उज्जैन। इंदौर नगर निगम में 107 करोड़ का घोटाला सामने आया है जिसमें ठेकेदारों ने काम ही नहीं किया और अधिकारियों की मिलीभगत से भुगतान कर लिया। ऐसे मामले उज्जैन में कई हैं लेकिन फाइलों में दबे हुए हैं। उल्टा ऐसे मामलों में जिन पर जाँच चल रही है, उन्हें ही राज्य शासन ने संविदा नियुक्ति पर रख लिया है।
इंदौर नगर निगम में स्वच्छता एवं नाले साफ करने एवं अन्य मामलों में कई गड़बडिय़ाँ सामने आई है और जब जाँच की गई तो 107 करोड़ का फर्जी भुगतान का मामला भी आया है और इस मामले में गिरफ्तारियाँ भी हो रही है। उज्जैन में भी ऐसे कई घोटाले हुए हैं लेकिन उनकी फाइल समय रहते इंजीनियरों एवं जनप्रतिनिधियों ने दबा दी। यहाँ पर भी स्वच्छता अभियान एवं अन्य मामलों में यदि ठीक ढंग से जाँच की जाए तो कई घोटाले सामने आ सकते हैं। यहाँ पर करीब 2 करोड़ के भुगतान एवं स्वीकृति का एक मामला सामने आया था जिसमें नगर निगम के एक इंजीनियर ने निगम आयुक्त के फर्जी हस्ताक्षर कर लिए थे और यह मामला जाँच में भी गया। कोतवाली थाने से हस्ताक्षर मिलान के लिए फाइल भेजी गई थी, उसके बाद आज तक इस मामले में क्या हुआ यह किसी को नहीं पता। ना तो वह फाइल वापस आई है और ना ही कोई कार्रवाई हुई है। उल्टा इस मामले में जो दोषी इंजीनियर हैं उनको राज्य शासन ने रिटायरमेंट के बाद नगर निगम में संविदा नियुक्ति भी दे दी है और वह नगर निगम में ठप्पे से नौकरी कर रहे हैं। इसके अलावा एडवांस लेने के भी और कई मामले हैं तथा नगर निगम के कई काम हैं और कई सड़के बनाई ही नहीं गई और जनप्रतिनिधियों की सहायता से उनका भुगतान कर लिया गया है। विगत 5 वर्षों की फाइलों की यदि ठीक ढंग से जाँच की गई तो उज्जैन में भी महा घोटाला सामने आ सकता है। वैसे सूत्र बता रहे हैं कि उज्जैन में भी 145 करोड़ का फर्जी भुगतान का घोटाला हुआ है लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हुई है। आने वाले दिनों में जाँच के बाद उज्जैन में भी घोटाला सामने आ सकता है। इंदौर में जो ठेकेदार पुलिस की गिरफ्तारी में आए हैं वे रिमांड के दौरान नए राज खोल सकते हैं।
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