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    Yamuna में कचरा डालने वालों को करें दंडित- संसदीय समिति ने की सिफारिश, दिए कई सुझाव

  • February 07, 2024

    नई दिल्ली (New Delhi)। एक संसदीय समिति (Parliamentary committee) ने सिफारिश (recommendation) दी है कि यमुना (Yamuna) में कचरा डालने वालों (dump garbage ) को दंड का कानूनी प्रावधान (legal provision of punishment) होना चाहिए। अन्य नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए भी ऐसी ही सख्ती होनी चाहिए। समिति ने यमुना को बेहद बुरे हालात में बताते हुए अपनी सिफारिशों के साथ एक विस्तृत रिपोर्ट ‘यमुना नदी की सफाई परियोजना (yamuna river cleaning project) की दिल्ली तक समीक्षा और दिल्ली में नदी क्षेत्र का प्रबंधन’ मंगलवार को लोकसभा में प्रस्तुत की।


    जल संसाधन स्थायी समिति ने अपनी इस 27वीं रिपोर्ट में कहा कि निर्माण व विध्वंस से निकला मलबा और बायोमेडिकल कचरा यमुना में डाला जा रहा है। दिल्ली विकास प्राधिकरण ने यहां सुरक्षाकर्मी, कैमरे आदि लगाए हैं, चालान बनाए जा रहे हैं। 2018 में महज 1 तो 2021 में 610 चालान बने। यह बताता है कि नदी में कचरा व मलबा डालने के मामले तेजी से बढ़े हैं। इनसे नदी का प्राकृतिक प्रवाह बिगड़ रहा है।

    यमुना से दूर करवाएं शवदाह..
    .यमुना किनारे शवदाह को समिति ने बड़ा मुद्दा बताया। कहा, इससे नदी में प्रदूषण का कोई अध्ययन नहीं हुआ है। समिति ने राज्यों को बिजली और सीएनजी शवदाह बनाने के लिए वित्तीय सहयोग देने की सिफारिश की। यमुना किनारे शवदाह की परंपरा रोकने के लिए रास्ते निकालने को कहा। जरूरी होने पर शवदाह स्थलों को नदी के किनारों से दूर स्थानांतरित करने की सिफारिश की गई।

    तीन भागों में बांटी यमुना, दिल्ली में सबसे प्रदूषित…
    समिति ने बताया कि स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन (एनएमसीजी) के तहत यमुना को 3 भागों में बांटा गया है। उद्गम यमुनोत्री से हथिनी कुंड बैराज तक का नदी का हिस्सा प्रदूषित नहीं है। हथिनी कुंड बैराज से पल्ला गांव तक नदी मध्यम स्तर पर प्रदूषित है। वहीं पल्ला से ओखला तक तीसरा हिस्सा अत्यधिक प्रदूषित है। यही तीसरा हिस्सा दिल्ली से गुजरता है।

    पल्ला के निकट दिल्ली में प्रवेश करने के बाद यमुना यूपी में असगरपुर में निकलने तक दिल्ली में 40 किमी बहती है। समिति ने बताया कि 31 अगस्त 2023 तक नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत 34 एसटीपी परियोजनाएं आवंटित हुई थीं। इनमें से एक हिमाचल प्रदेश और दो हरियाणा को मिले थे, जो पूरे हो चुके हैं। लेकिन दिल्ली को मिले 1,268 एमएलडी क्षमता के 11 में से 6 एसटीपी ही बने। उनकी क्षमता 704 एमएलडी है। यूपी में भी 20 में से 6 एसटीपी ही बने। यहां 694.09 क्षमता के मुकाबले 130.25 एमएलडी की क्षमता ही हासिल हुई। देरी की वजह सड़क व रेलवे क्रॉसिंग की अनुमति से लेकर राज्य स्तर पर समन्वय में कमी तक शामिल है। सिफारिश में कहा कि दिल्ली व यूपी में नदी की सफाई की परियोजनाएं तेजी से चलानी चाहिए ताकि लागत व समय सीमा न बढ़े।

    पूरा सीवेज ट्रीटमेंट हो तो ‘यमुना का झाग’ हटे 
    समिति ने कहा कि हरियाणा, दिल्ली व यूपी से यमुना में गिराए जा रहे पानी से प्रदूषण बढ़ रहा है। पूरे सीवेज ट्रीटमेंट से ही नदी में झाग और फेन बनना बंद होगा। सर्दियां शुरू होते ही दिल्ली में ओखला बैराज, आईटीओ ब्रिज, कालिंदी कुंज आदि जगहों पर झाग देखने को मिलता है। वहीं ओखला बैराज के लिए कहा कि यूपी का सिंचाई विभाग इसकी देखभाल करता है। यहां से होने वाला बिना ट्रीट किए गंदे पानी का तेज बहाव झाग बनाता है। इसमें पानी कपड़े धोने के डिटर्जेंट और फॉस्फेट में शामिल सर्फेक्टेंट की भारी मात्रा होती है। ओखला बैराज पर जमा पानी में काफी जलकुंभी भी होती है। इससे झाग की मात्रा बढ़ जाती है।

    उर्वरक-कीटनाशकों से प्रदूषण का 5 साल से मूल्यांकन नहीं
    समिति ने कहा कि सीपीसीबी खुद मानता है कि दिल्ली में यमुना जल नहाने लायक भी नहीं है, फिर भी उसने खेती के लिए उर्वरकों से हो रहे प्रदूषण पर पिछले 5 साल में कोई मूल्यांकन नहीं कराया। उर्वरक व कीटनाशक सेहत को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। समिति ने निर्देश दिए कि जल शक्ति व कृषि मंत्रालय और किसानों के साथ मिलकर इसका समाधान निकाला जाए। नदी किनारों पर जैविक खेती को बढ़ावा दें, किसानों को इसके लिए प्रोत्साहन राशि दी जाए।

    यमुना से कितने अतिक्रमण हटाए, तीन महीने में रिपोर्ट दें
    समिति ने बताया कि दिल्ली और हरियाणा ने यमुना के बाढ़ क्षेत्र व वेटलैंड से अतिक्रमण हटाने की जानकारी दी लेकिन उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान ने नहीं। उन्हें रिपोर्ट जारी होने की तारीख से अगले 3 महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया है।

    खेती में ड्रिप सिंचाई को बढ़ावा दें :
    यह भी कहा कि हथिनी कुंड बैराज से भारी मात्रा में पानी सिंचाई के भी काम आ रहा है। इससे वजीराबाद बैराज में मानसून के अलावा बाकी महीनों में बेहद कम पानी हो जाता है। भूजल भी सूखता है। इसका समाधान किसानों के बीच ड्रिप से सिंचाई को बढ़ावा देकर निकाला जा सकता है। मानसून में पानी की भारी आवक को भी स्टोर करने के रास्ते निकालने होंगे।

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