नागदा। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भारतीयों ने हिंदी के द्वारा ही संपूर्ण भारत में क्रांति का शंख फूंका। हिंदी सदियों से भारतीय संस्कृति के मूल मंत्र वसुधैव कुटुंबकम की संवाहिका बनी हुई है। आज विश्व में वही भाषा टिक सकती है जो स्वयं को विस्तार दें। हिंदी इस शर्त को पूरा करती है। हिंदी भाषा ही सदियों से देश दुनिया को एक किए हुए है। वीर सेनानियों ने आजादी लाने का हथियार हिंदी को बनाया था। यहां तक कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज तथा आजाद हिंद सरकार की स्थापना दक्षिण पूर्व एशिया में की थी, क्योंकि उन जैसे अनेक जननायकों की माध्यम भाषा हिंदी ही थी।
यह बात साहित्यिक अनुष्ठान राष्ट्रीय स्वाभिमान यज्ञ समारोह में सरस्वती शिशु मंदिर के विशाल सभागृह में अतिथि वक्ता डॉ. मुनीन्द्र दूबे रतलाम ने कही। डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति की संवाहिका हिंदी ही है। शीघ्र ही हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा पर आसीन होगी जिससे विश्व में जारी अंग्रेजी जैसे कुछ भाषाओं के वर्चस्व से मुक्ति की राह खुलेगी। कार्यक्रम को अभिभाषक रमेशचंद्र चंदेल, प्रेस परिषद अध्यक्ष दीपक चौहान ने भी संबोधित किया। अतिथि परिचय समिति अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीनारायण सत्यार्थी ने किया। वेदिका शर्मा ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ तिलक लगाया गया। अतिथियों का स्वागत सीएल वर्मा, शिव पहलवान, कैलाश खनार, अंकित गुर्जर, सुनाली दीदी, विवेकसिंह, गणशे पडि़हार, विवेक परिहार, सुंदरलाल जोशी, गौरव चौरसिया, जयंती चौहान, ममता पोरवाल, दुर्गा खिंची ने किया। अतिथियों का समिति द्वारा पुष्पमाला, स्मृति चिन्ह, शाल, उपवस्त्र भेंटकर सम्मान किया गया। सारस्वत अतिथि समाजसेवी विनोद सेन (श्रीवास) का नागरिक अभिनंदन किया गया। समारोह में विद्या विनोद, विद्या रत्न व विशारद के 29 परीक्षार्थियों को उपाधि पत्र के साथ पुरूस्कृत किया गया। अध्यक्षीय उद्बोधन राजेंद्र कांठेड़ ने दिया। समारोह में छात्र-छात्राओं को हिंदी में हस्ताक्षर करने का संकल्प भी दिलाया।
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