नई दिल्ली (New Delhi) । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को अपनी महिला अधिकारियों (women officers) को स्थायी कमीशन (permanent commission) देने से इनकार करने पर केंद्र (Central government) और भारतीय तटरक्षक (ICG) को कड़ी फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समुद्री बल को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जो महिलाओं के साथ निष्पक्ष व्यवहार करे। शीर्ष अदालत महिला अधिकारी प्रियंका त्यागी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आईसीजी की पात्र महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की मांग की गई है।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि आप ‘नारी शक्ति’ की बात करते हैं। अब इसे यहां दिखाएं। आपको एक ऐसी नीति बनानी चाहिए, जो महिलाओं के साथ उचित व्यवहार करती हो। पीठ ने पूछा कि क्या तीन सशस्त्र बलों- सेना, वायु सेना और नौसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद संघ अभी भी ‘पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण’ अपना रहा है। आप इतने पितृसत्तात्मक क्यों हो रहे हैं? आप तटरक्षक बल में महिलाओं का चेहरा नहीं देखना चाहते?
आईसीजी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी से पीठ ने पूछा कि याचिकाकर्ता एकमात्र एसएससी महिला अधिकारी थी, जो स्थायी कमीशन का विकल्प चुन रही थी, उसके मामले पर विचार क्यों नहीं किया गया? पीठ ने कानून अधिकारी से तीनों रक्षा सेवाओं में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने वाले फैसले का अध्ययन करने को कहा।
इस दौरान कोर्ट ने भारतीय नौसेना में महिलाओं की मौजूदगी की बात कही। साथ ही सवाल उठाया कि ऐसे में तटरक्षक अपवाद क्यों होना चाहिए। कोर्ट ने कहा, ‘नौसेना में महिलाएं हैं। कोस्ट गार्ड में ऐसा खास क्या है? वो समय चला गया, जब हम कहते थे कि महिलाएं तटरक्षक नहीं बन सकतीं। महिलाएं सीमा की रक्षा कर सकती हैं। महिलाएं तटों की भी रक्षा कर सकती हैं।’
इस दौरान अदालत ने खासतौर से साल 2020 के बबीता पुनिया फैसले का जिक्र किया। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शॉर्ट सर्विस कमीशन की महिलाएं भी पुरुष समकक्षों की तरह स्थायी कमीशन पाने की हकदार हैं।
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