• img-fluid

    वोट के बदले नोट मामले में माननीयों को नहीं मिलेगी मुकदमे से राहत, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा अपना फैसला

  • March 04, 2024

    नई दिल्ली। सांसदों और विधायकों (MP and MLA) को वोट (Vote) के बदले रिश्वत (Bribe) लेने के मामले में मुकदमे से मिली राहत छिन सकती है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने इस छूट पर अपनी असहमति जताई (expressed disagreement) है और साल 1998 में दिए अपने पिछले फैसले (decision) को पलट दिया है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ इस मामले पर अपना फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश के अलावा संविधान पीठ में जस्टिस ए एस बोपन्ना, जस्टिस एम एम सुंदरेश, जस्टिस पी एस नरसिम्हा, जस्टिस जेपी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल रहे।

    केंद्र सरकार ने मुकदमे से छूट के विरोध में दी थी दलील
    संविधान पीठ ने 1998 के झामुमो रिश्वतकांड पर दिए अपने फैसले पर पुनर्विचार के संबंध में सुनवाई पूरी कर बीते साल 5 अक्तूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अक्तूबर में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिश्वत के बदले वोट के मामले में मिले विशेषाधिकार का विरोध किया था। सरकार ने अपनी दलील में कहा था कि रिश्वतखोरी कभी भी मुकदमे से छूट का विषय नहीं हो सकती। संसदीय विशेषाधिकार का मतलब किसी सांसद-विधेयक को कानून से ऊपर रखना नहीं है।


    सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान संसद या विधानसभा में अपमानजनक बयानबाजी को अपराध मानने के प्रस्ताव पर भी चर्चा हुई। प्रस्ताव में मांग की गई थी कि सांसदों-विधायकों द्वारा सदन में अपमानजनक बयानबाजी को कानून से छूट नहीं मिलनी चाहिए ताकि ऐसा करने वालों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया जा सके। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बयानबाजी को अपराध मानने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सदन के भीतर कुछ भी बोलने पर सांसदों-विधायकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती और सदन के भीतर माननीयों को पूरी आजादी है।

    किस फैसले पर हो रहा पुनर्विचार
    झारखंड की विधायक सीता सोरेन पर साल 2012 में राज्यसभा चुनाव में वोट के बदले रिश्वत लेने के आरोप लगे थे। इस मामले में उनके खिलाफ आपराधिक मामला चल रहा है। इन आरोपों पर अपने बचाव में सीता सोरेन ने तर्क दिया था कि उन्हें सदन में कुछ भी कहने या किसी को भी वोट देने का अधिकार है और संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत उन्हें विशेषाधिकार हासिल है। जिसके तहत इन चीजों के लिए उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इस तर्क के आधार पर सीता सोरेन ने अपने खिलाफ चल रहे मामले को रद्द करने की मांग की थी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 1993 के घूसकांड पर 1998 में दिए पांच जजों की संविधान पीठ के एक फैसले की सात जजों की पीठ द्वारा समीक्षा करने का फैसला किया। समीक्षा इस बात की की जा रही है कि सदन में बोलने और नोट के बदले वोट के मामले में सांसदों-विधायकों को आपराधिक मुकदमों से छूट जारी रहेगी या नहीं?

    Share:

    99 साल के आदमी ने दिया पत्नी को शादी के 77 साल बाद तलाक

    Mon Mar 4 , 2024
    नई दिल्‍ली (New Delhi.)। हर धर्म में शादी अलग-अलग रीति-रिवाजों (customs and traditions) के साथ होती है. लेकिन इस दौरान पति-पत्नी के बीच होने वाले वादे एक से ही होते हैं, जैसे-कभी एक-दूसरे से कुछ नहीं छिपाएंगे. ऐसे में जब रिश्ते (relations) में कोई एक पार्टनर इस एक वादे को नहीं निभा पाता है, तो […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    बुधवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved