इंदौर। आज सायंकाल प्रदोष काल में सबसे पहले परंपरा अनुसार राजबाड़े के सामने होलकरकालीन सरकारी होली का दहन होगा और फिर देर रात शहरभर में विभिन्न स्थानों पर होली जलाई जाएगी। समय और जागरूकता का असर अब शहर में होली का दहन स्थलों पर दिखाई देने लगा है। पहले शहर में होली से रंगपंचमी तक अनेक स्थानों पर होली जलती हुई दिखाई देती थी, लेकिन अब पर्यावरण संरक्षण के चलते अधिकांश होली घास के उपले और कंडों से ही प्रतीक स्वरूप जलाई जाती है। आज भद्रा काल के चलते शहरभर में होलिका दहन रात्रि 11.14 बजे के बाद ही किया जाएगा, वहीं पौ फटते ही रंग-रंगीला धूलेंडी का पर्व मनाया जाएगा। आज शाम शहर के सराफा, कपड़ा मार्केट, मारोठिया, सांठा बाजार, नलिया बाखल, खजूरी बाजार में दुकानें, संस्थान बंद करने के पूर्व व्यापारियों द्वारा परंपरा अनुसार जमकर रंग-गुलाल से होली खेली जाएगी।
कल सबसे पहले अपने आराध्य देव को लगाएं गुलाल
होली का दहन के पश्चात कल धूलेंडी के दिन सुबह सबसे पहले अपने इष्टदेव की पूजा करें और उन्हें गुलाल लगाएं, तपश्चात घर में अपने सभी बड़ों को रंग-गुलाल लगाकर चरण स्पर्श कर अन्य लोगों के साथ होली खेलें, वहीं पंडितों के अनुसार श्रीगणेश प्रथम पूज्य देवता हैं, उन्हें भी सिंदूर और नारंगी रंग अर्पित करना विशेष आशीर्वाद दिलवाता है। आपके ऊपर उनकी कृपा बनी रहती है और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है।
मुख्य मार्गों पर सज- संवरकर जलने वाली होली गायब
शहर में मल्हारगंज , मालगंज, छीपा बाखल, गोराकुंड, कपड़ा मार्केट, छावनी, लोधीपुरा, छत्रीबाग, जूनी इन्दौर, पाटनीपुरा, नंदानगर, लाबरिया भेरू, बड़ा गणपति सहित अनेक स्थानों पर विशेष साज-सज्जा व बैंड-बाजे के साथ होलिका दहन की परंपरा थी, लेकिन बदलते समय के साथ यह परंपरा बंद हो गई है। शहर के चौराहों और मुख्य मार्गों से होली गायब हो गई है और गलियों, मोहल्ला में सिमट गई है। होली अब प्रतीक स्वरूप ही जलाई जाती है, वहीं मल्टियों और गली-मोहल्लों में भी अब होली की पहले जैसी रौनक नहीं दिखाई देती है।
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