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    कालगणना नहीं, कालबोध है महत्वपूर्ण

  • December 31, 2023

    – हृदयनारायण दीक्षित

    अस्तित्व सदा से है और सदा रहता है। यह सनातन है। चिरन्तन है। यह नया या पुराना नहीं होता। लेकिन अनुभव और अनुभूति में यह प्रतिपल नया है। सूर्य प्रतिपल नया है। हर एक सूर्योदय नया है। इसके पहले मुदित मन प्रतिदिन आती ऊषा भी नई है। ऋग्वेद के ऋषि ऊषा के सौन्दर्य का वर्णन करते हैं। बताते हैं कि यह ऊषा नई हैं और पुराणी युवती हैं। पुराणी युवती शब्द का प्रयोग ध्यान देने योग्य है। युवती शब्द का प्रयोग तरुण स्त्री के लिए होता है। लेकिन ऋषि की अनुभूति में ऊषा पुरानी होकर भी नई हैं। चन्द्र भी प्रतिदिन नया है और साथ साथ पुराना भी। प्रत्येक पूर्णिमा नई है और अमावस्या भी नई है। वर्षा की हर एक बूंद भी नई है। शीत नई है और ऊष्मा भी नई है। यहां नए का अलग अस्तित्व नहीं है। वह पहले से गतिशील अस्तित्व का विस्तार है। समय भी नया या पुराना नहीं होता। समय अखण्ड है।


    यूरोपीय काल गणना के अनुसार आज (रविवार) देररात 12 बजे वर्षान्त होगा और उनकी मान्यता के अनुरूप नववर्ष प्रारम्भ हो जाएगा। ‘हैप्पी न्यू ईयर‘ की तैयारियां जोरों पर हैं। इन तैयारियों में अस्तित्व की अनुकम्पा व प्रसाद के गीत नहीं है। अनेक लोग इसी बहाने नई तरह की दारू का इंतजाम कर रहे हैं और नाच गाने का भी। ‘हैप्पी न्यू ईयर’ सिर पर चढ़कर बोल रहा है। यूरोपीय नववर्ष लगभग हर वर्ष अपने साथ कड़ाके की ठण्ड और सर्द हवाएं लेकर आता है। अंग्रेजी कैलेंडर में जनवरी में जनवरी ही नई है। वैसे जनवरी में कुछ भी नया नहीं होता। न कोई आह्लाद। न प्रसाद, न ऋतु। न आनंद। प्रकृति का कोई छंद और न सुख अनुभव कराने वाली कोई गंध और न स्पर्श। गंध ढोकर लाने वाली हवाएं स्वयं शीत के प्रभाव में हैं। वातावरण में सर्दी ही सर्दी है। सर्दी भी स्वयं दुबकी हुई दिखाई पड़ती है। सर्दी और कोहरे ने ‘हैप्पी न्यू ईयर’ का मजा कम कर दिया है। तो भी लोगबाग एक दिन पहले से ही ‘हैप्पी न्यू ईयर’ का नगाड़ा बजा रहे हैं।

    प्रकृति ने जम्बूद्वीप भरतखण्ड को पूरे मनोयोग से गढ़ा है। यहां सत्य शिव सौन्दर्य की छटा है। प्रकृति नाना रूपवती है। जम्बूद्वीप भरतखण्ड में सदा नीरा नदियां हैं। इठलाती गीत जाती नदियां स्वयं आनंद रस परिपूर्ण हैं। यहां नदियां माताएं हैं और देवियां हैं। इस भूखण्ड में अनंत जलराशि वाले समुद्र भी हैं। फूलों की घाटियां हैं। आकाश छूने को लालायित विशाल मंदिर हैं। सब तरफ वन उपवन हैं। गंधमादन वातायन है। जलाशयों में कमल के फूल हैं। कालिदास ने मेघदूत में कमल के फूलों वाले क्षेत्रों की मोहक चर्चा की है। अथर्ववेद के भूमि सूक्त में भी कमल की विस्तृत चर्चा है। यहां 6 ऋतुएं हैं। सभी ऋतुओं के अपने आकर्षण हैं। लेकिन अंग्रेजी नववर्ष में नदियों में कोई उल्लास नहीं होता। दिशाएं उल्लासधर्मा नहीं होतीं। प्रकृति के नियम शाश्वत हैं। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। दिन रात मिलाकर 720 अहोरात्र हैं। अहोरात्र दिन रात के जोड़े हैं।

