नई दिल्ली (New Delhi)। महाराष्ट्र में भावनाओं (emotions in maharashtra)के ज्वार और असल मुद्दों के बीच उलझी जमीनी सियासत (grassroots politics)दिलचस्प हो गई है। जातीय और अस्मिता (Ethnicity and identity)से जुड़ा सवाल भी चुनाव में निर्णायक भूमिका(pivotal role) निभाएगा। हालांकि बेहद पेचीदा जमीनी समीकरणों में सिकंदर कौन होगा अभी कहना मुश्किल है।
जानकारों का कहना है कि इस बार का चुनाव ‘मोदी को जिताओ या मोदी को हराओ’ तक सीमित नहीं है, बल्कि इस चुनाव से क्षेत्रीय क्षत्रपों की पहचान और अस्मिता भी जुड़ी है। मसलन बारामती से तय होगा कि सीनियर या जूनियर किस पवार को जनता पावरफुल बनाना चाहती है। बारामती में उम्मीदवार के नाम पर चेहरे भले ही पवार परिवार की बेटी या बहू हों, लेकिन यहां एनसीपी का असली वारिस जनता तय करेगी।
असली वारिस का फैसला होगा
एक वरिष्ठ नेता ने कहा, अगर शरद पवार बनाम अजित पवार की लड़ाई हुई तो शरद पवार का पलड़ा भारी पड़ सकता है, लेकिन लड़ाई सुप्रिया बनाम अजित की हुई तो अजित का भारी पड़ना तय है। इसी तरह अन्य सीटों पर शिवसेना के दो धड़ों के बीच भी असली वारिस का फैसला जनता को करना है।
दोनों गठबंधन की परीक्षा
महाराष्ट्र में 48 सीटों पर एनडीए बनाम इंडिया की लड़ाई है। एनडीए में भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट), एनसीपी (अजित पवार गुट) हैं। वहीं इंडिया में कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव गुट), एनसीपी (शरद पवार गुट) शामिल हैं। नए राजनीतिक गठबंधन ने अभी तक मिलकर कोई चनाव नहीं लड़ा है इसलिए चुनाव में उसकी परीक्षा होनी है। मार्च 2023 में चिंचवड़ और कसबा पेठ में उपचुनाव हुए। कांग्रेस उम्मीदवार ने लगभग तीन दशकों से लगातार विजयी रही भाजपा को कसबा पेठ से सत्ता से बाहर कर दिया, जबकि भाजपा ने चिंचवड़ को बरकरार रखा। लेकिन अजित पवार उस समय एमवीए के साथ थे।
शिंदे और अजित पवार दोनों को ज्यादातर विधायकों और सांसदों का समर्थन प्राप्त है, लेकिन क्या उन्हें कैडर और कोर शिवसेना-एनसीपी मतदाताओं का समर्थन प्राप्त है? यह चुनाव इसका जवाब देगा। 2019 के चुनाव में एनडीए को 51.3 प्रतिशत और इंडिया (उस समय यूपीए) को 35.6 फीसदी वोट मिले थे।
सहानुभूति बड़ा फैक्टर
राजनीतिक विश्लेषकों के एक वर्ग का मानना है कि उद्धव और शरद पवार के पक्ष में सहानुभूति बड़ा फैक्टर है, लेकिन दूसरा वर्ग यह भी मानता है कि कुछ समर्थक कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने और अपनी कट्टर हिंदुत्व विचारधारा से समझौता करने के लिए उद्धव ठाकरे से नाराज हो सकते हैं। हालांकि पांच सालों में महाराष्ट्र का सियासी गणित काफी बदल चुका है।
‘फ्लोटिंग वोट’ पर दांव
जानकार मानते हैं कि ‘फ्लोटिंग वोट’ बड़ी संख्या में है। इसको समय रहते अपने पाले में लाने की कोशिश हर खेमा कर रहा है। जानकारों का कहना है कि अगर शिवसेना का कोर मराठी वोटर अब भी उद्धव ठाकरे के समर्थन में है और एकनाथ शिंदे यह वोट बीजेपी को ट्रांसफर नहीं करा पाते तो कई उलटफेर संभव हैं।
सियासी रूप से पांच हिस्सों में बंटा महाराष्ट्र
कोंकणः यह राज्य का शहरी माना जाता है। यहां मुंबई-ठाणे जैसे इलाकों में भाजपा की पकड़ मजबूत रही है।
पश्चिमी महाराष्ट्रः शरद पवार का गढ़ माना जाता है। यहां चीनी-दूध की फैक्ट्रियों पर एनसीपी के करीबियों का नियंत्रण है।
विदर्भः एक वक्त में कांग्रेस का गढ़ था लेकिन 2014 के बाद से भाजपा ने यहां जबरदस्त सेंधमारी की।
मराठावाडाः एक समय पवार की पार्टी का दबदबा था, लेकिन बाद में भाजपा ने मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाई।
उत्तर महाराष्ट्रः यहां मराठा, आदिवासी और पाटिल समाज निर्णायक भूमिका निभाते हैं। छगन भुजबल, एकनाथ खडसे जैसे कई कद्दावर नेता राजनीति को प्रभावित करते रहे हैं।
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