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    PM मोदी की ‘आंख-कान’ जिसने राम मंदिर निर्माण में झोंक दी जान, 3 साल में 54 बार गए अयोध्या

  • January 20, 2024

    नई दिल्ली: अयोध्या (Ayodhya) में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. नागर शैली में बने भव्य मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम विराजेंगे. पिछले तीन साल के दौरान दिन-रात मंदिर निर्माण का काम चलता रहा और एक शख़्स ने समय पर मंदिर निर्माण के लिए अपनी जान झोंक दी. अयोध्या, उसका दूसरा घर बन गया. 3 साल में 54 बार अयोध्या गए. उस शख़्स को प्रधानमंत्री की आंख-कान भी कहा जाता है. वो शख़्स हैं राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष और पूर्व नौकरशाह नृपेंद्र मिश्र.

    कौन हैं नृपेंद्र मिश्र?
    8 मार्च 1945 को उत्तर प्रदेश के मेरठ में जन्में नृपेंद्र मिश्र ने इलाहाबाद यूनविर्सिटी से केमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है. वह अपने डिपार्टमेंट के टॉपर भी थे. जिस वक्त उन्होंने पीजी की पढ़ाई पूरी की, तब सिविल सर्विसेज का एग्जाम देने की अर्हता पूरी नहीं करते थे और 2 साल बचे थे. ऐसे में उन्होंने एक और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने का फैसला लिया. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ही एमए पॉलिटिकल साइंस दाखिला ले लिया. बाद में सिविल सेवा में आने के बाद 1980 में उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में भी मास्टर्स की डिग्री हासिल की.

    नृपेंद्र मिश्र साल 1967 में सिविल सेवा में चुने गए और IAS बने. उन्हें उत्तर प्रदेश कैडर आवंटित हुआ. मिश्र के साथ काम कर चुके तमाम अधिकारी कहते हैं कि उनकी निर्णय लेने की क्षमता बहुत तेज है. झटपट फैसले लेते हैं. जब वह प्रतिनियुक्ति यानी डेपुटेशन पर केंद्र सरकार में आए और वाणिज्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव बने तो एक्सपोर्ट यूनिट से जुड़े तमाम प्रस्ताव पर चंद मिनट में फैसला ले लिया करते थे.

    PM मोदी पर वो लेख, जिससे BJP की निगाह में आए
    नृपेंद्र मिश्र फर्टिलाइजर सेक्रेटरी और टेलीकॉम सेक्रेटरी भी रहे. साल 2006 में उन्हें टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. साल 2009 के बाद उन्होंने ‘पब्लिक इंट्रेस्ट फाउंडेशन’ की शुरुआत की, जिसे ‘वन मैन एनजीओ’ बताते थे. इसका उद्देश्य देश में लोकतांत्रिक परंपरा को और सुदृढ़ करना था. मिश्र ने इसी दरम्यान तमाम अखबारों में आर्टिकल लिखने शुरू किए. साल 2014 के चुनाव से ठीक पहले उनका एक आर्टिकल खास मशहूर हुआ. जिसमें उन्होंने नरेंद्र मोदी के इलेक्शन एफिडेविट को लेकर उनका बचाव किया था. कथित तौर पर इसी लेख से वह भाजपा नेतृत्व की निगाह में आए.


    जब आया जेटली का फोन
    2014 का लोकसभा सिर पर था. बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को पीएम का उम्मीदवार बनाया था. नृपेंद्र मिश्र कहते हैं कि एक दिन वह अपनी कार चलाकर कहीं जा रहे थे. शाम 4 बजे उन्हें अरुण जेटली का फोन आया है और उन्होंने कहा कि क्या वह अगले दिन गुजरात भवन आ सकते हैं. उन दिनों बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी वहीं ठहरे हुए थे. मिश्र याद करते हैं कि जब वह जेटली से मिलने पहुंचे तो वहां अजीत डोवाल समेत कुछ और लोग मौजूद थे. वहां नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात हुई और उन्होंने अपनी प्राथमिकताएं गिनाईं. नृपेंद्र मिश्र, अगले चार दिनों तक वह मोदी के लिए ब्लूप्रिंट तैयार करते रहे.

