नई दिल्ली (New Delhi)। कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island)का मुद्दा लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections)से पहले एक बार फिर सामने आया है। विधानसभा चुनाव से पहले भी प्रधानमंत्री मोदी (Prime Minister Modi)ने इस द्वीप (island)का जिक्र किया था। आजादी के बाद भी जमीन का यह टुकड़ा भारत के अधीन था लेकिन श्रीलंका इसपर दावा ठोकता था। 1974 में एक समझौते के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस टापू को श्रीलंका को सौंप दिया था। हिंद महासागर में कच्चाथीवू द्वीप भारत के दक्षिणी छोर पर श्रीलंका के बीच में स्थित है। इस द्वीप पर ज्वालामुखी विस्फोटों की वजह से कोई नहीं रहता है। हालांकि इसपर पूरा नियंत्रम श्रीलंका का है। इस द्वीप पर चर्च है। गौर करने वाली बात है कि यह द्वीप मछुआरों के लिए बहुत उपयोगी है।
रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु में भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई ने आरटीआई के जरिए इस द्वीप को सौंपे जाने को लेकर दस्तावेज हासिल किए हैं। दस्तावेजों को हिसाब से यह द्वीप भारत से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इसका आकार 1.9 वर्ग किलोमीटर का है। भारत की आजादी के बाद से ही श्रीलंका यानी तब का सीलोन इसपर दावे करने लगा। 1955 में सीलोन की नौसेना ने इस द्वीप पर युद्धाभ्यास किया। वहीं भारतीय नौसेना को युद्धाभ्यास करने से रोक दिया गया।
पंडित नेहरू ने कहा था- द्वीप देने में संकोच नहीं करूंगा
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक बार संसद में कहा था कि मैं नहीं चाहता कि इस द्वीप का मुद्दा बार बार संसद में सुनने को मिले इसलिए हम इसपर से अपना दावा छोड़े में संकोच नहीं करेंगे। तब के कॉमनवेल्थ सेक्रेटरी वाईडी गुंदेविया ने एक नोट तैयार किया। इसे 1968 में सलाहकार समिति ने बैकग्राउंडर के तौर पर इस्तेमाल किया।
दरअसल 17वीं शताब्दी तक यह द्वीप मदुरई के राजा रामनद की जमींदारी के अधीन था। हालांकि ब्रिटिश हुकूमत के दौरान यह मद्रास प्रेसिडेंसी के अधीन आ गया। इस द्वीप का इस्तेमाल मछुआरे किया करते थे। वहीं इस द्वीप को लेकर हमेशा तनाव बना रहता था। इसके बाद 1974 में दोनों देशों के बीच बैठकें हुईं। पहली बैठक कोलंबों में और दूसरी नई दिल्ली में हुई। इसके बाद इंदिरा गांधी ने एक तरह से द्वीप को गिफ्ट में श्रीलंका को दे दिया। जब बैठकें हुईं तो भारत ने इस द्वीप पर अपने अधिकार को लेकर कई सबूत भी रखे थे। इसमें राजा नामनद के अधिकार का भी जिक्र था। वहीं श्रीलंका इस तरह का कोई दावा पेश नहीं कर पाया थआ।
इसके बावजूद विदेश सचिव ने कहा कि श्रीलंका का दावा भी मजबूत है। इसमें दिखाया गया है कि द्वीप जफनापट्टनम का हिस्सा था। भारत की सर्वे टीम स्वीकार करती है कि मद्रास यह नहीं बताया है कि रामनद के राजा के पास इसका ओरिजनल टाइटल था. इस द्वीप को सौंपने के लिए समझौता किया गया कि मछुआरे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा इस द्वीप पर ने चर्च में भारतीय बिना वीजा के आ जा सकेंगे। 1976 में हुए एक और समझौते में कहा गया कि भारतीय मछुआरे मछली पकड़ने वाले जहाज को लेकर श्रीलंका के एक्सक्लूसिल इकनॉमिक जोन में नहीं जा सकते। इसके बाद विवाद काफी भड़का था।
द्वीप को श्रीलंका को सौंपे जाने के दौरान भी तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि ने इसका विरोध किया था। वहीं 1991 में तमिलनाडु की विधानसभा में इस द्वीप को भारत में मिलाने का प्रस्ताव भी पास किया गया। इसके बाद 2008 में जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बिना संविधान संशोधन के भारत सरकार ने अपने द्वीप को किसी और देश को कैसे सौंप दिया। 2011 में उन्होंने विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित करवाया। हालांकि 2014 में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि यह द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया है और इसे अगर लेना है तो युद्ध लड़ने के आलावा दूसरा कोई चारा नहीं है।
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