के प्रत्येक चरण में अनारक्षित पदों को सभी वर्गों के प्रतिभावान अभ्यर्थियों से भरे जाने का आदेश दिया था. वहीं, जस्टिस शील नागू और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को चयन प्रक्रिया के अंतिम चरण में शामिल किए जाने की व्यवस्था दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया. याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल, रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक शाह और समृद्धि जैन ने पैरवी की.
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