    PMO में एंट्री और PM के ‘आंख-कान’
    नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और उन्होंने नृपेंद्र मिश्र को अपना प्रिंसिपल सेक्रेटरी बनने का प्रस्ताव दिया. 27 मई को मिश्र ने उसी दिन कार्यभार ग्रहण किया, जिस दिन नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाला था. इसके बाद अगले 5 वर्षों तक नृपेंद्र मिश्र पीएमओ में प्रधानमंत्री के ‘आंख-कान’ बने रहे. उनकी गिनती, पीएम के सबसे भरोसेमंद अफसरों में होती रही. मिश्र ने पीएम की हर योजना और मंशा को धरातल पर उतारने में पूरी जान झोंक दी.

    ‘मैं कुछ अलग करना चाहता हूं…’
    नौकरशाही में करीब 6 दशक बिताने के बाद नृपेंद्र मिश्र ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद खुद अपना पद छोड़ दिया. पद छोड़ने के करीब 6 महीने बाद उन्हें नेहरू मेमोरियल म्यूजियम और लाइब्रेरी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जिसे अब प्रधानमंत्री संग्रहालय के नाम से जाना जाता है. अपनी नियुक्ति के महीने भर बाद ही नृपेंद्र मिश्र ने उनके बाद पीएम के प्रिंसिपल सेक्रेटरी बने पीके मिश्रा (PK Mishra) से कहा कि वह कुछ विशेष और अलग करना चाहते हैं. उस वक्त उनके दिमाग में दो चीजें थीं. पहला राज्यपाल का पद और दूसरा राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष.

    चौंक गए थे गृहमंत्री अमित शाह
    इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक जब नृपेंद्र मिश्र ने ऐसी मंशा जाहिर की तो गृहमंत्री अमित शाह भी चौंक गए थे. उन्होंने खुद मिश्र से इसकी तस्दीक की. इसके बाद प्रधानमंत्री ने उन्हें राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाने की फौरन मंजूरी दे दी थी.

    अयोध्या को बना लिया था दूसरा घर
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहमति के बाद जब नृपेंद्र मिश्र, राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष बने तो एक तरीके से अयोध्या का सर्किट हाउस उनका दूसरा घर बन गया. पिछले तीन साल में उन्होंने अपना ज्यादा वक्त इसी सर्किट हाउस में बिताया और मंदिर निर्माण की निगरानी करते रहे. क्योंकि सर्किट हाउस से राम मंदिर परिसर की दूरी महज 100 मीटर के आसपास है.

    3 साल में 54 बार गए अयोध्या
    नृपेंद्र मिश्र (Nripendra Misra), मिशन मोड में मंदिर निर्माण करवाते रहे. अयोध्या में दिन-रात 3500 मजदूर मंदिर निर्माण में लगे थे. इसके अलावा कम से कम 1500 और मजदूर खदान से लेकर वर्कशॉप में काम कर रहे थे, जहां मंदिर के पिलर से लेकर पत्थर तक गढ़े जा रहे थे. मिश्र को एक एक चीज की बारीक जानकारी थी. मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलने के बाद से अबतक, वह पिछले मंगलवार को वह 54वीं बार अयोध्या पहुंचे.

    हनुमानजी को मानते हैं अपना आराध्य
    नृपेंद्र मिश्र, खुद बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति हैं और हनुमान जी को अपना आराध्य मानते हैं. अयोध्या का राम मंदिर, पहला मंदिर नहीं है जिसका उन्होंने निर्माण कराया है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 25 साल पहले 1995-96 में वह एक और मंदिर बनवा चुके हैं. तब उनकी मां की ख्वाहिश थी कि लखनऊ स्थित मकान में खुद का एक मंदिर हो. इसके बाद मिश्र ने वहां एक छोटा मंदिर बनवाया और हनुमान जी की स्थापना की. बाद में भगवान राम, कृष्ण, विष्णु भगवान शंकर और गणेश जी की भी प्रतिमाएं भी यहां स्थापित हुईं.

    नृपेंद्र मिश्र कहते हैं- ”हनुमान जी मेरे इष्ट देवता हैं. मेरा उनपर बहुत भरोसा है और बजरंगबली तो राम जी के सेवक हैं. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि मेरी राम में कितनी आस्था है…”

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