नई दिल्ली (New Dehli)। उत्तर प्रदेश राज्यसभा चुनाव (Uttar Pradesh Rajya Sabha elections)में भाजपा के आठवें उम्मीदवार (BJP’s eighth candidate)के तौर पर्चा दाखिल करने वाले संजय सेठ (Sanjay Seth)के वोट प्रबंधन के आक्रामक अभियान(aggressive management campaigns) के चलते पूरा चुनाव रोचक तो हो ही गया है, पर इसके साथ छोटे दलों के सामने अपने विधायकों को एकजुट रखने की चुनौती भी है। छोटे दलों के शीर्ष नेताओं के सामने भी मुश्किल है कि कैसे अपने विधायकों से वहां वोट डलवाएं जहां चाहते हैं।
पहले बात संजय सेठ की। धन संपदा के मामले में वैसे तो सपा की जया बच्चन भी बहुत आगे हैं। पर अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने की इच्छा रखने वाले विधायक संजय सेठ की इंट्री होने से खासे उत्साहित हैं। इनमें सपा के कुछ विधायक भी हैं। विधायकों को इधर-उधर भटकने या यूं कहें कि क्रासवोटिंग से रोकने को पार्टियां विह्प जारी करने की तैयारी में हैं। पर छोटे दल सुभासपा, निषाद पार्टी, रालोद व अन्य दलों के सामने भी अपने वोटों को एकजुट रखने की चुनौती है। इन दलों के मुस्लिम विधायक भाजपा प्रत्याशी को वोट देंगे यह बड़ा भी सवाल है।
रालोद व सुभासपा में कुछ ऐसे विधायक हैं जो मूलत: सपा के ही हैं और केवल दूसरे दल के सिंबल से चुनाव जीत कर आए। क्या यह विधायक अपने मूल दल को वोट करेंगे यह बड़ा सवाल है। उधर सपा में पल्लवी पटेल समेत कुछ विधायक भी मन बदल सकते हैं। पल्लवी पटेल तो खुले आम सपा के प्रत्याशी चयन पर सवाल उठा चुकी हैं। क्रासवोटिंग अगर भाजपा के पक्ष में ज्यादा हुई तो सपा के लिए अब अपने तीसरे प्रत्याशी को जिताने में खासी मुश्किलें आनी हैं। राज्यसभा चुनाव में जीत के लिए प्रथम वरीयता के 37 वोट चाहिए और भाजपा को आठवां प्रत्याशी जिताने में ज्यादा मशक्कत करनी पड़ रही है।
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