– डॉ. मयंक चतुर्वेदी
गुजरात के वडोदरा से सामने आई खबर समोसे में बीफ (गाय का मांस) भरकर बेचा जा रहा था से लेकर देश के अलग-अलग राज्यों से गैर मुसलमानों को गौमांस खिलाने की कई घटनाएं पिछले दिनों घटती हुई पाई गई हैं ।
किसी को भ्रम में रखकर और सही जानकारी न देते हुए धोखे से गाय का मांस खिलाया जाना निश्चित ही क्रूरता के अंतर्गत आएगा।प्रति वर्ष इस प्रकार की अनेकों घटनाएं आपको होती दिखती हैं। इन सभी घटनाओं में जो समानता है वह है इस्लाम को माननेवाले लोग ही इस प्रकार के कृत्य को करते हुए पाए जाते हैं, जबकि वह यह अच्छे से जानते हैं कि गाय को मां के रूप में हिन्दुओं समेत अन्य गैर मुस्लिम पंथों मेंं मान्यता है।
हिन्दुओं के धर्म ग्रंथों में अनेक उदाहरण हैं जो यह कहते हैं कि गाय का रक्षण हर हाल में होना चाहिए – यः पौरुषेयेण करविषा समङकते यो अश्वेयेन पशुयातुधानः। यो अघ्न्याया भरति कषीरमग्ने तेषांशीर्षाणि हरसापि वर्श्च॥- (ऋग वेद, मंडल 10, सूक्त 87, ऋचा 16)
इसका अर्थ हुआ कि जो मनुष्य नर, अश्व अथवा किसी अन्य पशु का मांस सेवन कर उसको अपने शरीर का भाग बनाता है, गौ की हत्या कर अन्य जनों को दूध आदि से वंचित रखता है, हे अग्निस्वरूप राजा, अगर वह दुष्ट व्यक्ति किसी और प्रकार से न सुने तो आप उसका मस्तिष्क शरीर से विदारित करने के लिए संकोच मत कीजिए।
देखा जाए तो हिन्दू धर्म में अश्व, नर, गाय, श्वान, सर्प, सुअर, शेर, गज और पवित्र पक्षी (हंसादि) का मांस खाना वर्जित किया गया है। हालांकि कुछ संहिताओं में जैसा कि सुश्रुत संहिता में मिलता है, आयुर्वेदज्ञ सुश्रुत कहते हैं कि बहुत आवश्यक होने पर ही रोगोपचार में शरीर की पुष्टि हेतु कभी-कभी मांसाहार करना जरूरी होता है। सुश्रुत संहिता कहती है कि मांस, लहसुन और प्याज औषधीय है। औषधि किसी बीमारी के इलाज के लिए होती है आपके जिव्हा के स्वाद के लिए या इसका नियमित सेवन करने के लिए नहीं होती है। अर्थात, यदि मांस भक्षण भी करना पड़े तो वह जीभ के स्वाद के लिए नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए है, वह भी जब आयुर्वेदाचार्य, चिकित्सक बताएं तभी किया जाए, अन्यथा नहीं।
उपनिषदों में बताया गया है कि जैसा अन्न होगा, वैसा ही मन बनता है – अन्नमयं ही सोम्य मनः। (छान्दोग्योपनिषद, 6। 5। 4) अर्थात् अन्न का असर मन पर प़ड़ता है। अन्न के सूक्ष्म सारभाग से मन (अन्तःकरण) बनता है। दूसरे नम्बर के भाग से वीर्य, तीसरे नम्बर के भाग से रक्त आदि और चौथे नम्बर के स्थूल भाग से मल बनता है, जोकि बाहर निकल जाता है। अतः मनको शुद्ध बनाने के लिये भोजन शुद्ध, पवित्र होना चाहिये।
भोजन की शुद्धि से मन (अन्तःकरण) की शुद्धि होती है- आहार शुद्धौ सत्त्व शुद्धिः (छान्दोग्योपनिषद 2। 26। 2)। जहाँ भोजन करते हैं, वहाँ का स्थान, वायुमण्डल, दृश्य तथा जिस पर बैठकर भोजन करते हैं, वह आसन भी शुद्ध, पवित्र होना चाहिये। कारण कि भोजन करते समय प्राण जब अन्न ग्रहण करते हैं, तब वे शरीर के सभी रोमकूपों से आसपास के परमाणुओं को भी खींचते, ग्रहण करते हैं। अतः वहाँ का स्थान, वायुमण्डल आदि जैसे होंगे, प्राण वैसे ही परमाणु खींचेंगे और उन्हीं के अनुसार मन बनेगा।
इसके साथ ही हिन्दू धर्म में श्रीमद्भगवत् गीता अन्न को तीन श्रेणियों में विभाजित करते हुए उसके सेवन के बारे में ज्ञान देती है। “आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रिय’’(17/7)। यह तीन श्रेणियां हैं, सत्व, रज और तम। गीता के अनुसार अन्न से ही मन और विचार बनते हैं। जो मनुष्य सात्विक भोजन ग्रहण करता है उसकी सोच भी सात्विक होगी। अत: सात्विकता के लिए सात्विक भोजन, राजसिकता के लिए राजसिक भोजन और तामसी कार्यों के लिए तामसी भोजन होता है। गीता कहती है कि यदि कोई सात्विक व्यक्ति तामसी भोजन करने लगेगा तो उसके विचार और कर्म भी तामसी हो जाएंगे।
श्रीमद्भगवद्गीता में योगिराज श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि आहार शुद्ध होने पर ही अंत:करण शुद्ध होता है और शुद्ध अंत:करण में ही ईश्वर में स्मृति सुदृढ़ होती है तथा स्मृति सुदृढ़ होने से हृदय की अविद्या जनित गांठे खुल जाती हैं। स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए संतुलित आहार की आवश्यकता को भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन के माध्यम से सारगर्भित रूप व्याख्यायित करते हैं। भगवद्गीता के छठे अध्याय के 17 वें श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं- ‘‘युक्ताहारविहारस्य युक्ताचेष्टस्य कर्मसु। युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा।’’ अर्थात जिसका आहार और विहार संतुलित हो , जिसका आचरण अच्छा हो, जिसका शयन, जागरण व ध्यान नियम नियमित हो, उसके जीवन के सभी दु:ख स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं।
