नई दिल्ली (New Delhi) । इन दिनों आगामी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) को लेकर सरगर्मी चारों तरफ है. इलेक्शन कमीशन (election commission) ने चुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया है. लोकसभा चुनाव 19 अप्रैल से लेकर एक जून तक सात चरणों में कराए जाएंगे. अब चुनाव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (electronic voting machine) से होते हैं, लेकिन पहले ये पर्ची यानी बैलट पेपर से होते थे. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के आने के पहले चुनाव मतपेटी में बैलट पेपर डाल कर हो रहे थे. 1952 में हुए पहले आम चुनाव में मतपेटी का इस्तेमाल किया गया था, जिसकी शुरुआत 1942 में हैदराबाद की निजाम सरकार और मैसर्स ऑलविन एंड कंपनी के जॉइंट वेंचर के रूप में हुई थी.
कुछ दशक पहले तक भारत के घर-घर में इस कंपनी का नाम जाना जाता था. कंपनी कई तरह के सेक्टर्स में अपना विस्तार कर चुकी थी जिसमें घड़ी, फ्रिज, स्कूटर से लेकर ट्रेन कोच तक शामिल थे. हालांकि, कुप्रबंधन का शिकार होने के बाद कंपनी को 1995 में बंद करना पड़ा. आइये जानते हैं अर्श से फर्श पर कैसे पहुंची ये कंपनी.
कैसे हुई कंपनी की शुरुआत?
साल 1942 में निजाम की हैदराबाद सरकार और मैसर्स ऑलविन कंपनी के बीच साझेदारी से एक जॉइंट वेंचर के रूप में इसकी स्थापना की गई. शुरुआत में इसे हैदराबाद ऑलविन मेटल वर्क्स के रूप में जाना जाता था और यह हैदराबाद की स्टेट रेलवे के लिए Albion CX9 बसों को असेंबल करने का काम करती थी. 1952 में देश के पहले आम चुनावों के लिए मतपेटी बनाने का काम इसी कंपनी ने किया था. साल 1969 में कुप्रबंधन की शिकायतों के बाद राज्य सरकार ने इसका नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया. इसके बाद ऑलविन ने कई सेक्टर्स में अपना बिजनस फैलाया. कंपनी ने रेफ्रिजरेटर बनाने का काम शुरू किया और जल्दी ही इसमें खुद को स्थापित कर लिया.
कई तरह के बिजनेस में आजमाई किस्मत
गोदरेज और केल्विनेटर जैसे ब्रांड्स के बावजूद ऑलविन पूरे देश में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रही थी. इसके फ्रिज ड्यूरेबिलिटी और एनर्जी एफिशियंसी के लिए जाने जाते थे. 1981 में जापानी की Seiko के साथ मिलकर ऑलविन ने घड़ी मार्केट में भी एंट्री मारी. अपने शानदार डिजाइन और विश्वसनीय मैकेनिज्म के कारण जल्दी ही कंपनी की घड़ियां लोकप्रिय होने लगीं. क्वालिटी और इनोवेशन के दम पर इसे घर-घर में पहचान मिली. इतना ही नहीं ऑलविन ने ऑटोमोबाइल्स और कोच बिल्डिंग में भी कदम रखे. 1983 में ऑलविन ने जापान की कंपनी निसान के साथ मिलकर हल्के कमर्शियल वीकल्स बनाने का काम शुरू किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. स्कूटर मार्केट में भी कंपनी को कुछ खास सफलता हासिल नहीं हुई.
ऐसे हुआ कंपनी का पतन
ऑलविन कंपनी के अंदर कई उथल पुथल चल रहे थे. इसकी वजह मिसमैनेजमेंट के साथ-साथ खराब फैसले भी थे. कंपनी बदलते समय के साथ खुद को ढालने में असमर्थ हो गई थी. जब क्वार्ट्ज टेक्नोलॉजी तेजी से उभर रही थी तो कंपनी ने मैकेनिकल घड़ियों पर भारी निवेश किया. साथ ही सरकारी अधिकारियों की बेरुखी और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण कंपनी का कामकाज प्रभावित हुई. 1990 का दशक आते-आते कंपनी का नुकसान बहुत बढ़ गया और उसका कैश खत्म होने लगा. आखिरकार 1995 में इसे बंद कर दिया गया. इसके अलग-अलग डिवीजन को अलग-अलग कंपनियों को बेचा गया. रेफ्रिजरेटर डिवीजन को वोल्टास ने खरीदा जबकि वॉच डिवीजन का ऑपरेशन बंद कर दिया गया.
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