    पृथ्वी सहित अनेक ग्रह गतिशील हैं। हमारे पूर्वजों ने काल को चक्रीय बताया है। चक्र की गति में प्रथम और आखिरी नहीं होता। तब नया साल कहां से आया। हमारी समस्या है कि नए साल की गिनती कहां से शुरू करें। प्रश्न यह भी है कि नए साल की गिनती पहली जनवरी से क्यों शुरू होती है। न्यू ईयर वाली जनवरी बिंदास होती है। लेकिन जनवरी में बसंत जैसी सुगन्धित वायु नहीं बहती। वातावरण मधुवाता नहीं होता। मन प्रश्नाकुल है नया साल बसंत से क्यों नहीं शुरू होता? फाल्गुन या चैत्र से क्यों नहीं। यूरोपीय विद्वानों ने हड़बड़ी में 10 महीने का कैलेंडर बनाया था। उनके कैलेंडर में तब जनवरी और फरवरी नहीं थे। तब कैलेंडर का सातवां महीना सितम्बर था। लैटिन में सितम्बर सेपटेमबर है। आठवां अक्टूबर है। नवां नवंबर है और दसवां दिसम्बर है। अंग्रेजी कैलेंडर के सातवें, आठवें, नवें और दसवें महीने संख्यावाची हैं। बाद में इसमें जनवरी और फरवरी जोड़ दी गई। तब सातवां माह नवां हो गया। आठवां अक्टूबर था लेकिन दसवां हो गया। नवां नवंबर था। यह ग्यारहवां हो गया और दसवां दिसम्बर बारहवां हो गया।

    कालगणना महत्वपूर्ण नहीं है। काल बोध महत्वपूर्ण है। काल अस्तित्व से परे नहीं है। अस्तित्व सर्जक है। इसका प्रत्येक अणु गतिशील है। गति से समय है। दिन, रात, मास व वर्ष काल के अंग हैं। लेकिन सृष्टि के पहले समय नहीं था। ऋग्वेद में कहते हैं, ‘तब न रात्रि थी न दिन।’ अर्थात समय नहीं था। ऋग्वेद के अनुसार आकाश भी नहीं था। तब वायु भी नहीं थी। लेकिन अस्तित्व वायुहीन वातावरण में अपनी क्षमता के बल पर सांस ले रहा था-‘अनादि वातं स्वधया तदेकं।’ सब तरफ गहन अंधकार था और जल ही जल था। वह अगाध जलों में प्रकट हुआ। समय का जन्म गति से हुआ है। भारतीय चिंतन में काल को जगत् का नियन्ता भी कहा गया है। अथर्ववेद के 19वें काण्ड में कहते हैं, ‘काल से सब उत्पन्न होते हैं। काल सबका पिता है। काल से काल उत्पन्न होता है।’ बताते हैं कि काल पिता है और काल ही पुत्र है। काल से जल पैदा हुआ। काल से ज्ञान तप और दिशाएं उत्पन्न हुईं। काल से सूर्योदय और काल से सूर्यास्त है। काल में मन है और काल में प्राण है।’ यहां सर्वव्यापी हो गया है। वैसे काल का अस्तित्व एक समान नहीं होता। हम किसी आत्मीय के साथ होते हैं तो काल अल्प प्रतीत होता है। किसी बुरे आदमी की संगति में काल बहुत लम्बा जान पड़ता है।

    महाभारत में व्यास ने काल की महिमा बताई है, ‘काल से ऋतुएं हैं। काल से वनस्पतियां उगती हैं। काल से वर्षा है। काल से वायु की गति है। काल से वृक्षों पर फूल खिलते हैं। काल से स्त्रियां गर्भवती होती हैं। काल से सूर्य तपते हैं। काल से युद्ध होते हैं। काल से ही जय पराजय होती है। सब कुछ काल के अधीन है।’ यहां काल सर्वव्यापी जान पड़ता है। वह महाकाल हो गया है। लेकिन इसी महाभारत में बहुत सुन्दर ढंग से राजा या शासन व्यवस्था को काल से बड़ा बताया गया है-‘पूछा गया है कि, राजा काल का कारण है या काल राजा का? उत्तर है-राजा काल का कारण है। यहां राजा को बड़ा बताया गया है। यह भारत का काल बोध है।’ न्यू ईयर में काल बोध नहीं है। भारत में सीधे नए साल की महत्ता नहीं है। ऋग्वेद के अनुसार सृष्टि का उद्भव जल से हुआ था। अंधकारपूर्ण अगाध जल से यह अस्तित्व प्रकट हुआ था। सृष्टि के उदय की यह मुहूर्त संवत्सर कही जाती है। सृष्टि के उदय की मुहूर्त महत्वपूर्ण है। दुनिया भर के सभी हिन्दू चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को अपना नववर्ष मनाते हैं। हम भारत के लोग उत्सव प्रिय हैं इसलिए अंग्रेजी नववर्ष की गणना भी विश्व बंधुत्व के आधार पर सहज रूप में लेते हैं। आप सबका न्यू ईयर हैप्पी हो।

    (लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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