नई दिल्ली (New Dehli) । रामलला (Ramlala)के लिए फैजाबाद (Faizabad)का डीएम रहते हुए आईसीएस अफसर केके नायर ने 1949 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू (First Prime Minister Pt. Jawaharlal Nehru)से पंगा ले लिया (screwed up)था। उन्होंने विवादित ढांचा के गर्भगृह में रखी मूर्तियों को हटवाने से मना कर दिया था। ये मूर्तियां 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित ढांचे के नीचे रखी गई थीं। संतों ने इसे रामलला का प्रगटीकरण कहा था। दो-दो बार प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के पत्र लिखने पर भी नायर नहीं माने तो उन्हें निलंबित कर दिया गया। हाईकोर्ट से उन्हें स्टे मिला और वह दोबारा फैजाबाद के डीएम बने। बहाली के बाद 1952 में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और बस्ती को अपनी कर्मभूमि बनाया था।
हिन्दू जनमानस के नायक बनकर उभरे कृष्ण कुमार करुणाकर नायर का अधिकांश समय बस्ती में बीतने लगा। पहली बार 1957 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पत्नी शकुन्तला नायर को चुनाव मैदान में उतारा और वह नगर सीट से निर्दल विधायक निर्वाचित हुईं। 1962 में तीसरे विधानसभा चुनाव में नायर तत्कालीन महादेवा विधानसभा क्षेत्र से लड़े लेकिन हार गए। 1952 से लेकर 1967 तक नायर दंपति बस्ती को अपनी कर्मभूमि बनाकर काम करता रहा। 1967 में चौथे लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ ने पति-पत्नी को लोकसभा चुनाव में उतारा। केके नायर बहराइच और शकुन्तला नायर कैसरगंज सीट से चुनाव मैदान में उतरीं। दोनों को बड़ी जीत हासिल हुई।
चुनावों में जगाते रहे रामलला मंदिर की अलख
केरल निवासी केके नायर राममंदिर स्थापना को लेकर बार-बार अलख जगाते रहे। बस्ती में चुनाव प्रचार के दौरान वह राममंदिर की बातें करते थे। उनका मानना था कि आजादी के बाद श्रीराम जन्मभूमि मुक्त होनी चाहिए। लेकिन नई सरकार इसकी पक्षधर नहीं थी। इसका वह हमेशा विरोध करते रहे। इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने राम जन्मभूमि को लेकर एक रिपोर्ट मांगी थी। एक जून 1949 को अपने सहयोगी मजिस्ट्रेट से रिपोर्ट तैयार कराई। मजिस्ट्रेट गुरुदत्त ने रिपोर्ट दी तो केके नायर ने राम जन्मभूमि की जमीन मंदिर पक्ष को देने की रिपोर्ट भेजी।
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