अलीगढ़ (Aligarh)। मुगल काल (Mughal period) में होली (Holi) का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता था। बादशाहों (kings) को रंग से परहेज नहीं था, बल्कि प्यार था। इस बात का जिक्र इतिहास में मिलता है। बादशाह जहांगीर (Badshah Jahangir) तो बांस की पिचकारी (bamboo pitchers) से अपने दरबारियों (throwing colors at the courtiers) पर रंग फेंकते थे।
एएमयू के एमेरट्स प्रोफेसर व इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब ने बताया कि इतिहास में मवेशी के सींग के खोल में रंग भरकर फेंकने का जिक्र मिलता है। इसके बाद बादशाह जहांगीर ने बांस की पिचकारी बनवाई। उसमें रंग भरकर वह अपने महल में दरबारियों और राजाओं के साथ होली खेलते थे। बादशाह जहांगीर के अलावा बादशाह मोहम्मद शाह की भी होली खेलने की तस्वीरें मिलती हैं।
उन्होंने बताया कि मुगलकाल के फौजी भी आपस में होली खेलते थे। एक बार फौजियों ने बाजार में होली खेली। वह मस्ती में डूब गए और इससे रियाया (प्रजा) को परेशानी होने लगी। यह बात बादशाह को पता चल गई। वह काफी नाराज हुए, क्योंकि फौजियों को छावनी में ही होली खेलने की इजाजत थी। इसका जिक्र इतिहास में है।
रंग से रंगे कपड़े पहनकर नमाज पढ़ने जाते थे मौलाना हसरत
एएमयू के पूर्व छात्र मौलाना हसरत मोहानी ने अपनी गजलों में होली के रंग को तवज्जो दी है। उन्हें श्रीकृष्ण से प्रेम था। रंग से रंगे कपड़े पहनकर मौलाना हसरत मोहानी रोजाना नमाज पढ़ने जाते थे। एएमयू के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी डॉ. राहत अबरार ने कहा कि मोहानी ने अपने मोहन से प्रेम के रंग गजलों में खूब बरसाए हैं। इसकी बानगी पढ़ें-मोसे छेर करत नंदलाल लिए ठारे अबीर गुलाल, ढीठ भयी जिन की बरजोरी औरन पर रंग डाल डाल, हमहूं जो दिये लिपटाए के हसरत सारी ये छलबल निकाल, मोपे रंग न डार मुरारी बिनती करत हूं तिहारी, पनिया भरन के जाय न देहें श्याम भरे पिचकारी, थर-थर कंपन लाजन हसरत देखत हैं नर नारी।
हसरत होली बड़े ही जोश से खेलते थे। उन्होंने कहा कि हसरत मोहानी के बारे में काजी अब्दुल अब्बासी ने लिखा- ”मैंने होली की पूर्व संध्या पर हसरत को रंग से लथपथ कपड़ों में घूमते देखा। मैंने आश्चर्य से पूछा, यह क्या है, मौलाना? उन्होंने जवाब दिया, डॉ. मुरारी लाल की पत्नी ने मुझ पर रंग फेंक दिया। ”मौलाना ने अगले कुछ दिनों तक यह रंग-बिरंगी पोशाक पहनी थी और वह नियमित रूप से नमाज भी पढ़ते थे।
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