नई दिल्ली (New Delhi)। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के बीच बिहार में छात्र आंदोलन (Student movement in Bihar) के 50 साल पूरे हो गए। लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Loknayak Jaiprakash Narayan) के संपूर्ण क्रांति के नारे की बुनियाद बिहार के इसी छात्र आंदोलन से पड़ी थी और इस छात्र आंदोलन ने देश में सत्ता परिवर्तन कर दिया था। पांच दशक बाद हो रहे इस लोकसभा चुनाव में छात्र तथा छात्र संगठन की भूमिका नगण्य है। 74 के आंदोलन ने बिहार के एक दर्जन से अधिक ऐसे नेता दिए, जिन्होंने राज्य की बागडोर संभाली और केंद्र सरकार में भी उनकी सम्मानजनक भागीदारी रही। लेकिन इन पांच दशकों में छात्र संगठनों से कोई बड़ा नेता नहीं उभरा जिसे सियासी पहचान मिली हो। आलम यह है कि इस चुनाव से पहले चुनाव आयोग को छात्रों को वोटर बनाने की मशक्कत करनी पड़ी।
18 मार्च 1974 को पटना से छात्र आंदोलन की शुरुआत हुई। उसी दिन से विधानमंडल का सत्र शुरू होना था। छात्र व युवक राज्यपाल को अभिभाषण के लिए विधानमंडल जाने नहीं देना चाहते थे। इस दिन से भड़के छात्र आंदोलन को गांधीवादी व समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण का नेतृत्व मिला। जेपी के आह्वान पर विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े छात्र नेता अपने संगठनों से इस्तीफा देकर बिहार छात्र संघर्ष समिति के बैनर तले एकजुट होने लगे। बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर के इस्तीफे की मांग की गयी। देश में लोकपाल बनाने और लोकायुक्त नियुक्त करने की मांग हुई। पटना से शुरू यह आंदोलन देश भर में फैलने लगा। प्रदेश व देशभर में आंदोलनों का दौर शुरू हो गया। 5 जून 1974 को जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार ने 25 जून 1974 को देश भर में आपातकाल की घोषणा कर दी। जेपी समेत 600 से अधिक लोगों को जेल भेज दिया गया। केंद्र सरकार ने 1977 में आपातकाल को खत्म कर आम चुनाव की घोषणा की। सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और देश में सत्ता परिवर्तन हो गया। केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी।
इस आंदोलन से उपजे नेता ज्यादातर दलों का नेतृत्व कर रहे
इनमें नीतीश कुमार जदयू के संस्थापक नेता हैं और पिछले 18 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं। वहीं, लालू प्रसाद राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष 1997 से है। राजद राज्य की सत्ता पर 15 वर्षों तक काबिज रहा। इसी छात्र आंदोलन से निकले भाजपा नेता जेपी नड्डा वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद संभाल रहे हैं। वहीं, सुशील कुमार मोदी लंबे समय तक बिहार के एनडीए सरकार में उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं। भाजपा के अश्विनी कुमार चौबे, रविशंकर प्रसाद, समाजवादी नेता स्व. शरद यादव, उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव भी इसी आंदोलन की उपज थे।
पांच दशकों से बिहार में छात्र संगठनों से कोई बड़ा नेता नहीं उभरा
बिहार में 1974 के छात्र आंदोलन के बाद पिछले पांच दशकों में किसी भी छात्र आंदोलन में कोई बड़ा नेता नहीं उभर सका। 1974 के बाद 1990 में मंडल आयोग की अनुशंसा के विरोध में राष्ट्रव्यापी छात्र आंदोलन में बिहार की भी भूमिका महत्वपूर्ण रही लेकिन इस आंदोलन से राज्य में कोई छात्र नेता नहीं निकला जिसकी पहचान बनी हो। 1983 में पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के चुनाव के बाद लंबे समय तक छात्र संघ का चुनाव नहीं हुआ। 2012 में पुन विवि छात्र संघ के चुनाव शुरू हुए लेकिन कोई बड़ा नेता सामने नही आ सका है।
आंदोलन से निकले नेताओं ने भी नहीं दी छात्र संगठनों को तवज्जो
बिहार में छात्र आंदोलनों से निकले नेताओं ने भी छात्र संगठनों को तवज्जो नहीं दी। किसी दल या नेता ने राजनीति में अगली पीढ़ी तैयार करने की पहल नही की। अस्सी के दशक जैसी दखल छात्र संगठनों की न तो राज्य के किसी विश्वविद्यालय में आगे चलकर रही और न ही किसी पार्टी संगठन में छात्र संगठनों को महत्व दिया गया। छात्र संगठन हैं भी तो हाशिए पर। वर्तमान में भी देखें तो किसी भी दल के पास मजबूत छात्र संगठन नहीं है।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved