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    UN: भारत विदेशी निवेश का एक मजबूत प्राप्तकर्ता, बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढ़ रही दिलचस्पी

  • April 11, 2024

    वाशिंगटन (Washington)। मेक इन इंडिया (Make in India), उत्पाद आधारित प्रोत्साहन (Product based incentives), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (foreign direct investment) की आसान शर्तें और सिंगल विंडो शासन जैसी तमाम ऐसी सहूलियतें हैं, जिनकी वजह से बहुराष्ट्रीय कंपनियों (Multinational companies) की भारत में दिलचस्पी बढ़ रही है। इन कंपनियों के निवेश से भारत को फायदा हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की रिपोर्ट, सतत विकास के लिए वित्त पोषण, 2024 रिपोर्ट के मुताबिक भारत विदेशी निवेश का एक मजबूत प्राप्तकर्ता बना हुआ है, क्योंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियां वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत को वैकल्पिक विनिर्माण आधार के तौर पर स्वीकार रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढ़ती दिलचस्पी से भारत को फायदा हो रहा है, क्योंकि ये कंपनियां भारत को वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र के तौर पर उभरता हुआ देख रहे हैं।


    कर्ज के बोझ के चलते संकट में हैं विकासशील देश
    रिपोर्ट में कहा गया है कि ज्यादातर विकासशील देश चौंकाने वाले कर्ज के बोझ और आसमान छूती उधारी लागत के कारण स्थायी विकास संकट से जूझ रहे हैं। लेकिन, भारत की स्थिति ऐसी नहीं है। भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत है, भारत तेजी से आर्थिक विकास कर रहा है, यहां घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए किफायती श्रम शक्ति मौजूद है। भारत को फिलहाल विकासशील देशों के सामने आने वाली उन चुनौतियों से नहीं जूझना पड़ रहा है, जिनसे यह एक दशक पहले जूझ रहा था। इस तरह से भारत ने विकासशील देश बने रहने के एक दुष्चक्र को तोड़कर अपना दायरा काफी बढ़ाया है। जबकि, दूसरे विकासशील देश कर्ज और महंगाई जैसे संकटों की वजह से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।

    2030 के विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त वित्तपोषण जरूरी
    संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना जे मोहम्मद ने मंगलवार को रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि सतत विकास लक्ष्यों के लिहाज से दुनिया एक चौराहे पर है और समय खत्म होता जा रहा है। उन्होंने कहा-अब नेताओं को बयानबाजी से आगे बढ़कर अपने वादों को पूरा करना चाहिए। पर्याप्त वित्तपोषण के बिना 2030 तक संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों को पूरा नहीं किया जा सकता।

    अमीना ने कहा कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बनाए गए वैश्विक वित्तीय संस्थान अब प्रासंगिक नहीं रह गए हैं और समकालीन चुनौतियों से निपटने के लिए तत्काल सुधार की जरूरत है। विकास वित्तपोषण के अंतर को पाटने के लिए उठाया गया कदम बड़े पैमाने पर वित्त जुटाने की जरूरत की तरफ ध्यान आकर्षित करता है।

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