इंदौर, अरविंद तिवारी। जिस इंदौर (INDORE) ने देश और प्रदेश को कांग्रेस (Congress) के कई दिग्गज नेता (Leader) दिए, उस इंदौर में अब कांग्रेस भगवान (God) भरोसे चल रही है। ऐसा लग रहा है कि इंदौर में कांग्रेस महज औपचारिकता निभाने के लिए मैदान में है। सब कुछ कांग्रेस उम्मीदवार अक्षय कांति बम (Akshay Kanti Bomb) के भरोसे छोड़ पार्टी के शहर अध्यक्ष सुरजीतसिंह चड्ढा (Surjeet Singh Chaddha) और जिला अध्यक्ष सदाशिव यादव मुंह दिखाई की रस्म-भर निभा रहे हैं। इन्हें एयरपोर्ट पर नेताओं को रिसीव करने और मंच पर अपना पराक्रम दिखाने से ही फुरसत नहीं मिल रही है। पार्टी के कार्यक्रमों की सूचना नेताओं व कार्यकर्ताओं तक नहीं पहुंच रही है। संगठन स्तर पर कोई संवाद ही नहीं है और इसी कारण मोर्चा-संगठन भी निष्क्रिय पड़े हुए हैं। कांग्रेस मुख्यालय गांधी भवन वेतनभोगी कर्मचारियों के भरोसे छोड़ दिया गया है। विडंबना देखिए, प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी (jeetu patwari) हेलिकाप्टर (helicopter) से पूरा प्रदेश नाप रहे हैं और उनके गृहनगर में पार्टी के हाल-बेहाल हैं।
समन्वय के अभाव में मोर्चा संगठन भी निष्क्रिय
इंदौर में लोकसभा चुनाव के लिए 13 मई को मतदान होना है। आधा चुनाव निकल चुका है। कांग्रेस की सबसे छोटी इकाई मंडलम, यानी वार्ड पूरी तरह इसलिए निष्क्रिय हैं कि शहर या जिला कांग्रेस ने चुनाव के दौर में कभी इनकी बैठक बुलाना ही उचित नहीं समझा। जब मंडलम की बैठक ही नहीं हुई तो सेक्टर की बैठक होने का तो प्रश्न ही खड़ा नहीं होता। शहर में 24 ब्लॉक हैं, यानी 24 ही अध्यक्ष। डेढ़ दर्जन के आसपास कार्यकारी अध्यक्ष हैं। इनसे अभी तक संगठन स्तर से किसी तरह का कोई संवाद नहीं हुआ है। इनकी भौगोलिक स्थिति और परिसीमन की भी संगठन के जिम्मेदार लोगों को न के बराबर जानकारी है। प्रत्याशी घोषित होने तक एक बार भी ब्लॉक-मंडल की बैठक नहीं बुलाई गई थी। प्रमोद टंडन के चुनाव संचालक बनने के बाद खानापूर्ति के लिए दो बैठकें हुईं।
दो कार्यकारी अध्यक्ष तो पार्टी ही छोड़ गए
शहर कांग्रेस की बात करें तो इसमें एक अध्यक्ष और 7 कार्यकारी अध्यक्ष हैं। इनमें से दो टंटू शर्मा और लच्छू मिमरोट कांग्रेस छोड़ चुके हैं। गोलू अग्निहोत्री उसी दिन से निष्क्रिय हो गए, जिस दिन से तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने वादाखिलाफी करते हुए दूसरे नेताओं को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया दिया था। एक अन्य कार्यकारी अध्यक्ष अरविंद बागड़ी मुंह दिखाई की रस्म के लिए पार्टी आयोजनों में पहुंचते हैं। देवेंद्र यादव जरूर सक्रिय हैं, पर उनका दायरा बहुत सीमित है। फिर भी वह ईमानदारी से लगे रहते हैं। अंकित खड़ायता