– सुरेश हिन्दुस्तानी
देश में लोकसभा चुनाव प्रचार में राजनीतिक दलों में बयानों की आंधी सी चल रही हैं। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपने आपको आम जनता का हितैषी सिद्ध करने का प्रचार कर रहे हैं। इन बयानों में कहीं-कहीं राजनीति की मर्यादा का भी उल्लंघन भी होता दिख रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान सभी दल अपने-अपने हिसाब से ढोल पीटकर जनता को अपने पाले में लाने की कवायद कर रहे हैं। राजनीतिक दलों के बयान सुनने में अप्रमाणिक से लगते हैं। अभी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर जो बयान दिया है, वह उनकी राजनीतिक मजबूरी हो सकती है, लेकिन यह भी सही है कि इस बार के चुनाव में विपक्ष, सत्ता पक्ष पर किसी प्रकार का ठोस आरोप नहीं लगा पा रहा है। जहां तक चुनावी चंदे के भ्रष्टाचार की बात है तो इस खेल में सभी दल शामिल हैं। कहने का तात्पर्य है राजनीति में जो सुना जाता है, वह होता नहीं है। परदे पर कुछ और दिखाने का प्रयास करते हैं, वास्तविकता कुछ और होती है। कौन नहीं जानता कि विपक्ष के कई नेता भ्रष्टाचार के आरोप में जमानत पर हैं। ऐसे में बयान देने से पहले नेताओं को अपने गिरेबां में झांक कर भी देख लेना चाहिए।
वर्तमान में एक और बात महत्वपूर्ण यह भी है कि राजनीतिक दल धरातल पर बाहुबल और धनबल के सहारे चुनाव जीतने का प्रयत्न करते हैं। जबकि यह सब इतनी सावधानी से किया जाता है कि दिखाई नहीं देता, लेकिन आम जनता को यह मालूम है कि वास्तविकता क्या है। सारे चुनाव की छिपी हुई हकीकत यही है कि चुनाव में पैसा पानी की तरह प्रवाहित किया जाता है? जो लोग पैसे की भाषा नहीं समझते, उन्हें समझाने के दूसरे तरीके अपनाए जाते हैं, यानी बाहुबल का सहारा लिया जाता है। हालांकि इस सत्य को राजनेता इतनी सफाई से करते हैं कि कोई भी संस्था इसे सिद्ध नहीं कर सकती?
वर्तमान में एक नई प्रकार की राजनीति का उदय हुआ है, उसके अंतर्गत अपने दल की कार्यप्रणाली का या कहा जाए कारगुजारियों का बखान कम, दूसरे दलों की छीछालेदर करना ज्यादा ही देखने में आ रहा है। इस प्रकार का खेल कांग्रेस सहित विपक्षी दल की ओर से कुछ ज्यादा ही चल रहा है। कारण साफ है कि कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल भ्रष्टाचार के बारे में ज्यादा बोल नहीं सकती। क्योंकि कांग्रेस की सरकार में मंत्रियों और कांग्रेसी नेताओं ने जिस प्रकार से भ्रष्टाचार के कारनामे किए, उससे देश को करोड़ों का नुकसान हुआ। आज देश पर जो आर्थिक बोझ आया है, उसके पीछे के कारणों में यह भ्रष्टाचार एक है।
आज की राजनीति को देखकर सहज ही यह कहा जा सकता है कि राजनीतिक बयान मर्यादा को लांघ रहे हैं। विपक्ष की ओर से आधारहीन तर्क किए जा रहे हैं। कोई लोकतंत्र को बचाने की राजनीतिक बयानबाजी कर रहा है तो कोई संविधान बचाने का प्रहसन कर रहा है। खास बात यह है कि यह सब वे लोग कर रहे हैं जो भ्रष्टाचार समाप्त करने के कहकर भ्रष्टाचार करते रहे हैं। लालू प्रसाद यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध हो चुका है, लेकिन उनकी बेटी प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है।
वर्तमान में भारत की राजनीति में प्रतिद्वंद्व छिड़ा हुआ है। राजनीति में जिस प्रकार का वाद प्रतिवाद चल रहा है वह या तो मूर्ख बनने की प्रक्रिया का हिस्सा है या फिर मूर्ख बनाने की। अब आज के हालात में कौन मूर्ख बनता है और कौन बनाता है, यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। जैसे ही समय की सीमा पूरी हो जाएगी, इसके पीछे का अर्थ सामने आता चला जाएगा। आज हमारे देश की राजनीति में नेताओं के कई रूप देखने को मिल जाते हैं, यानी जैसी स्थिति होती है नेता लोग अपने को वैसा ही प्रचारित करने लग जाते हैं। इसको और व्याख्या करके कहा जाए तो तर्कसंगत ही होगा कि हमारे नेता बहुरूपिया बन जाते हैं और भारत देश की भोली भाली जनता उनके इस नकली रूप को देखकर भ्रमित हो जाती है। देश भर में सारे नेता इस होड़ में आगे दिखने का प्रयास कर रहे हैं कि हम ही जनता के असली हितैषी हैं। नेताओं का यह रूप हमारे देश को किस दिशा में ले जाएगा या ले जा रहा है, पता नहीं। पर यह सत्य है कि यह खेल बहुत ही खतरनाक है। देश के भविष्य के साथ एक प्रकार का अनहोना अपराध है?
भारत की राजनीति में आज ऐसे परिवारवादी नेता उदित हो चुके हैं, जिन्हें ठीक से भारत की राजनीति करना नहीं आता, वे केवल सत्ता प्राप्त करने के लिए ही जनता के वोट प्राप्त करने का उपक्रम ही करते हैं। भारत की जनता के समक्ष ऐसे हालात बन गए हैं कि वह सही और गलत की पहचान भी नहीं कर पा रहे हैं। हमारे राजनेता कौन-कौन से खेल खेलते हैं, यह आज सबको दिखाई देने लगा है। आज देश में कई नेता ऐसे हैं जिनका व्यवसाय कुछ नहीं होने पर भी धनवान बन गए हैं, वास्तव में आज की राजनीति सेवा का माध्यम न होकर एक व्यवसाय बन गई है।
राजनीति का जिस प्रकार से व्यवसायीकरण हुआ है, उसी के परिणाम स्वरूप हमारा देश रसातल की ओर जा रहा है और उसका खामियाजा देश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। राजनीति में नेताओं द्वारा जिस प्रकार की राजनीति की जाती है, वह केवल भारत के एक वर्ग विशेष को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। जो नेता इनके संप्रदाय के बारे में अच्छी बात बोलता है, उस नेता को ये लोग अपना हमदर्द मानने की भूल कर बैठते हैं। बस यही कारण है कि नेता लोग इस समुदाय को वोट बैंक मानकर चाल चलता है, लेकिन आज का यह समुदाय भी असलियत जान चुका है, भावनाएं भड़काने का यह खेल अब समाप्त होना चाहिए।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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