वस्तुत: ये है हिन्दुओं का आहार के प्रति उनका विश्वास, जिसका कि अधिकांश हिन्दू सदियों से परंपरागत रूप से पालन करते आ रहे हैं और दूसरी तरफ इस्लाम को माननेवाले वे कई लोग हैं जोकि अपनी नफरत को साकार रूप देने के लिए हिन्दू समेत गैर मुसलमानों के साथ वह व्यवहार कर रहे हैं, जोकि क्रूरता की श्रेणी मे आता है। क्योंकि ये मुसलमान उन तमाम हिन्दुओं एवं अन्य को वह सब धोखे से खिला रहे हैं, जिसे भौज्य पदार्थ के रूप में खाना भी वह पाप (अनुचित) समझते और मानते हैं ।
इस संदर्भ में एक निर्णय वर्ष 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का आया था, इसके बारे में भी आज विचार करना जरूरी है। न्यायालय ने वैदिक, पौराणिक, सांस्कृतिक महत्व और सामाजिक उपयोगिता को देखते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव केंद्र सरकार को दिया है। कोर्ट ने अपने दिए इस निर्णय में कहा, ‘भारत में गाय को माता मानते हैं। यह हिंदुओं की आस्था का विषय है। आस्था पर चोट करने से देश कमजोर होता है। जीभ के स्वाद के लिए जीवन छीनने का अधिकार नहीं है। गौ मांस खाना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है।’
न्यायालय ने यहां तक कहा, ‘बूढ़ी बीमार गाय भी कृषि के लिए उपयोगी है, इसकी हत्या की इजाजत देना ठीक नहीं। गाय भारतीय कृषि की रीढ़ है। पूरे विश्व में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है, जहां सभी संप्रदायों के लोग रहते हैं, सबकी पूजा पद्धति भले ही अलग हो, लेकिन सोच सभी की एक है। सब एक दूसरे के धर्म का आदर करते हैं। कोर्ट ने कहा गाय को मारने वाले को छोड़ा तो वह फिर अपराध करेगा।’
यहां जावेद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने बताया भी कि भारत के 29 में से 24 राज्यों में गोवध प्रतिबंधित है। एक गाय जीवन काल में 410 से 440 लोगों का भोजन जुटाती है और गोमांस से केवल 80 लोगों का पेट भरता है। गोवध को रोकने के लिए इतिहास में किए गए प्रयासों के बारे में बताते हुए कोर्ट ने कहा कि महाराजा रणजीत सिंह ने गो हत्या पर मृत्यु दण्ड देने का आदेश दिया था। इतना ही नहीं इतिहास में कई मुस्लिम और हिंदू राजाओं ने गोवध पर रोक लगाई थी। गाय का मल-मूत्र असाध्य रोगों में लाभकारी है। गाय की चर्बी को लेकर मंगल पाण्डेय ने क्रांति की। संविधान में भी गो संरक्षण पर बल दिया गया है। इसके साथ ही न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने गाय की विशेषताओं को लेकर बहुत कुछ यहां बताया था।
वस्तुत: यहां विषय भावनाओं के सम्मान एवं श्रद्धा का है। जब मुसलमानों को पता है कि हिन्दू एवं कई गैर मुसलमान गौ मांस भक्षण को निषेध मानते हैं तब फिर क्यों उनकी आस्था को बार-बार चोट पहुंचाने का प्रयास किन्हीं भी इस्लामवादियों के द्वारा किया जा रहा है । सोचनेवाली बात यह है कि इस नकारात्मक सोच के जरिए वे क्या पा जाएंगे। जबकि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर एक भारतीय से यह अपील कर रहे हैं कि सभी मिलकर एक साथ 140 करोड़ भारतीय भारत के संपूर्ण विकास के लिए कार्य करें। निश्चित ही कहना होगा कि इस तरह की आपसी विद्वेष की भावना रखते हुए भारत को विश्व की सर्वशक्ति बनाया जाना संभव नहीं। जब उसके अपने ही नागरिक एक-दूसरे से इस तरह की नफरत रखकर आपसी व्यवहार कर रहे हैं?
काश, यदि इस प्रकार की नफरत भरी सोच रखनेवाले भारत के जितने भी लोग हैं, वे अपनी इस नकारात्मक सोच को समाप्त कर देंं तो कितना अच्छा हो! यदि ऐसा हो जाए तो भारत को विश्व शक्ति बनने में बहुत वक्त नहीं लगनेवाला । इसलिए कहना यही होगा कि नफरत कहीं भी किसी भी रूप में हो, हर भारतीय परस्पर उसे त्यागे। जब हम कहते हैं कि ”मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’ तो हम इस कहे को हकीकत में अपने आचरण में उतारें, तभी भारत में वास्तविक शांति की स्थापना होगी और यही शांति संपूर्ण भारत को नफरती मानसिकता से निजात दिलाने और विकास में सर्वश्रेष्ठ बनाने का कारण बनेगी।
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