अयोध्या (Ayodhya)। 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का प्रोग्राम है. इससे पहले ही देश का माहौल राम के रंग में रंग चुका है. राम जन्मभूमि अयोध्या की चर्चा इन दिनों चारों ओर है. रामलला के मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा और अयोध्या मंदिर के उद्घाटन में अब चंद घड़ियां ही बची है. ऐसे में जब चारों ओर माहौल राममय हो रहा है और हर कोई भक्तिरस में डूबा है, तब मशहूर शायर अल्लामा इकबाल (Allama Iqbal) की एक नज्म को याद किया जाना जरूरी है.
अल्लामा इकबाल को उर्दू शायरी में मीर तकी और मिर्जा गालिब जैसा शायर माना जाता है. इकबाल के पूर्वज कश्मीरी ब्राह्मण थे, जो इस्लाम कबूल कर स्यालकोट में बस गए. लेकिन गंगा-जमुनी तहजीब इनके शेर और नज्मों में खूब झलकती है, तभी तो इन्होंने लिखा- सारे जहां से अच्छा, हिन्दोंसां हमारा, हम बुलबुले हैं इसकी, यह गुलिस्तां हमारा. इकबाल ने भगवान राम के नाम भी एक नज्म ‘है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज’ लिखा है.
अल्लामा इकबाल इस नज्म में लोगों को राम के महत्व को समझने के लिए चिंतन का पैगाम देते हैं. अपनी नज्म में इकबाल राम के व्यक्तिव को बताने के लिए अहले नजर और इमाम जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं. अहले नजर का मतलब इकबाल के लिए आंखों की नजर नहीं बल्कि रूहानी नजर से है. इसके बाद वो राम को इमाम (नेतृत्वकर्ता) के रूप में मुखातिब करते हैं. इकबाल की नजर में राम ऐसे नेतृत्वकर्ता हैं जो लोगों को सही मार्ग दिखाए और अंधेरे से रोशनी की ओर ले जाए.
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नज़र समझते हैं इस को इमाम-ए-हिंद
एजाज़ इस चराग़-ए-हिदायत का है यही
रौशन-तर-अज़-सहर है ज़माने में शाम-ए-हिंद
तलवार का धनी था शुजाअ’त में फ़र्द था
पाकीज़गी में जोश-ए-मोहब्बत में फ़र्द था
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