रीवा (Rewa) । लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) की तारीखों की घोषणा के बाद मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में सियासी हलचल तेज है। भाजपा और कांग्रेस (BJP and Congress) दोनों पार्टियां सियासी दम भर रही हैं। वहीं, विंध्य क्षेत्र में दोनों पार्टियों के सामने एक चुनौती का फिर से सामना करना पड़ सकता है। दरअसल, विंध्य क्षेत्र में चार लोकसभा सीटों पर बहुजन समाज पार्टी का अपना वोट बैंक है। इस पर भाजपा और कांग्रेस सेंध लगाने का प्रयास करती रही है इसके बाद भी यहां की दो लोकसभा सीट में बहुजन समाज पार्टी लोकसभा चुनावों में अबतक चार बार जीत चुकी है। हालांकि बसपा अभी तक उम्मीदवार तय नहीं कर पाई है जिस कारण भाजपा और कांग्रेस की निगाह उस पर टिकी हुई है। इधर, विधानसभा चुनाव में मिले मतों से उत्साहित बसपा लोकसभा चुनाव पूरी दमदारी के साथ लड़ने के मूड में नजर आ रही है। वैसे भी विंध्य की चार लोकसभा सीटों में से सतना एक और रीवा तीन बार जीत चुकी है, लिहाजा इस बार भी बसपा अपने पुराने इतिहास को दोहराने और सबको चौंकाने के मूड में है।
रीवा: बसपा को पहला सांसद दिया
रीवा संसदीय सीट से कई ऐसे लोग भी सांसद चुने गए जो सामान्य घराने से थे जिनका कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं था। उत्तर प्रदेश से सटे रीवा संसदीय सीट में बसपा की सक्रियता 1989 से ही तेज हो गई थी, जिसका लाभ भी पार्टी को 1991 के लोकसभा चुनाव में मिला। 1991 के लोकसभा चुनाव में रीवा संसदीय सीट से बसपा के भीम सिंह पटेल को विजय मिली। भीम सिंह पटेल देश में बसपा के पहले सांसद थे। भीम सिंह पटेल ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और विंध्य में सफेद शेर के नाम से प्रसिद्ध श्रीनिवास तिवारी को चुनाव हराया था। बसपा वैसे तो रीवा संसदीय सीट को अब तक तीन बार जीत चुकी है लेकिन दो बार लगातार इस सीट को जीतने का भी मौका पार्टी को मिला है, हर बार प्रत्याशी अलग-अलग रहा। 1991 के अलावा 1996 में बुद्धसेन पटेल एवं 2009 में देवराज पटेल को रीवा से सांसद बनने का मौका मिला है। 1989 से 2019 तक हुए 9 लोकसभा चुनावों में तीन बार बहुजन समाज पार्टी रीवा संसदीय सीट जहां जीत चुकी है वहीं दो बार यह दूसरे नंबर और तीन बार तीसरे नंबर पर रही है। फिलहाल इस संसदीय सीट से दो की ही दावेदारी सामने आई है। त्योंथर विधानसभा सीट से बसपा से किस्मत आजमा चुके देवेन्द्र सिंह एवं सिरमौर विधानसभा सीट से पार्टी के उम्मीदवार रहे वी डी पांडेय का नाम सामने आ रहा है। नवंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में देवेंद्र सिंह को त्योंथर विधानसभा में 24 हजार 393 वोट मिले थे तो व्ही डी पांडेय को सिरमौर में 41 हजार 85 मत मिले थे।
सतना: दो पूर्व CM को हरा कर सबको चौंकाया
