नई दिल्ली (New Dehli)। एक देश एक चुनाव (one country one election)को लेकर चर्चाएं जारी हैं। खबर है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई(Leadership of former President Ramnath Kovind) में गठित पैनल भी इसका समर्थन (Support)कर सकती है। इस संबंध में सरकार को आने वाले कुछ दिनों में रिपोर्ट सौंपी (submitted report)जा सकती है। कहा जा रहा है कि रिपोर्ट में चुनाव एक साथ कराने के लिए कई सिफारिशें भी की गई हैं। भारतीय जनता पार्टी 80 के दशक से ही इस प्रस्ताव का समर्थन करती रही है।
खबर है कि पैनल की रिपोर्ट लगभग तैयार है। सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि इसके जरिए संविधान और रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट में कुछ संशोधनों का सिफारिश भी का जा सकती है। इनके जरिए साल 2029 तक लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव के बीच बेहतर तालमेल हो सकेगा।
त्रिशंकु विधानसभा, अविश्वास प्रस्ताव में हार के बाद सरकार के गिरने या दल बदल के चलते अल्पमत में आने से दोनों चुनावों के बीच तालमेल को बचाने के लिए भी सिफारिशें की गई हैं। एक साथ दोनों चुनाव के विचार का कांग्रेर, सीपीएम, सीपीआई, डीएमके, टीएमसी, आप और एआईएमआईएम जैसे विपक्षी दल विरोध करते रहे हैं।
पहले भी एक साथ हो चुके हैं चुनाव
हालांकि, अगर एक साथ दोनों चुनाव की बात पर मुहर लगती है, तो यह पहली बार नहीं होगा कि देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ होंगे। साल 1967 तक भी लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ होते रहे हैं। हालांकि, राज्यों में गठबंधन की सरकार टूटने और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साल 1971 में समय से एक साल पहले चुनाव कराने के फैसले के चलते ये प्रक्रिया खत्म हो गई थी।
संभावनाएं जताई जा रही हैं कि पैनल लोकसभा चुनाव के लिए पार्टियों के घोषणापत्र जारी होने से पहले ही इसके समर्थन की बात कह सकती है। पैनल में कोविंद के अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, पूर्व राज्यसभा सांसद गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे और पूर्व सीवीसी संजय कोठारी शामिल हैं। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस समिति को छोड़ने का फैसला कर लिया था।
बीच में सरकार गिर गई तो?
कहा जा रहा है कि अगर सरकार गिरने जैसी बात सामने आती है, तो विधि आयोग समेत अन्य लोगों की तरफ से सुझाव आया है कि सिर्फ बचे हुए कार्यकाल के लिए ही चुनाव कराए जाएं। फिलहाल, यह साफ नहीं है कि पैनल ने इस बात का समर्थन किया है या नहीं।
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