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    युवा आगे आएंगे तभी होगा राष्ट्र-समाज का कल्याण

  • April 04, 2024

    – अरुण कुमार दीक्षित

    राजनीति में युवाओं की अहम भूमिका है। युवा अपने विचारों से हर क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। वे जिस विचार की ओर अग्रसर होते हैं, समाज उससे प्रभावित होता ही है। आज दुनिया में सर्वाधिक मांग युवाओं की है। भारत की राजनीति में सबसे अधिक मांग युवा विचारों के साथ युवाओं की ही रहती है।भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को युवाओं ने ही धार दी थी। युवाओं के आकर्षण का केंद्र राजनीति है। वह राजनीति उन्हें आकर्षित करती है। भारत की राजनीति ने युवा मन को निराश किया है। राजनीति युवाओं में विराट लक्ष्य नहीं देखती। राजनीतिक दलों से जुड़े युवा कभी इस दल तो कभी उस दल के हाईकमान का जयघोष करते हैं। ऐसा कर वे एक तरह से अपने ही श्रम-समय का नुकसान करते हैं। युवा सपने देखते हैं और सफल होते हैं। विफल भी होते हैं। टूटते हैं। आज युवा बेरोजगारी से टकरा रहे हैं। युवाओं पर पढ़ाई के साथ परिवार वालों का भी दबाव होता है कि कुछ कर दिखाना है। अनेक युवा भारतीय राजनीति में आए। उन्होंने लगातार समाज के वंचितों के लिए काम किया। समाचार पत्र निकाले। समाज-राष्ट्र की समस्याओं के समाधान को अपने जीवन का मिशन बनाया। बड़े राजनेता बने। पत्रकार बने ।अधिकारी बने। ऐसे युवाओं की बड़ी संख्या है कि वह पहले प्रशासनिक अधिकारी बने। बाद में सीधे राजनीति में कूदे । कुछ को सरकारों ने ही पुरस्कृत किया। कुछ आजीवन संघर्षरत रहे। सरकारों ने युवा नीति को लेकर अब तक क्या किया, यह भी समझना आवश्यक है।


    भारत में पहली बार युवानीति सन् 1988 में संसद के दोनों सदनों में रखी गई। युवा मामलों और खेल विभाग को इसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सौंपी गई। उद्देश्य था कि युवा नीति उनके व्यक्तित्व व कार्य क्षमता को मजबूत बनाए। वर्ष 2003में फिर युवा राष्ट्रनीति पर चर्चा हुई। 2003 में 13 से 35 वर्ष के आयु के व्यक्ति को युवा के रूप में परिभाषित किया गया। वर्ष 2014 में भाजपा सरकार ने युवाओं के समग्र विकास की वचनबद्धता दोहराई। वर्ष 2023 मे केंद्र सरकार ने युवाओं को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए कहा कि यह शिक्षा व्यावसायिक कौशल सिखाती है।समग्र विकास में सहायक है। इस नीति का उद्देश्य युवाओं को आत्मविश्वास से मजबूत करना है। उन्हें आर्थिक मजबूती देनी है और उन्हें शारीरिक और मानसिक स्तर पर सबल बनाना है। उनका समग्र विकास करना है। युवा नेतृत्व एवं विकास स्वास्थ्य, फिटनेस और खेल आदि के विषय वर्ष 2023 से 2032 का मसौदा है और यह मसौदा वर्तमान में युवा मामले और खेल मंत्रालय के अधीन विचाराधीन है। केंद्र सरकार ने मसौदा नीति पर सुझाव मांगे हैं।

    संयुक्त राष्ट्र संघ की दृष्टि में युवावस्था को सामान्यतः परिवर्तन के तौर पर माना जाता है। युवा वयस्कता की सामाजिक कसौटियों, रोजगार, परिवार और एक उत्पादक नागरिक के रूप में प्रयास कर रहे हैं। युवा परिवर्तन के प्रतिनिधि हैं। युवा शब्द के लिए अंग्रेजी में एक शब्द है जियोंग। इसका अर्थ युवा, युवक नया है, वहीं संस्कृत का शब्द युवान है। इसका अर्थ युवा-युवक है। भारतीय राजनीति को महात्मा गांधी, डॉ. राम मनोहर लोहिया और अंबेडकर तीनों नेताओं ने सबसे अधिक प्रभावित किया है। तीनों महापुरुषों की भिन्न-भिन्न विचारधारा चलीं। युवा गांधी दक्षिण अफ्रीका में प्रिटोरिया से डरबन जाते समय रेल में रंगभेद का शिकार हुए। गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में इंडियन ओपिनियन अखबार निकाला । भारतीयों की ज्वलंत समस्याओं को उठाया। पूरी दुनिया में रंगभेद के विरुद्ध वातावरण बनाने में जुटे रहे। गांधी भारत आए। भारत में अंग्रेजी सत्ता की गुलामी के विरुद्ध बिगुल फूंका । लाखों नौजवान उनके साथ खड़े हो गए । लड़ाई बढ़ गई । फिर आंदोलन का दौर चला।

