बंगाल(Bengal)। सुप्रीम कोर्ट (SC) ने पश्चिम बंगाल (West Bengal) के संदेशखाली मामले (message blank cases) में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा इस मामले में सुनवाई का अधिकार होईकोर्ट को है. एसआईटी जांच वाली याचिका को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा इसकी मांग आपको कोलकाता हाईकोर्ट में करनी चाहिए. यहां नहीं. आपने रिट याचिका क्यों नहीं दायर की? सुनवाई में संदेशखाली हिंसा की तुलना मणिपुर हिंसा से करने का प्रयास किया गया, जिस पर जज ने नाराजगी जताई.
चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे कर देती हैं। इसे ही राजनीतिक भाषा में फ्रीबीज या रेवड़ी कल्चर कहा जाता है। लेकिन ये रेवड़ी कल्चर की शुरुआत कैसे हुई? इसका राज्यों की आर्थिक सेहत पर क्या असर पड़ता है? चुनावों पर ये मुफ्त की रेवड़ियां कितना असर डालती हैं? ये एक बड़ी बहस का मुद्दा होती हैं। राजनीतिक गलियारों में अक्सर कोई ना कोई नई बात और शब्द चलते रहते हैं. कुछ शब्द तो ऐसे होते हैं जो चर्चा के विषय बन जाते हैं. ऐसा ही एक शब्द ‘रेवड़ी कल्चर’ आजकल राजनीति में बहुत चर्चा में है।
मणिपुर से तुलना करने पर जमकर भड़की एससी
याचिकाकर्ता के वकील अलख श्रीवास्तव ने संदेशखाली मामले को मणिपुर के तरह लेते हुए सुनवाई करने की मांग की जिस पर जस्टिस नागरत्ना ने कड़ी नाराजगी जताई. उन्होंने बार – बार याचिकाकर्ता ने संदेशखाली की तुलना मणिपुर से न करने को कहा. इस पर याचिकाकर्ता ने कहा हाईकोर्ट में जाने के बाद भी मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि यहां कोई रेप हुआ ही नहीं. इस पर पश्चिम बंगाल सरकार के वकील ने सफाई दी और कहा कि मामले में कार्रवाई चल रही है गिरफ्तारी भी हुई है. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा हाईकोर्ट के पास भी एसआईटी टीम गठित करने के आदेश हैं. ऐसे में हाईकोर्ट जाइए और उन्हें ही तय करने दीजिए कि एसआईटी गठित हो या नहीं.
हाईकोर्ट ने सुवेंदु को दी संदेशखाली जाने की इजाजत
वहीं, दूसरी ओर कोलकाता हाईकोर्ट ने विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी को संदेशखाली जाने की इजाजत दे दी है. बता दें संदेशखाली में धारा 144 लगाई गई है. जहां अब सुवेंदु अधिकारी को जस्टिस कौशिक चंदा ने सुरक्षाकर्मियों के साथ जाएंगे.
इस पर सुवेंदु अधिकारी ने कहा कल 9 बजे मैं वहां जाउंगा. और वहां प्रीड़ितों से मुलाकात करूंगा. इसके पहले भी हम वहां जाना चाह रहे थे लेकिन नहीं जाने दिया गया.
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