जबलपुर: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) हाई कोर्ट (High Court) ने अपने एक अहम आदेश में कहा है कि स्पीडी ट्रायल (speedy trial) अभियुक्त का मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) है, और गवाहों की दया पर इसे अनिश्चित काल के लिए लंबित नहीं रखा जा सकता है. इसके साथ ही हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया की सिंगल बेंच ने 7 साल पुराने आपराधिक मामले में 6 माह में ट्रायल पूरा करने के निर्देश भी दिए है.
दरअसल, जबलपुर के हनुमानताल इलाके के निवासी सिराज खान के खिलाफ साल 2017 में एक प्रकरण पंजीबद्ध किया गया था. यह मुकदमा पिछले 7 साल से लंबित है. जिसे लेकर सिराज खान ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में अपील दायर किया था.याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अंकित श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि पिछले सात सालों में हनुमानताल पुलिस ने इस मामले में एक भी गवाह पेश नहीं किया है.
स्पीडी ट्रायल मौलिक अधिकार
याचिकाकर्ता को बेवजह इतने सालों से परेशान किया जा रहा है. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने तीखी टिपप्णी करते हुए कहा कि स्पीडी ट्रायल अभियुक्त का मौलिक अधिकार है. गवाहों की दया पर इसे अनिश्चित काल के लिए लंबित नहीं रखा जा सकता है. कोर्ट ने अपने आदेश में अभियोजन को निर्देश दिए कि गवाहों के खिलाफ जारी सभी लंबित समन और वारंट को हर हाल में तामील कराएं.
इस संबंध में हनुमानताल पुलिस के एसएचओ ट्रायल कोर्ट में व्यक्तिगत हलफनामा पेश कर यह स्पष्टीकरण दें कि गवाहों को समन और वारंट क्यों नहीं भेजा जाए.हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अगर गवाहों को समन- वारंट मिले हैं और उसके बावजूद वे ट्रायल कोर्ट में गवाही के लिए हाजिर नहीं हुए हैं तो उनके खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी.आवेदक पक्ष भी अब गवाहों के प्रति परीक्षण की कार्रवाई बिना देरी के कराएं.
‘रिपोर्ट से असंतुष्ट होने पर बताना होगा कारण’
इसी तरह मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने एक मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि जांच रिपोर्ट से असंतुष्ट होकर सीधे दोबारा जांच के निर्देश देना अवैधानिक है. नियमानुसार अगर अनुशासनात्मक अधिकारी उस जांच रिपोर्ट से असंतुष्ट है, जिसमें कर्मचारी को क्लीन चिट दी गई है तो पहले संबंधित दोषी कर्मी को कारण बताओ नोटिस जारी करना होगा. नोटिस में असंतुष्टता का कारण बताना होगा.
इसमें कर्मचारी का स्पष्टीकरण लेना जरूरी है.ऐसा किए बिना सीधे दोबारा जांच के लिए निर्देश नहीं दिए जा सकते हैं. इस मत के साथ हाई कोर्ट ने याचिकाकर्तासिवनी निवासी राजेन्द्र कुमार तिवारी (रिटायर बैंक मैनेजर) के खिलाफ दोबारा जांच के आदेश निरस्त कर दिया. हालांकि,कोर्ट ने कहा कि अनुशासनात्मक अधिकारी याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए स्वतंत्र है.जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने यह निर्देश भी दिए कि याचिकाकर्ता को उसके सभी सेवानिवृत्त देयकों का भुगतान भी करें. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सुधा गौतम ने पक्ष रखा.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved