नई दिल्ली (New Dehli)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक गृहिणी की भूमिका(role of housewife) वेतनभोगी परिवार के सदस्य जितनी ही महत्वपूर्ण है। शीर्ष अदालत ने आगे (The apex court further)कहा कि एक गृहिणी के महत्व को कभी कम नहीं आंकना चाहिए। एक मोटर दुर्घटना मामले (motor accident cases)की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की।जस्टिस सूर्यकांत और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने 2006 में एक दुर्घटना में मरने वाली महिला के परिजनों को मुआवजा बढ़ाने का निर्देश देते हुए अपने आदेश में कहा।
पीठ ने मुआवजा बढ़ाकर 6 लाख रुपये कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने वाहन मालिक को मृत महिला के परिवार को छह सप्ताह में भुगतान करने का निर्देश देते हुए कहा कि किसी को गृहिणी के महत्व को कभी कम नहीं आंकना चाहिए। गृहिणी के कार्य को अमूल्य बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घर की देखभाल करने वाली महिला का मूल्य उच्च कोटि का है और उसके योगदान को मौद्रिक संदर्भ में आंकना कठिन है।
पीठ ने कहा कि चूंकि जिस वाहन में वह यात्रा कर रही थी उसका बीमा नहीं था, इसलिए उसके परिवार को मुआवजा देने का दायित्व वाहन के मालिक पर आ गया।
एक मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने उनके परिवार, उनके पति और नाबालिग बेटे को 2.5 लाख रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया था। परिवार ने अधिक मुआवजे के लिए उत्तराखंड हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन 2017 में उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी गई कि चूंकि महिला एक गृहिणी थी, इसलिए मुआवजा नहीं दिया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट की टिप्पणी को अस्वीकार कर दिया और कहा कि एक गृहिणी की आय को दैनिक मजदूर से कम कैसे माना जा सकता है? हम इस तरह के दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं करते हैं।
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