नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) चंद्रयान-तीन मिशन को सफल बना चुका है। अब इसरो के वैज्ञानिक 2028 में चंद्रयान-4 (Chandrayaan-4) लॉन्च करने की तैयारियों में लगे हैं। इसरो अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र में निदेशक (Director, Space Applications Centre) के रूप में सेवाएं दे रहे डॉ नीलेश देसाई (Nilesh Desai) के मुताबिक चंद्रयान-4 का मकसद चंद्रयान-3 मिशन के तहत हासिल की गई उपलब्धियों को आगे बढ़ाना है। चंद्रयान-4 मिशन का मकसद दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने और चट्टान के नमूने एकत्र करने का है। गौरतलब है कि गगनयान मिशन के तहत इसरो चार यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना बना रही है। इसके अलावा 2040 तक भारतीय इंसान को भी चंद्रमा की सतह पर भेजने की योजना बना रही है।
दुनिया का चौथा देश बनेगा भारत
इसरो के मुताबिक चंद्रयान-4 में 350 किलोग्राम का रोवर तैनात करेगा। इसरो निदेशक डॉ नीलेश देसाई के मुताबिक चंद्रयान-चार मिशन को LUPEX मिशन भी कहा जाता है। अगर चंद्रयान-4 सफल होता है तो भारत चांद की सतह से नमूने वापस धरती पर लाने वाला चौथा देश बन जाएगा।
इंसानों की कॉलोनी बसाने के प्रयासों में मदद मिलेगी
उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का दीर्घकालिक दृष्टिकोण भी बताया। डॉ नीलेश देसाई ने कहा कि हमारे पास चंद्रमा की सतह पर इंसान को भेजने के लिए अगले 15 साल हैं। चांद की सतह से लिए सैंपल के विश्लेषण से मिलने वाले डेटा से चांद की सतह पर पानी जैसे संसाधनों के बारे में अहम जानकारी मिल सकती है। इससे भविष्य में इंसानों की कॉलोनी बसाने (human colonization) के प्रयासों को समर्थन मिल सकता है।
चट्टानों का सैंपल लेकर वापस धरती की तरफ भी आएगा मॉड्यूल
चंद्रयान-4 की लैंडिंग चंद्रयान-3 की तरह ही होगी। हालांकि, केंद्रीय मॉड्यूल परिक्रमा करने वाले मॉड्यूल के साथ डॉक कर वापस धरती की तरफ भी आएगा। वायुमंडल में फिर से प्रवेश कर केंद्रीय मॉड्यूल सैंपल गिराकर धरती के ठीक ऊपर परिक्रमा करने वाले मॉड्यूल से अलग हो जाएगा।
नमूनों को सुरक्षित रूप से वापस धरती पर लाना ही मिशन की सफलता
इसरो के मुताबिक चंद्रयान-चार के साथ भेजा जाने वाला लैंडर चांद के क्रेटर और खतरनाक सतह पर चुनौतीपूर्ण काम को अंजाम देगा। चांद की सतह असामान्य है, इस कारण अधिकांश हिस्सों के बारे में अब तक वैज्ञानिकों के पास ठोस साक्ष्य नहीं हैं। 2028 में चंद्रयान-4 मिशन में इसरो भारत के हेवी-लिफ्ट जीएसएलवी एमके III या एलवीएम3 लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल कर सकती है। हालांकि, चट्टानों के नमूनों को सुरक्षित रूप से वापस धरती पर लाने पर ही पूरे मिशन को सफल माना जाएगा। इसरो का अनुमान है कि तकनीकी रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण मिशन के लिए दो लॉन्च की जरूरत होगी।
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