– मृत्युंजय दीक्षित
लोकसभा चुनाव का शंखनाद होने ही वाला है। सीटों की संख्या की दृष्टि से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में सभी दल अधिकतम सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। इस लक्ष्य को साधने के लिए प्रदेश में विपक्ष का इंडी गठबंधन बनकर तैयार हो गया है, जिसमें समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का काफी ना-नुकुर के बाद तालमेल हो गया है। भारतीय जनता पार्टी सभी 80 सीटों पर विजय प्राप्त करने के लिए तैयार है। बसपा अभी तक अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने की बात कह रही है। वह भी तब, जब अपने ही सांसदों पर भरोसा नहीं रह गया है। कहा जा रहा है कि वह अपने सभी 10 सांसदों के टिकट काटने जा रही हैं। ऐसे में टिकट कटने के भय व अपनी राजनीति को सुधारने की दृष्टि से कई सांसद पाला बदलने की तैयारी में हैं। कुछ ने को पाला बदल भी लिया है।
त्रिकोणीय संघर्ष में मायावती के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अपना पिछला प्रदर्शन बचाकर रखना है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा को सपा- रालोद गठबंधन के साथ लड़ने के कारण 10 लोकसभा सीटों पर विजय प्राप्त हुई थी। अब समीकरण और गठबंधन दोनों ही काफी बदल गए हैं। बसपा सांसद एक के बाद एक मायावती का साथ छोड़कर जा रहे हैं। अभी तक बसपा के जो सांसद पाला बदल चुके हैं उनमें जेल में बंद माफिया मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी सपा में जा चुके है जबकि बसपा का एक और चर्चित मुस्लिम चेहरा दानिश अली कांग्रेस में जा चुके हैं तथा एक और सांसद श्याम सिंह पहले यह भारतीय जनता पार्टी के साथ संपर्क में थे, किंतु टिकट पक्का न हो पाने के कारण कांग्रेस में चले गए हैं। बसपा को सबसे बड़ा झटका दिया है उसके एकमात्र ब्राहण सांसद रितेश पाण्डेय ने जो अब भारतीय जतना पार्टी का दामन थाम चुके हैं।
बसपा सांसद रितेश पाण्डेय उन सांसदों के समूह में भी शामिल थे, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के बजट सत्र के दौरान भोज पर बुलाया था।अंबेडकरनगर से बसपा सांसद रितेश पाण्डेय ने पार्टी पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए बसपा से इस्तीफा दिया और उसी दिन कुछ ही क्षणों के बाद भाजपा में शामिल हो गए। रितेश पाण्डेय ने 2019 के लोकसभा चुनाव में योगी सरकार के सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा को हराया था। 2009 से 20414 तक इनके पिता राकेश पाण्डेय भी बसपा के सांसद रह चुके हैं और इस परिवार का क्षेत्र में काफी गहरा प्रभाव माना जाता है। रितेश पाण्डेय बसपा के सबसे पढ़े लिखे सांसद थे। उन्होंने 2005 में लंदन के यूरोपियन बिजनेस स्कूल से इंटरनेशनल बिजनेस मैनेजमेंट में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। रितेश ने ब्रितानी युवती कैथरीना से प्रेम विवाह कर अपना घर बसाया है। सांसद बनने के बाद मायावती ने 2020 में लोकसभा में दल का नेता भी बनाया था। इसके बावजूद उनका कहना है कि बसपा में उनकी उपेक्षा की जा रही थी। जिस प्रकार मायावती ने श्रीराम मंदिर के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया उसके कारण उनकी बची-खुची लोकप्रियता का किला भी ध्वस्त हो गया ।
कहा जा रहा है कि बसपा की एक और सांसद संगीता आजाद कभी भी पाला बदल सकती हैं। यही हाल बसपा के मुस्लिम सांसद गुड्डू जमाली का बताया जा रहा है। बसपा को उत्तर प्रदेश में वर्ष 2007 में 30 प्रतिशत मत मिले थे जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में मात्र 12 प्रतिशत मत मिले।केवल एक विधायक ही विधानसभा में पहुंच सका। मायावती के राज में घोटालों की बाढ़ से सब परिचित हैं। उनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति भी जगजाहिर है।
बसपा नेत्री मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपनी पार्टी का नया उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है किंतु उनकी पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता उनके इस निर्णय को पूरी तरह से पचा नहीं पा रहे हैं। मायावती राजनीतिक भ्रम का शिकार हैं। कभी ब्राह्मणों पर हो रहे अत्याचार को मुद्दा बनाकर चुनावी मैदान में उतर जाती हैं तो कभी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को हवा देती हैं। मायावती ने मुस्लिम समाज से अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनवाने का वादा किया था और एक 50 पृष्ठ की बुकलेट प्रकाशित करवायी थी। बसपा की वेबसाइट पर आज भी हिंदू सनातन विरोधी बयानों को देखा जा सकता है। बसपा तिलक, तराजू और तलवार का नारा भी लगा चुकी है।अपनी जमीन को सुधारने के लिए 2022 के विधानसभा चुनाव में जय श्रीराम भी बोल चुकी है । लोग कह रहे हैं कि बसपा ने अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार करके अपना राजनीतिक अंत कर लिया है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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