– आर.के. सिन्हा
एक बार फिर पाकिस्तान को भारत की रक्षा संबंधी तैयारियों की खबर देने वाले धूर्त शख्स की गिरफ्तारी से साफ है कि अब भी देश में आस्तीन के सांप हैं। उन्हें सख्ती से पूरी तरह से कुचलना ही होगा। चंद सिक्कों की खातिर अपने देश को बेचना उसी तरह है, जैसे कोई राक्षसी प्रवृति का शख्स कुछ पैसों के लालच में अपनी मां के खून का सौदा कर ले।
यूपी एटीएस को बड़ी सफलता मिली है। एटीएस की टीम ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए जासूसी करने वाले एक भारतीय युवक को गिरफ्तार किया है। आरोपित सतेंद्र सिवाल विदेश मंत्रालय के मल्टी टास्किंग स्टाफ में काम करता था। वर्तमान में वह मास्को स्थित भारतीय दूतावास में कार्यरत था। सतेंद्र हापुड़ का रहने वाला है। यूपी एटीएस से पूछताछ में उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। अच्छी-खासी पगार पाने वाला एक सरकारी कर्मी का जमीर इस कदर गिर जाएगा कि वह कुछ अतिरिक्त धन के लालच में देश के साथ गद्दारी करेगा, यह सोचना भी आसान नहीं।
सतेंद्र जैसे देश के दुश्मनों को सीधे मौत की सजा मिलनी चाहिए। अगर उन्हें हल्की सजा मिलेगी तो वह उन शहीदों का अपमान होगा जिन्होंने देश की खातिर अपनी जान का नजराना दिया। सतेंद्र जैसे लोगों को दुश्मन से दोस्ती करते हुए यह ख्याल क्यों नहीं आता कि पाकिस्तान ने भारत पर बार-बार हमला किया है। हालांकि, उसे हर बार कसकर मार पड़ी। जब वह सीधे हमले में शिकस्त खाता रहा तो उसने 2001 में मुंबई में खुफिया ढंग से आतंकी हमला करवाया। वह भारत के खिलाफ लगातार कठमुल्लों को खाद-पानी देता रहा।
आपको गद्दार महिला जासूस माधुरी गुप्ता की कहानी का तो पता ही होगा। माधुरी गुप्ता भारतीय विदेश सेवा की ग्रुप अफसर थी। अपनी लगभग ढाई दशक लम्बी सेवा में माधुरी गुप्ता ने पाकिस्तान इराक, लाइबेरिया, मलेशिया और क्रोएशिया में नौकरी की। उसकी उर्दू पर अच्छी पकड़ थी। सूफियाना मिजाज वाली माधुरी साहित्यिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहती थी। खुले ख्यालों वाली माधुरी धूम्रपान, शराब-सेवन और पुरुष-मित्रों से सम्बन्ध बनाने के लिए खासतौर पर जानी जाती थी। इस्लामाबाद-स्थित भारत के उच्चायोग में पोस्टिंग के दौरान माधुरी गुप्ता को उर्दू पर उसकी पकड़ की वजह से पाकिस्तानी मीडिया पर नजर रखने का काम सौंपा गया था। पाकिस्तान में पोस्टिंग के बमुश्किल छह महीने बीतते-बीतते माधुरी जमशेद नाम के व्यक्ति के चंगुल में फंस गई। भारत सरकार के अधिकारियों को जब आभास हुआ कि माधुरी शत्रु के जासूसी षड्यंत्र में फंस गयी है तो पुष्टि के लिए उसके माध्यम से एक गलत सूचना जानबूझ कर भेजी गयी। परिणामस्वरूप, खुफिया सूचनाओं को लीक करने का माधुरी के कारनामों का पक्का यकीन हो गया।
माधुरी गुप्ता को भूटान में आयोजित होने वाले सार्क समिट की तैयारियों के बहाने स्वदेश वापस बुलाया गया। 22 अप्रैल 2010 को वह वह ज्यों ही दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरी भारतीय खुफिया एजेंसी के लोगों ने उसे अपनी पकड़ में ले लिया और पूछताछ के लिए अज्ञात स्थान पर ले गये। पूछताछ से पता लगा कि वह आईएसआई के दो जासूसों से सांठगाँठ करके उन्हें खुफिया सूचनाएं देती है। इन आरोपों के आधार पर 20 जुलाई 2010 को माधुरी को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे न्यायिक हिरासत में रखा गया। 21 महीने जेल में रहने के बाद 7 जनवरी 2012 को उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया। 18 मई 2018 को दिल्ली के अतिरिक्त सेशंस जज सिद्धार्थ शर्मा ने जासूसी के लिए माधुरी को 3 वर्षों की सजा सुनाई। मुझे लगता है कि माधुरी जैसे गद्दारों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए थी। उसे उसकी करतूत के लिए बहुत कम सजा मिली। जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूँ कि देश के गद्दारों की एक ही सजा होृ- सजा-ए- मौत।
पाकिस्तान की तरफ से राजधानी दिल्ली स्थित उसके उच्चायोग से भी जासूसी की जाती थी। भारत सरकार ने 1950 के दशक में चाणक्यपुरी में विभिन्न देशों को भू-भाग आवंटित किये थे। पाकिस्तान को भी इस आशा के साथ बेहतरीन जगह पर अन्य देशों की अपेक्षा बड़ा प्लाट दिया गया था कि वह भारत से अपने संबंधों को मधुर बनाएगा। पर पाकिस्तान ने भारत को निराश किया। वह अपनी करतूतों से न बाज आया न ही सुधरा। उसके गर्भनाल में भारत के खिलाफ नफरत भरी हुई है। भारत से नफरत करना पाकिस्तान के डीएनए में है।
सतेंद्र और माधुरी गुप्ता जैसे शातिर लोगों के पकड़े जाने से यह बात भी साबित होती है कि हमारे यहां खास जगहों पर तैनात लोगों को ट्रेनिंग इस तरह की नहीं मिलती, जिससे वे देश के अहम दस्तावेज दुश्मन मुल्क को देने के बारे में सोचें भी नहीं। इस तरफ भी ध्यान देने की जरूरत है। कहना न होगा कि यह जानकर मन बहुत उदास हो जाता है कि सरकारी सेवा या फिर सेना में ही कार्यरत कुछ देश के गद्दार महत्वपूर्ण सूचनाएं शत्रुओं को देते रहते हैं। पाकिस्तान की तरह चीन भी लगातार इस कोशिश में रहता है कि भारत की रक्षा तैयारियों की जानकारी उसे मिलती रहे।
कुछ समय पहले ही चीन के लिए जासूसी के आरोप में एक वरिष्ठ पत्रकार राजीव शर्मा को गिरफ्तार किया गया था। तब यह सवाल कई स्तरों पर पूछा गया था कि क्या पत्रकार इस देश और यहां के कानून से ऊपर हैं? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सबकुछ करना जायज है? दरअसल राजीव शर्मा भारत सरकार का मान्यता प्राप्त पत्रकार था। वह उस आड़ में अहम सरकारी विभागों से सूचनाएं हासिल करके चीन को लगातार देता रहता था। उसे बदले में मोटी रकम मिलती थी। सीधी-सी बात यह है कि देश के दुश्मनों के लिए जासूसी करने वालों का जड़-मूल से खात्मा होना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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