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    फेल होने के बाद करने लगे थे मजदूरी, ऐसे बदली किस्मत, आज 500 करोड़ की कंपनी के मालिक

  • April 22, 2024

    नई दिल्ली (New Delhi)। रेडी टु कुक (Ready to cook) इडली और डोसा बैटर (Idli and Dosa batter) बनाने वाली कंपनी आईडी फ्रेश फूड (ID Fresh Food) का बिजनस (Business spread) भारत (India) में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी फैला है। कंपनी का एक तिहाई रेवेन्यू यूएई (UAE) से आता है। कंपनी ने वहां बिजनस शुरू करने के बाद छह महीने में ही यह उपलब्धि हासिल कर ली थी। कंपनी अब अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर में भी अपने प्रॉडक्ट लॉन्च करने की तैयारी में है। इस कंपनी की स्थापना मुस्तफा पीसी (Musthafa PC) ने की थी जिनका जन्म केरल के दूरदराज के एक गांव में हुआ था। उनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर थे लेकिन शिक्षा के महत्व को अच्छी तरह जानते थे। मुस्तफा ने छठी क्लास में फेल होने के बाद स्कूल जाना छोड़ दिया था और मजदूरी करने लगे थे। लेकिन एक स्कूल टीचर उनके लिए देवदूत बनकर आया। उसकी पहल पर मुस्तफा फिर से स्कूल जाने लगे। फिर उन्होंने पूरे मन से पढ़ाई की और जीवन में बड़ा मुकाम हासिल किया। आज उनकी कंपनी का रेवेन्यू 500 करोड़ रुपये है।


    मुस्तफा ने कुछ साल पहले एक इंटरव्यू में कहा कि एक शिक्षक ने उन्हें स्कूल लौटने के लिए मनाया और उन्हें मुफ्त में पढ़ाया। इस वजह से उन्होंने गणित में अपनी कक्षा में टॉप किया। फिर उन्होंने स्कूल टॉप किया। जब उनके कॉलेज जाने का समय आया, तो वहां भी टीचर्स ने उनकी मदद की। शिक्षकों ने ही उनकी फीस का भुगतान किया।

    उन्होंने कहा, ‘मुझे पहली सैलरी 14,000 रुपये की मिली। जब मैंने यह पैसा पापा को दे दिया तो वह बहुत रोए। उन्होंने कहा कि तुमने मेरे पूरे जीवन की कमाई से ज्यादा कमाया है।’ इसके बाद मुस्तफा को विदेश में नौकरी मिली। उन्होंने दो महीने में ही पिता का 2 लाख रुपये का कर्ज उतार दिया। लेकिन अच्छी सैलरी के बावजूद वह वह अपना बिजनस शुरू करना चाहते थे।

    कैसे आया आइडिया
    iD Fresh Food का आइडिया उस समय आया जब उनके चचेरे भाई ने एक सप्लायर को एक सादे पाउच में इडली-डोसा बैटर बेचते हुए देखा। कस्टमर प्रॉडक्ट की क्वालिटी के बारे में शिकायत कर रहे थे। मुस्तफा के चचेरे भाई ने उन्हें ‘क्वालिटी वाली बैटर कंपनी’ बनाने के विचार के साथ बुलाया। इस तरह शुरू हुई iD Fresh Food फूड कंपनी। मुस्तफा ने साल 2005 में 50,000 रुपये के निवेश के साथ इस कंपनी की शुरुआती की। इसकी जिम्मेदारी अपने चचेरे भाइयों को सौंप दी। उन्होंने 50 वर्ग फुट के किचन में ग्राइंडर, मिक्सर और एक वेइंग मशीन के साथ शुरुआत की। इसे बेचने के लिए उनके पास एक सेकेंड हैंड स्कूटर था। मुस्तफा कहते हैं, ‘हमें एक दिन में 100 पैकेट बेचने में 9 महीने से ज्यादा का समय लगा।’ उन्होंने कहा कि हमने इस दौरान बहुत सारी गलतियां कीं और उनसे सीखा।

    मुस्तफा कहते हैं, ‘तीन साल बाद मुझे एहसास हुआ कि हमारी कंपनी को मेरी फुलटाइम जरूरत है।’ उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और अपनी सारी बचत कंपनी में लगा दी। इस बात से उनके माता-पिता घबरा गए थे। लेकिन वह उन्हें यह भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि यदि बिजनस नाकाम हो गया तो वह फिर से नौकरी कर लेंगे। कई साल तक कंपनी ने संघर्ष किया और इस दौरान उसे काफी नुकसान भी हुआ। एक समय तो कंपनी अपने अपने कर्मचारियों को सैलरी देने की स्थिति में भी नहीं थी। मुस्तफा ने कहा, ‘हमने अपने 25 कर्मचारियों से वादा किया था कि एक दिन हम उन्हें करोड़पति बनाएंगे। आखिरकार करीब एक दशक के संघर्ष के बाद कंपनी को निवेशक मिला और हमने अपना वादा पूरा कर दिया।’

    किस बात का है अफसोस
    आज कंपनी छह बैटर और पराठा मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट ऑपरेट कर रही है। इनमें से एक यूनिट यूएई में है। कंपनी दिन में 2.5 लाख किलो बैटर और 52,000 किलो डो बना सकता है। इससे 44 लाख इडली और नौ लाख मालाबार पराठा बनाए जा सकते हैं। कंपनी ई-कॉमर्स और 45 शहरों में फैले 35,000 ऑफलाइन रिटेल पार्टनर्स के जरिए ग्राहकों तक पहुंचती है। 2023 में कंपनी का रेवेन्यू 500 करोड़ रुपये से अधिक रहा। कंपनी का दावा है कि उसके सारे प्रॉडक्ट्स 100 परसेंट नेचुरल हैं। उनमें किसी भी तरह के केमिकल और प्रिजरवेटिव का यूज नहीं हुआ है।

    लेकिन मुस्तफा को इस बात का अफसोस है कि वह अपनी सफलता को अपने बचपन के शिक्षक के साथ साझा नहीं कर सके। उन्होंने कहा, ‘जब मैं घर लौटा, तो मुझे पता चला कि उनका निधन हो गया है। मैं चाहता था कि वो देखें कि एक मजदूर ने उनके कारण क्या हासिल किया है। 2018 में, मुस्तफा पीसी को प्रतिष्ठित हार्वर्ड में बोलने के लिए बुलाया गया था। मुस्तफा कहते हैं, ‘मैंने पहले उन्हें उस शिक्षक के बारे में बताया, जिसने मुझे हार नहीं मानने दी। फिर अपने पिता के बारे में, जो अब भी अपने खेत में हर दिन पूरी मेहनत से काम करते हैं। इन लोगों ने मुझे सिखाया कि अगर आप कड़ी मेहनत करते हैं, तो एक मजदूर का बेटा भी एक मिलियन डॉलर की कंपनी बना सकता है।

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