नई दिल्ली (New Delhi) । अयोध्या (Ayodhya) के श्रीराम मंदिर (Shri Ram Temple) में रामलला गर्भगृह में स्थापित हो चुके हैं. रामलला पहले प्रतिमा स्वरूप थे और अब प्राण प्रतिष्ठा के बाद वह देवस्वरूप हो गए हैं. महज प्रतिमा से सहज देव बनने के इस सफर के साक्षी रहे हैं- संस्कृत और संगीत के विद्वान सुमधुर शास्त्री, जिन्होंने रामलला को गढ़ते देखा है. उन्होंने बताया कि अरुण योगीराज ने पिछले सात महीनों में कई बार आधी-आधी रात में उन्हें जगाया और कहते थे कि आप साथ चलिए लल्ला मुझे बुला रहे हैं. फिर वो घंटों तक एक-एक एंगल से लल्ला को निहारते थे और कई बार तो भोर भी कर देते थे.
रामलला की स्थापना थी बड़ी जिम्मेदारी
सुमधुर शास्त्री ने कहा, यह निश्चिच रूप से बड़ा विषय था. इतने बड़े संघर्ष के बाद देवता को प्रतिष्ठित करना एक बड़ी जिम्मेदारी थी. उन्होंने कहा कि बाल्यकाल से संघ के स्वयंसेवक रहे, अब साकेत महाविद्यालय में संगीत प्रवक्ता हैं तो जब इस कार्य के लिए ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बुलाया तो एहसास नहीं था कि इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन जो बातचीत हुई, उससे गंभीरता समझ में आई. मेरा सौभाग्य है कि मैंने प्रभु रामलला को शिलारूप से प्रकट होते देखा है.
सबसे आखिरी में अरुण योगिराज ने किया शिलापूजन
श्रीरामलला के विग्रह निर्माण को लेकर उन्होंने कहा कि सबसे पहले सत्यनारायण पांडे का नाम आया और फिर जीएल भट्ट का नाम सामने आया. बल्कि शिला पूजन भी पहले जीएल भट्ट ने किया, फिर सत्यनारायण पांडेय ने किया. इसके बाद आखिरी में अरुण योगीराज ने शिला पूजन किया. तीनों ही मूर्तिकार अपनी पद्धति से, कला का प्रदर्शन करने में प्रतिबद्धता से लगे रहे.
सभी को ट्रस्ट के निर्देश थे, रामलला की छवि बाल स्वरूप की हो, नख -शिख से 51 इंच की लंबाई है. बाल सुलभ छवि और मुस्कान उभर कर आई. भगवान के सभी लक्षणों पर बारीकी से बातचीत हुई.
कला की स्वतंत्रता का रखा गया ध्यान
अरुण योगीराज ने सबसे देरी से काम शुरू किया. भाषा की थोड़ी मुश्किल आती थी, लेकिन टूटी-फूटी इंग्लिश में काम चल जाता था, लेकिन इसमें भी कम्युनिकेशन का जरिया हमारे भाव बने. यह सब मिलाकर 7 से 8 माह का समय लगा. कलाकार की कला की स्वतंत्रता का ध्यान रखा गया है. 17 जनवरी को जिनकी प्रतिष्ठा हुई है, वह रामलला मूर्ति से बिल्कुल अलग लगे, क्योंकि स्थापना के बाद उनमें देवत्व भाव आ गया.
भगवान के स्वरूप पर हुई कई बार चर्चाएं
भगवान के उत्तर भारतीय स्वरूप को समझने के लिए स्वामी नारायण छपिया मंदिर गए, नैमिषारण्य के मंदिर देखे. अयोध्या की मूर्ति संकल्पना में प्रतिमा कैसी लगती है, इस पर विचार किया, संतों से चर्चा कराई. पुस्तकों में पढ़े और रामायण से दैवीय स्वरूप के श्लोक पढ़े और उन्हें समझने की कोशिश की. राम मंदिर निर्माण समिति के चेयरमैन नृपेंद्र मिश्र बीच-बीच में जायजा लेते थे. उन्होंने कलाकारों के रहने और उनके आराम का विशेष ध्यान रखा.
उन्होंने कहा कि मैं विशेष भाग्यवान हूं कि मैंने रामलला को पहले दिन से बनते देखा है और जो स्वरूप अब सामने आया तो मैं भाव विह्वल हो गया. अरुण योगीराज ने भी कहा कि हमारा लल्ला बदल गया. उनके कहने का तात्पर्य ये था कि मैंने जिसको बनाया, वह रामलला अब वाकई देवत्व स्वरूप वाला लग रहा है. वह बहुत विभोर थे.
नेत्र गढ़ने का कार्य रहा विशेष
सुमधुर शास्त्री ने नेत्र मिलन और नेत्र निर्माण की बारीकियों को भी बहुत विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि प्रतिमा तैयार हो गई, लेकिन प्रतिमा के नेत्र विशेष मूहूर्त में तैयार किए जाते हैं. नेत्र गढ़ने की परंपरा बहुत विशेष है. कर्मकूटि की विधान पूजा के बाद, स्वर्ण की छेनी और चांदी की हथौड़ी से देवता की आंखें गढ़ी गईं. बहुत कोमलता के साथ. जब तक नेत्र नहीं बने थे, तब तक मूर्ति का भाव वो नहीं था, लेकिन नेत्र बनते ही उसमें सम्यक भाव, समदर्शी भाव आ गया.
ध्यान ये देना था कि रामलला को देखकर ऐसा लगे कि वह सभी को देख रहे हैं. दशावतार बनाने में भी सहज और सरलता का ध्यान रखा है. श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं तो उनके आयुधों का भी रेखांकन किया है. सूर्यदेव, सूर्यवंश का प्रतीक है. नासिका से नाभि की दूरी का ध्यान रखा. इस काम में 7 दिन लगे.
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