रीवा की तरह ही सतना संसदीय सीट में भी बसपा ने चौंकाने वाले रिजल्ट दिए। 28 साल पहले लोकसभा चुनाव में बसपा प्रत्याशी ने मध्यप्रदेश को दो पूर्व मुख्यमंत्री को हरा दिया था। आंकड़ो की बात करें तो 1989 से लेकर 2019 तक 9 बार मैदान में पार्टी अपना प्रत्याशी उतार चुकी है लेकिन जीत एक बार ही मिली। हालांकि यह पार्टी का तीसरा प्रयास था। वर्ष 1996 में बसपा ने सुखलाल कुशवाहा को मैदान में उतारा था उस समय भाजपा की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा और कांग्रेस से टूट कर बनी तिवारी कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने चुनाव लड़ा था। इसके बाद भी सुखलाल बाजी मार ले गए। तब बसपा प्रत्याशी को 1 लाख 82 हजार 4 सौ 97, भाजपा प्रत्याशी वीरेंद्र कुमार सखलेचा को 1 लाख 60 हजार 2 सौ 59 और तिवारी कांग्रेस के अर्जुन सिंह को 1 लाख 25 हजार 6 सौ 53 मत मिले थे। हालांकि पार्टी ने सुखलाल को 5 बार टिकट दी थी लेकिन वह एक ही बार ही जीत पाए थे। बसपा ने 1989 में श्याम सुंदर, 1991 से 1999 तक सुखलाल, 2004 में नरेन्द्र सिंह, 2009 में फिर सुखलाल कुशवाहा, 2014 में धर्मेंद्र सिंह तिवारी और 2019 में अच्छेलाल कुशवाहा को टिकट दी थी। इधर दावेदारी में तीन के नाम सामने आ रहे हैं जिसमें रत्नाकर चतुर्वेदी शिवा, मणिराज सिंह पटेल एवं अच्छेलाल कुशवाहा का नाम शामिल हैं। आंकड़ों के मुताबिक बसपा की टिकट पर सतना विधानसभा से चुनाव लड़ चुके रत्नाकर को 33 हजार 567, रामपुर बाघेलान विधानसभा से बसपा के उम्मीदवार रहे मणिराज सिंह पटेल को 38 हजार 113 मत मिले थे। जबकि 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ चुके अच्छेलाल कुशवाहा को 1 लाख 9 हजार 961 मत मिले थे। टिकट के लिए इनका भी दावा मजबूत माना जा रहा है।
सीधी: सिर्फ उम्मीदवार उतारती रही बहुजन समाज पार्टी
विंध्य की तीसरी लोकसभा सीट सीधी की बात करें तो यहां बहुजन समाज पार्टी 1989 से 2019 तक 9 लोकसभा चुनाव लड़ चुकी है, लेकिन हर बार पार्टी को निराशा ही हाथ लगी है। कुल मिलाकर सीधी लोकसभा सीट में बसपा अभी तक सिर्फ अपने उम्मीदवार ही उतारते आई है। इस सीट पर चार-चार बार बसपा को तीसरा और चौथा स्थान मिला है तो एक चुनाव में तो पार्टी पांचवें स्थान पर रही है। पार्टी ने 1989 में दान सिंह, 1991 में दान सिंह पवेल, 1996 में फुंदेलाल सिंह, 1998 में दान सिंह पवेल, 1999 में जुगलाल कोल, 2004 में रामलाल, 2009 में मनोहर सिंह मरावी, 2014 में फूल सिंह परस्ते और 2019 में मोहदल सिंह पाव को मैदान में उतार चुकी है।
शहडोल: आरक्षित सीट पर केवल प्रत्याशी खड़े किए
विंध्य की सतना- रीवा लोकसभा सीट में भले ही बसपा को जीत का मौका मिला हो लेकिन विंध्य की एसटी के लिए आरक्षित शहडोल संसदीय सीट में बसपा का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है। यहां बहुजन समाज पार्टी कुछ चुनावों में तो नोटा और गोड़वाना गणतंत्र पार्टी से भी पीछे रही है। 1989 से 2019 तक हुए 9 लोकसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी तीन बार चौथे स्थान पर, पांच बार तीसरे स्थान पर और एक बार सातवें स्थान पर रही है। 1989 में लक्ष्मण सिंह, 1991में महाबीर सिंह, 1996 में बसंती देवी, 1998 में बसंती देवी , 1999 में बसंती देवी, 2004 में हरिकृष्ण प्रसाद, 2009 में अशोक कुमार शाह, 2014 में रमाशंकर शहवाल और 2019 में रामलाल पनिका को पार्टी ने मौका दिया था।
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