इंदौर। बच्चों का चिड़चिड़ा होना, तेजी से बार-बार वजन कम होना, लगातार शरीर में दर्द बने रहना, पढ़ाई में मन नहीं लगना या सिर दर्द या खून की कमी जैसे लक्षण सामने आए तो तुरंत डाक्टर से सम्पर्क करें। मोबाइल के रेडिएशन और जंक फूड से बच्चे तेजी से कैंसर का शिकार हो रहे हैं। कैंसर के खतरे को कम करने की शुरुआत मां के गर्भ से ही की जा सकती है।
मोबाइल का साथ और दिनभर जंक फूड और पैकेट में पैक खाना खाने की वजह से बच्चे ब्लड कैंसर जैसी बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं का जंक फूड खाना भी इसका एक मुख्य कारण बन रहा है। भारत वर्ष में हर साल लगभग 50 हजार से अधिक बच्चे कैंसर का शिकार हो रहे हैं। विश्व बाल कैंसर दिवस के मौके पर जागरूकता फैलाने के लिए डाक्टरों ने पहल की है। बच्चों मेंं होने वाले कैंसर को लेकर डाक्टर जागरूकता फैला रहे हैं। इंदौर अष्टांग आयुर्वेदिक कालेज भी बच्चों मे हो रहे ब्लड कैंसर जैसी गंभीर बीमारी पर सतर्कता रखते हुए इलाज कर रहा है। डाक्टरों से मिली जानकारी के अनुसार 80 प्रतिशत बच्चों में कैंसर डिटेक्ट होने के बाद भी उनकी जान बचाई जा सकती है। हालांकि इलाज न करवा पाने की सूरत में गरीब परिवारों के बच्चे गंभीर अवस्था में पहुंच रहे हैं, जिसे रोका जाना आवश्यक है।
गर्भावस्था में जांच जरूरी
बच्चों में कैंसर के खतरे को कम करने के लिए गर्भावस्था के दौरान ही शिशु की जांच महत्वपूर्ण भुमिका निभाती है। गर्भावस्था के दूसरे महीने से लेकर 14 साल तक की उम्र तक बच्चों की सेहत का विशेष ख्याल रखना जरूरी है। खास तरह की सावधानियां बरतने पर कैंसर जैसी बीमारी से बचा जा सकता है। मां की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से बच्चों में भी यही जीन्स शिफ्ट हो जाता है और मौसम के बदलाव से बच्चे बीमार पडऩे लगते हैं। अष्टांग आयुर्वेद के डाक्टर अखिलेश भार्गव से मिली जानकारी के अनुसार डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रकाशित 2021 की रिपोर्ट के अनुसार कम इन्कम वाले देशों में 30 प्रतिशत बच्चों की जान इलाज न मिलने के कारण हो जाती है। यूकेनिया, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के ट्यूमर न्यूरोब्लास्टोमा, नेफ्रोब्लास्टोमा बचपन के कैंसर से सबसे प्रचलित प्रकार है।
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