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    45 साल की नौकरी, 15 रुपये वेतन… महिला चपरासी को 39 साल बाद हाईकोर्ट से मिला न्याय

  • March 09, 2024

    बांदा: यूपी के बांदा से बेसिक शिक्षा विभाग की लापरवाही का चौंकाने वाला मामला सामने आया है. यहां बेसिक शिक्षा विभाग में महिला चपरासी से पूर्णकालिक कर्मचारी के तौर पर 45 साल काम लेने के बावजूद निर्धारित वेतन नहीं दिया गया. पीड़ित महिला ने इलाहबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जिसके बाद कोर्ट ने संबंधित अधिकारी पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाया है. महिला 45 साल तक 15 रुपये वेतन पर काम करते हुए 2016 में सेवानिवृत्त भी हो गई. उसने दो बार हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हक हासिल नहीं हो सका. अंत में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महिला का पूरा वेतन भी देने का आदेश दिया है.

    जानकारी के मुताबिक, बांदा जिले की भगौनिया देवी 1971 में बेसिक शिक्षा विभाग के अधीन संचालित कन्या जूनियर हाईस्कूल में 15 रुपये वेतन पर सेविका के रूप में नियुक्त की गई थीं. उन्हें 1981 में पूर्णकालिक चपरासी के रूप में प्रोन्नति देते हुए वेतन 165 रुपये निर्धारित हुआ. लेकिन, यह वेतन उन्हें दिया नहीं गया. जिसके बाद उन्होंने 1985 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

    कोर्ट ने बेसिक शिक्षा अधिकारी बांदा को वेतन संबंधी मांग निस्तारित करने का निर्देश भी दिया. लेकिन तत्कालीन बीएसए बांदा ने 165 रुपये वेतन देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनकी सेवाओं और वेतन का अनुमोदन नहीं हुआ है. यह नियुक्ति अनियमित है. फिर, 1996 में उनकी पूर्णकालिक सेवा समाप्त कर दी गई. हालांकि, वह 2016 तक काम करतीं रहीं. 2010 में पीड़िता निर्धारित वेतन की मांग को लेकर फिर हाईकोर्ट आईं. वर्ष 2016 में वह सेवानिवृत हो गईं, लेकिन बेसिक शिक्षा विभाग ने बढ़े वेतन का भुगतान फिर भी नहीं किया. उन्हें 35 साल की पूर्णकालिक सेवा के बावजूद मात्र 15 रुपये प्रतिमाह वेतन ही मिलता रहा.


    कोर्ट ने विभाग पर की सख्त कार्रवाई
    अंतिम रूप से इलाहाबाद की जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की कोर्ट में मामला पहुंचा. कोर्ट ने फैसले में कहा कि पूर्णकालिक नियुक्ति रद्द करने के आदेश को याची ने चुनौती नहीं दी, लेकिन इसमें कोई विवाद नहीं है कि वह लंबे समय तक पूर्णकालिक चपरासी के रूप में काम करती रही हैं. लिहाजा, याची को पूर्णकालिक चपरासी के रूप में नियुक्त करने का आदेश लागू मानने योग्य है. कोर्ट ने याची की पूर्णकालिक नियुक्ति की तारीख से 165 रुपये की दर से 35 साल की सेवा के लिए 69,300 रुपये अदा करने का आदेश दिया. साथ ही, दो बार कोर्ट आने के लिए विवश करने के लिए बेसिक शिक्षा विभाग पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाते हुए याची को भुगतान करने का आदेश भी दिया है.

    कोर्ट ने की अहम टिप्पणी
    हाईकोर्ट ने कहा कि विपक्षियों ने अत्यधिक तकनीकी दृष्टिकोण अपनाया है, जो एक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के खिलाफ है. कोर्ट ने कौटिल्य के अर्थशास्त्र के राजधर्म के नीति वचन संबंधी श्लोक प्रजा सुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम्, नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम्… का भी उल्लेख किया. जिसका अर्थ होता है प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है. जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है. उसका हित तो प्रजा को जो प्रिय लगे, उसमें है.

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