    गांधी के आह्वान पर जिस तरह भारतीय नौजवान छात्र जुटे ऐसा विश्व इतिहास में परतंत्र भारत में पहली बार था। गांधी बैरिस्टर से महात्मा होने की यात्रा पर चल पड़े । नमक आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी मार्च, जैसे बड़े आन्दोलन खड़े कर दिखाये। इस सब के पीछे युवा शक्ति थी। वह युवा शक्ति अपने राष्ट्र के लिए जागृत हो चुकी थी। आज कोई कुछ भी कहे मगर बैरिस्टर से गांधी महात्मा की यात्रा युवाओं के कारण अद्भुत अकल्पनीय बनी। वह युवाओं के साथ दुनिया के प्रेरणास्रोत रहेंगे। डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने पहले भारत में पढ़ाई की । विदेश से पढ़ाई पूरी कर लौटे तो उन्हें भारतीय समाज में ऊंच-नीच की सड़ी-गली व्यवस्था ने झकझोर दिया। वह बचपन में अपने गांव से लेकर पूरे भारत में जातियों से बंटे समाज को निहार रहे थे । वह इस व्यवस्था से जूझ गए। लोगों से कहा कि शिक्षित बनो, संगठित हो, संघर्ष करो यह मंत्र किसी समाज के लिए शुभदायक ही है ।

    डॉ. आंबेडकर के विचार प्रतिपल छात्रों युवाओं को प्रभावित करने वाले हैं। स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा का गठन हुआ। संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष बने।
    स्वामी विवेकानंद भी युवा थे । नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद की यात्रा रामकृष्ण परमहंस के मिलन से आरंभ हुई। वह भारत की संस्कृति को विश्व में स्थापित करने का स्वप्न लेकर अमेरिका गए। साथ ही अनेक देशों की यात्राएं इसी उद्देश्य से कीं। वहां अपनी भारत की वैदिक सांस्कृतिक अनुभूति को पूरे विश्व के सामने रखा। अरविन्द घोष भी युवा थे। उन्होंने भी भारतीय स्वाधीनता, योग और संस्कृति के लिए विलक्षण काम किया। सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, खुदीराम बोस, गणेश शंकर विद्यार्थी, राजगुरु, युवा ही थे । स्वतंत्रता के लिए इन्हीं सबसे प्रेरित ज्वलंत युवाओं ने अपने देश के लिए बलिदान किया। भारत के हजारों युवा विदेश यात्राओं में रहते हैं मगर वह नौकरी के लिए ही विदेश जाते हैं। कुछ युवा पर्यटन और मस्ती के लिए जाते हैं। भारतीय युवाओं का विदेश नौकरी करने जाने का कारण है राष्ट्र का कृषि प्रधान और संयुक्त परिवार वाला ढांचा का दरक जाना।

    भारत में बाजारवाद युवाओं को यह समझाने में सफल रहा कि मकान, कार, आधुनिक सामग्री व्यक्ति को श्रेष्ठ और बड़ा बनाते हैं। कहीं तक बात ठीक भी है। दूसरी तरफ परंपराएं हैं। वह क्षीण हो रही हैं। वह अब बासी हो चुकी हैं। परंपराएं युवाओं को अब नहीं रोक पा रही हैं। पहले भी तर्क थे। एक पीढ़ी से दूसरी के बीच के समय अंतराल के । आधुनिकता के नाम पर सारे बंधन युवा तोड़ रहे हैं। आधुनिकता के सामने परंपराओं की दृष्टि चौंधिया गई हैं। संस्कृति और परम्परा दोनों अलग-अलग होते हैं। जीवन प्रतिमान बदल गए हैं। अब बाजार ही हमारी जीवन शैली का अधिकांश भाग तय करती है। युवा बाजार की चपेट में है। आज युवा क्या कर रहा है? राजनीतिक भागीदारी कितनी है? युवा प्रश्न नहीं उठा रहा ? जिन राष्ट्र-समाजों के युवा प्रश्नों से विरत हैं उनका नेतृत्व कैसा होगा? यह अपने आप में बड़ा सवाल है। भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए युवाओं को ही आगे आना होगा, तभी राष्ट्र और समाज का कल्याण होगा।

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