की रुचि उसी दिन से कम हो गई थी, जिस दिन कमलनाथ के स्थान पर जीतू पटवारी प्रदेश अध्यक्ष बने। चूंकि सत्यनारायण पटेल पार्टी के राष्ट्रीय सचिव हैं और इन दिनों उन्हें उत्तरप्रदेश में ज्यादा समय देना पड़ रहा है, इसलिए एक और कार्यकारी अध्यक्ष अमन बजाज ने इंदौर 5 विधानसभा क्षेत्र की कमान संभाल रखी है। इन कार्यकारी अध्यक्षों से भी शहर अध्यक्ष का कोई तालमेल नहीं है। सब एक-दूसरे की टांग खिंचाई में लगे रहते हैं।
वेतनभोगी कर्मचारियों के भरोसे गांधी भवन
उम्मीदवार को ही बनाना पड़ रहा है जनसंपर्क का शेड्यूल
अब स्थिति यह है कि कांग्रेस प्रत्याशी को जनसंपर्क कार्यक्रम संबंधित विधानसभा क्षेत्र के लोगों से बात कर खुद बनाना पड़ रहा है। अन्य कार्यक्रम भी उन्हें ही तय करना पड़ रहे हैं। संगठन के माध्यम से यदि कोई कार्यक्रम तय भी हो रहा है तो उसका क्रियान्वयन भी नहीं हो पा रहा है। प्रत्याशी का जनसंपर्क भी संगठन के समन्वय के अभाव में महज खानापूर्ति जैसा ही हो रहा है।
प्रभावी विपक्ष की भूमिका भी नहीं निभा पा रहे हैं
विपक्ष के रूप में इंदौर में कांग्रेस शून्य नजर आ रही है। शहर से जुड़े तमाम मुद्दों पर संगठन के जिम्मेदार लोग खामोश हैं। राज्य सरकार और भाजपा शासित नगर निगम से जुड़े मुद्दों पर पदाधिकारियों की चुप्पी ने कार्यकर्ताओं को हैरान कर रखा है। नगर निगम के करोड़ों के ड्रेनेज घोटाले पर नेता प्रतिपक्ष चिंटू चौकसे के अलावा किसी ने आवाज नहीं उठाई।
पार्षद भी अलग-अलग रास्तों पर
संगठन पार्षदों के साथ भी तालमेल नहीं बैठा पा रहा है। इनमें भी एकजुटता नहीं है और ये 18 पार्षद भी अलग-अलग रास्तों पर चल रहे हैं। अपने वार्डों में काम न होने के कारण पार्षद परेशान हैं, लेकिन संगठन का इस पर ध्यान नहीं है। पार्षदों को भीड़ इक_ा करने का माध्यम-भर माना जा रहा है। हाल ही में कांग्रेस की एक पार्षद ममता सुनेर पार्टी छोड़ गईं और दो अन्य पार्षद जल्दी ही पार्टी छोडऩे की स्थिति में हैं।
वनमैन आर्मी जैसी स्थिति
जिला कांग्रेस में भी बुरे हाल हैं। प्रदेश अध्यक्ष पटवारी के खासमखास जिलाध्यक्ष सदाशिव यादव वनमैन आर्मी जैसी स्थिति में हैं। यहां भी एक कार्यकारी अध्यक्ष बलराम पटेल पार्टी छोड़ चुके हैं। सांवेर में रीना बौरासी और दूसरे नेताओं के साथ जिलाध्यक्ष का तालमेल नहीं बैठ पा रहा है। देपालपुर में कांग्रेस मोतीसिंह पटेल के भरोसे है। राऊ के ग्रामीण क्षेत्र में पटवारी के प्रभाव के चलते यादव जैसे-तैसे गाड़ी को आगे बढ़ा रहे हैं। हालांकि महू विधानसभा क्षेत्र धार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है, लेकिन यहां भी कांग्रेस संगठन चुनिंदा लोगों के ही भरोसे है।
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